दिल्ली की सत्य बात,सोचिए और विचारिए

 कौटिल्य शास्त्री 

जागरुकता आ रही है, धीरे धीरे ही सही...!!


अचानक मुझे आदेशात्मक शब्द सुनाई दिए - "भैया सीट से हट जाओ.....मेरे पास बच्चे है..!!"

बुर्का ओढ़े महिला ने एक 24-25 साल के लड़के से कहा….

…..तो लड़के ने बड़ी शालीनता से कहा कि आप महिला सीट पर जाओ... मै महिला सीट पर नहीं बैठा हूं.

तो वो बोली कि वहां सब लेडीज बैठी हैं...

तो लड़के ने अपने कान के हेडफोन को हटाते हुए कहा तो मैं क्या करूं?? मुझे भजनपुरा जाना है, जो अभी बहुत दूर है…

तो वो अपने बच्चो की धौंस दिखाने लगी कि मेरे पास छोटे छोटे 7 बच्चे हैं... आपको शर्म नही आती? आप जेंटस् हैं... आप सीट नही छोड़ सकते?

अब सभी सवारियां मौन तमाशा देखने लगी…..

मामला गर्म होने की बजाय मसालेदार हो रहा था….

लड़के ने एक बड़ी अच्छी बात कही:

"आप लोगो का यही ड्रामा है! हर साल एक बच्चा जनना, और उसी के ऊपर कूदना। क्या आपने हमसे पूछकर पैदा किये थे बच्चे? अजीब बात है.... बच्चे पैदा तुम करो, सीट हम छोड़े? आपको बच्चो की इतनी ही फिक्र थी तो कैब करती या खाली बस में घुसती। अब तुम्हे फ्री सफर भी चाहिए.... सीट भी चाहिये और दादागिरी भी चाहिए .... जाइए, मैं नही दे रहा सीट!"

लड़का भी बुदबुदाता रहा कि तुम बच्चे पैदा करते रहो, काफ़िर सीट देंगे? फिर तुम्हे अपना घर देंगे? और फिर पैदा करोगे वही कश्मीर वाले हालात?

उस महिला को आगे बैठै एक इन्सानियत के कर्मचारी ने अपनी सीट ऑफर कर दी!

वो बैठ धम्म से बैठ गयी ...उसने दो शिशु शावक गोद मे बिठा दिए, परंतु दो छोटे शावकों को खडे रहना पडा... अब वो बगल वाले से अपने बाकी 3 बड़े शावकों के लिए सीट मांगने लगी।

लड़के ने जोर से उस सेक्युलर को ताना मारा की भाई साहब घर भी दे दो न अपना, ये बच्चे वहां अच्छा जीवन जियेंगे!

इस दौरान कंडक्टर चिल्लाया की भाई जिसे अफ्सरा बॉर्डर उतरना हो उतर जाओ!

बात वहीं रुक गयी और लड़का शांत हो गया और वो शाईनबाग की शेरनी सीमापुरी उतर गई।

मात्र 10 मिनट के सफर के लिये उस बुर्के वाली ने ये सब नाटक किया! 10 मिनट का सफर!!!

ये घटना है, दिल्ली लोकल बस की। जो रूट no. 33 नोएडा सेक्टर 37 से भजनपुरा की तरफ जाती है। रोज की तरह लोग इसमे घुसते है, और अधिकांश अपने आफिस और दूसरे काम के लिए निकलते है।

मैं महिला सीट पर बैठी ये सब नाटक देख रही थी। (दिल्ली एनसीआर की बसों में एक लाइन महिलाओ के लिए आरक्षित है)

मैं मन्द मन्द मुसकराई और सोचने लगी कि जागना जरूरी है…… अरे ढेर सारे बच्चे पैदा वो करेंगे और survive हमें करना पड़ रहा है..!!!

वर्षों से यही चलता आ रहा है..

लेकिन ये अब आगे नही चलना चाहिए।

शायद ही नहीं, बल्कि यकीनन अब लोगों में जागरूकता आ रही है जो अब हर शहर गांव व दूरदराज तक पहुँचनी चाहिए....…….

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