मराठी अस्मिता और थप्पड़ पॉलिटिक्स की आड़ में महाराष्ट्र में उबाल, जनता में सवाल
सत्येंद्र सिंह भोलू
मुंबई, बस्ती
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। एक ओर मराठी अस्मिता के नाम पर भाषाई चेतना को उकसाने की कोशिशें तेज हो गई हैं, वहीं दूसरी ओर थप्पड़ पॉलिटिक्स और खुले मंचों पर मारपीट जैसे घटनाक्रम लोकतांत्रिक मर्यादा को ठेस पहुँचा रहे हैं।
पिछले कुछ सप्ताहों में मराठी अस्मिता की आवाज़, खासकर सत्तारूढ़ दलों और विपक्ष के बीच ज़ुबानी जंग के साथ, भाषाई क्षेत्रवाद और भावनात्मक ध्रुवीकरण का रूप लेती जा रही है। शिवसेना (उद्धव गुट), मनसे और भाजपा सहित कई दलों ने “मराठी मानूस” को लेकर बयानबाजी तेज कर दी है।
थप्पड़ पॉलिटिक्स: लोकतंत्र की मर्यादा खतरे में
पिछले दिनों विधानसभा परिसर में हुए एक घटना में विधायक द्वारा कर्मचारी को थप्पड़ मारने का मामला हो या फिर जनसभाओं में खुलेआम दिए गए धमकीभरे भाषण — महाराष्ट्र की राजनीति अब विवाद से ज्यादा, हिंसा और धौंस के रास्ते पर चलती दिख रही है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि जब मुद्दों की राजनीति खत्म हो जाती है, तब 'अस्मिता' और 'आक्रोश' को हथियार बनाया जाता है। यही वर्तमान परिदृश्य में महाराष्ट्र में देखने को मिल रहा है।
जनता के मन में सवाल: विकास या ध्रुवीकरण?
सामान्य जनता, विशेषकर युवा वर्ग, इस बात को लेकर असमंजस में है कि क्या मराठी अस्मिता की रक्षा का यह तरीका सही है?
विकास, रोजगार, शिक्षा और किसानों की समस्या जैसे मूल विषय गायब होते दिख रहे हैं। युवाओं में चर्चा है कि “क्या थप्पड़ और नफरत ही अब राजनीति का नया एजेंडा है?”
विपक्ष का आरोप
कांग्रेस और एनसीपी ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वह मराठी अस्मिता को केवल चुनावी मुद्दा बनाकर इस्तेमाल कर रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कहा, “मराठी अस्मिता की रक्षा भाषाई सम्मान से होती है, न कि घूंसे और थप्पड़ों से।”