कौटिल्य शास्त्री की लेखनी
📰 "शिक्षा सुधार या शिक्षकों का संहार? गांवों में बंद हो रहे स्कूल, भविष्य पर संकट!"
एक शिक्षक ने कड़वा सच उगला:
"सरकार ने अगर ये नीति शिक्षा के नाम पर बनाई है, तो शिक्षा की लाश उठाने की तैयारी भी कर लेनी चाहिए।"
✒️ कौटिल्य का भारत संवाददाता | 18 जुलाई 2025
लखनऊ/बस्ती।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों के विलय (मर्जर) की नीति ने शिक्षा जगत में बवंडर खड़ा कर दिया है। शिक्षक आक्रोशित हैं, अभिभावक चिंतित हैं, और बच्चे—वो सबसे ज्यादा नुकसान में हैं।
नाम न बताने की शर्त पर कई शिक्षकों ने "कौटिल्य का भारत" संवाददाता को बताया कि गांवों में पहले ही बच्चों को स्कूल लाना कठिन होता है। "कई बच्चे नजदीकी स्कूलों में भी बमुश्किल आते हैं। अब जब स्कूल और दूर भेजे जाएंगे, तो वे पूरी तरह पढ़ाई से कट जाएंगे," एक महिला शिक्षक की आंखें बोल उठीं।
हाईकोर्ट ने जरूर सरकार की मर्जर नीति को सही ठहराया, लेकिन उसका स्पष्ट निर्देश भी था कि राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है कि स्कूलों की पहुँच बच्चों तक हो और उन्हें यातायात सुविधा मिले। सवाल ये है कि जब सरकार इस मूल जिम्मेदारी को नहीं निभा रही, तो शिक्षा नीति किसके लिए बन रही है?
शिक्षकों को अब यह डर सता रहा है कि ये मर्जर किसी गहरी साजिश की शुरुआत है। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स में चल रहे संदेशों में यह दावा किया जा रहा है कि सरकार धीरे-धीरे छोटे स्कूल बंद कर रही है और एक ही जगह पर शिक्षकों को समेटने की तैयारी में है। इसका मतलब साफ है—"कल की जरूरत, आज की बेरोजगारी में बदलेगी।"
नीति के नाम पर निर्ममता?
ग्रामीण इलाकों में एक स्कूल का बंद होना, महज एक भवन का बंद होना नहीं होता—वो एक बच्चे की पढ़ाई, एक शिक्षक की रोज़ी और एक गांव के सपनों का बंद होना होता है।
एक शिक्षक ने कड़वा सच उगला:
"सरकार ने अगर ये नीति शिक्षा के नाम पर बनाई है, तो शिक्षा की लाश उठाने की तैयारी भी कर लेनी चाहिए।"
📌 "कौटिल्य का भारत" पूछता है –
क्या शिक्षा का मतलब सिर्फ आंकड़ों में सुधार है या हर गांव के हर बच्चे तक ज्ञान की रोशनी पहुँचाना?
🧭 संवाद वही जो सत्ता से सवाल करे – कौटिल्य का भारत।