अखिलेश जी! कथा कहने से शुद्व या आपके पीडीए को नहीं, कपटी कथा वाचक से आपत्ति थी

 जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्चते 

सनातन में सबको कथा का अधिकार है 



आखिर कोई क्यों किसी हिंदू का कथा वाचन से क्यों रोकेगा.यह्वप्रथम दृष्टया पागल पन  ही माना जाएगा.हमारे असंख्य धर्माचार्य अगर शुद्र परम्परा से आकर समाज निर्माण का नेतृत्व कर कर रहे किसीको  भला क्या आपत्ति होसकती है?

वास्तविक जाति छिपाकर गलत जाति बताने को लेकर विवादों में घिरे कथावाचक मुकुट मणि यादव के पास मिले दो आधार कार्ड की जांच शुरू हो गई. उसके एक आधार कार्ड में नाम मुक्त सिंह और दूसरे में मुकुट मणि अग्निहोत्री लिखा हुआ था। दोनों आधार कार्ड में नंबर समान हैं. बकेवर पुलिस जांच कर रही है कि दोनों आधार कार्ड कहां से बनवाए गए हैं.उधर, कथा आयोजक की पत्नी द्वारा मंगलवार को दी गई तहरीर पर पुलिस ने 24 घंटे बाद भी जांच की बात कही, लेकिन रिपोर्ट नहीं दर्ज की.

दांदरपुर गांव में तनाव को देखते हुए पुलिस तैनात कर दी गई. यहां खुद को ब्राह्मण बताने वाले कथावाचक और उनके सहयोगी की चोटी काटने को लेकर दो दिन पहले विवाद हो गया था. इस बीच गांव में एक प्राइवेट स्कूल की शिक्षिका रेनू दुबे को पड़ोस के यादव बहुल गांव खितौरा में बाल काटने की धमकी दी गई.।

सनातन परम्परा सभी उपजातियों को कथा कहने और सुनने का समर्थन करती है.

सावधान! जो आप सोशल मीडिया पर देख रहे हैं, वो सच्चाई का सिर्फ़ एक चेहरा है। असल कहानी कहीं ज़्यादा डरावनी और चौंकाने वाली है. इटावा के दादरपुर गांव में हुआ एक ऐसा खुलासा, जिसने आस्था, विश्वास और धर्म के नाम पर चल रहे फरेब के काले कारनामे को उजागर कर दिया यह कहानी नकली पहचान, झूठे ज्ञान और पिटाई से ज़्यादा भयानक है—यह विश्वास तोड़ने की साज़िश है.

हमने आदिकाल से सामाजिक सद्भाव कॉकपनाया है,असंख्यवखपुरुष  दलित होनेके बावजूद हमारा नेतृत्व करते रहे हैं ,रामायण,महाभारत के साथ इसी युग शुद्र चंद्रगुप्त,पीडीए शिवाजी महराज  रैदास दादू,मालूक दास आखि़र कौन थे.सत्य को स्वीकारा और समाज का अगुवैवकी.

इटावा की कथित भागवत  कथा में लोच यह हे की अपनी जाती को छिपाकर कथा प्रवक्ता ने रामायण काल के कपटी मुनि या राजा प्रताप भानु का रोल किया जो निंदनीय था,सत्य को स्वीकारना चाहिए नकी वोट की राजनीति का कुप्रयास.

रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मिकी वैसे तो ब्राह्मण थे किंतु रामायण के सबसे प्रसिद्ध संस्करण रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने इन्हे रत्नाकर नामक डाकू बताया है को शुद्र था.मानस के अनुसार शुद्र होते हुए भी उस व्यक्ति ने महर्षि का पद प्राप्त किया.

एक बालक ऐसा हुआ को श्रीराम का ऐसा भक्त बना जैसा आज तक कोई नही हुआ.महादेव के वरदान से उसने इतनी लंबी आयु पाई कि रामायण को 11 बार और महाभारत को 16 बार होते हुए देखा। उन्होंने पक्षीराज गरुड़ के भ्रम को दूर किया। उनका नाम था काकभुशंडी और उन्होंने शुद्र वर्ण में ही जन्म लिया.

एक ब्राह्मण कन्या ने शूद्र वर्ण के एक नाई से विवाह किया। उनका एक पुत्र हुआ, और ऐसा हुआ कि अल्पायु में ही सारे शास्त्रों का ज्ञाता बन गया। अपने कर्म से (ध्यान दें, कर्म से ना कि जन्म से) उसने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। प्रताप उनका ऐसा था कि स्वयं श्रीराम उनकी मृत्यु के पश्चात उनके आश्रम में पधारे। उनका नाम था महर्षि मातंग और वे शूद्र थे.

इन्ही महर्षि मातंग की एक शिष्या थी जो जन्म से भीलनी थी। श्रीराम ने ना केवल इनका आशीर्वाद लिया बल्कि इनके जूठे बेर भी खाये. उस स्त्री का नाम था शबरी और वो भी शूद्र ही थी.

एक निषाद भी श्रीराम के अभिन्न मित्र थे.वनवास के समय श्रीराम इनके साथ ही रुके और साथ भोजन किया। इनका नाम था गुह और वे भी शूद्र ही थे.

एक व्यक्ति ने श्रीराम को नदी पार करवाई। उनके चरण अपने हाथों से धोए और जाते समय श्रीराम के हृदय से लगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस व्यक्ति का नाम था केवट और वो भी शुद्र ही था।

जब श्रीराम के पिता महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया तो जिन व्यक्तियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था उनमें एक थे महर्षि जाबालि.ये भी जन्म से शूद्र ही थे.

रामायण काल से बहुत पहले श्रीराम के एक पूर्वज थे जिन्होंने क्षत्रिय होते हुए भी केवल धर्म की रक्षा के लिए एक शुद्र के दास के रूप में कार्य किया.उनका नाम सभी जानते हैं, वे थे महाराज हरिश्चंद्र

आइए अब महाभारत को भी देख लिया जाए.


महाभारत के रचनाकार और हिन्दू धर्म के सर्वकालिक महान ऋषियों में से एक महर्षि व्यास भी शूद्र ही थे। प्रताप ऐसा था कि राजा महाराजा क्या, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी उनके आगे शीश नवाते थे.

महर्षि व्यास की ही माता सत्यवती, जिससे हस्तिनापुर जैसे महान साम्राज्य के क्षत्रिय राजा शांतनु ने विवाह किया, शूद्र ही थी।

सत्यवती के ही पालक पिता दाशराज, एक शूद्र के अड़ जाने पर भीष्म ने समर्थ होते हुए भी उन्हें विवश नहीं किया बल्कि उनकी इच्छा का मान रखते हुए राज सिंहासन और अपने जीवन के सभी सुखों का त्याग कर दिया.

हस्तिनापुर जैसे विशाल महाजनपद के महामंत्री महात्मा विदुर, जिनकी गाथा से महाभारत भरा हुआ है, शूद्र वर्ण के ही थे

कर्ण भले ही जन्म से क्षत्रिय हों लेकिन उनका ये रहस्य उनकी मृत्यु के बाद ही खुला.उससे पहले जीवन भर वे सूतपुत्र के नाम से ही जाने गए जो उच्च कुल का नहीं माना जाता था। फिर भी दुर्योधन जैसे राजकुल के क्षत्रिय के वे प्रिय मित्र थे, अंग महाजनपद के राजा बने और महाभारत के युद्ध में उस सेना के सेनापति भी बने जिसके सेनापति भीष्म जैसे क्षत्रिय और द्रोण जैसे ब्राह्मण रह चुके थे।

महाभारत में ऐसा वर्णन है कि राजकुल में जन्मे भीम ने शूद्र वर्ण में जन्मे कई मल्लों को अपने गुरु का स्थान दिया.

एक कुबड़ी थी जिसका नाम था त्रिवक्रा जिसे स्वयं श्रीकृष्ण ने स्पर्श कर स्वस्थ कर दिया था और अपने भक्त का स्थान दिया। वो भी शूद्र ही थी.

आज कल कथा कहते हुए हर धार्मिक पुस्तक में जिन सूत जी का वर्णन आता है उनका वास्तविक नाम था उग्रश्रवा सौती। ये भी जन्म से शूद्र ही थे पर कर्म से महान ऋषि हुए.

एक पौराणिक काल के क्षत्रिय राजा थे रंतिदेव.इनके यहाँ तो साक्षात् त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) ने एक साथ ब्राह्मण, शूद्र और चांडाल के रूप में अवतार लिया और इन क्षत्रिय राजा ने स्वयं अपने भोजन का भाग उन्हें दिया.

पौराणिक काल की बात बहुत हो गयी हो तो आधुनिक काल में आते हैं.


एक राजा था धनानंद उसने एक ब्राह्मण का घोर अपमान किया.वो ब्राह्मण यदि चाहता तो किसी और क्षत्रिय राजा के पास जाकर सहायता मांग सकता था किन्तु उसने शूद्र वंश में जन्मे एक बालक को शिक्षा देकर इतना महान बनाया कि उसने ना सिर्फ धनानंद को परास्त किया बल्कि समस्त आर्यावर्त पर राज किया। और उसके बाद उसी शूद्र वर्ण के उत्तराधिकारियों ने सम्पूर्ण भारत पर 137 वर्षों तक अखंड राज्य किया.वो ब्राह्मण थे चाणक्य और वो शूद्र बालक थे चन्द्रगुप्त मौर्य.

रुकिए श्रीमान! जिस राजा धनानंद और नन्द वंश की बात हमने अभी किया वो स्वयं शूद्र वर्ण के ही थे। और उस शूद्र वर्ण के राजाओं ने डेढ़ शताब्दियों तक इस देश पर राज्य किया.

कुछ नाम सुनिए - अवन्ति वर्मन, चिंतामणि धोबा, मयूरध्वज, सुहेलदेव, दलदेव, सतन पासी, बिजली पासी, लक्ष्मण पासी, पूँजा भील, कोटिया भील, बूंदा सिंह मीणा, जैत मीणा, बड़ा मीणा, आशा भील, मनोहर भील, विश्वासु भील, मांडलिक, नीलध्वज, चीला राय, लक्ष्मी नारायण, रघुदेव, मल्हार राव होल्कर, जादू राय, दलपत शाह, नरसिंह राय, महामणिक्य.अब आप कहेंगे इनमें क्या समानता है। तो भाई सबके आगे राजा लगा दीजिये। सब के सब किसी ना किसी प्रान्त के राजा थे और शूद्र वर्ण से ही थे। ऐसे वैसे शूद्र नहीं, आज काल हम जिन्हे महादलित कहते हैं, वे थे.

कुछ और नाम सुन लीजिये - घासीदास, रामदेव, रविदास, अच्युतनन्द, भोज भगत, बोगर, दादू दयाल, गाडगे महाराज, गोरोबा, गोरखनाथ, गुलाबराव, कबीर, कनकदास, कांचीपूर्ण, माधव देव, मत्स्येन्द्र नाथ, नंदनार, नरहरि सोनार, नारायण गुरु, निसर्गदत्त, पोतुलूरी वीरब्रह्मम, रामानंद राय, सरला दास, सिद्धरामेश्वर, तुकाराम, वैकुण्द स्वामी, वलम राम.अब आप फिर पूछेंगे कि इन सब में क्या समानता है? तो ये सभी भारत के हर प्रान्त के प्रसिद्ध संत हैं। सब के सब शूद्र वर्ण से ही हैं।

इन में से किस पर आपको दिल दहला देने वाले अत्याचार हुआ दिख रहा है?


समस्या ये है कि आज किसी को अपने इतिहास से कोई लेना देना नहीं है. सही इतिहास कोई पढ़ना नहीं चाहता किन्तु दलितों पर अत्याचार के ऊपर सोशल मीडिया पर भाषण जरूर देना चाहता है. अंबेडकर की बात हर कोई करना चाहता है लेकिन ये जानना नहीं चाहता कि दलित होते हुए भी उस ज़माने में अंबेडकर सूट-बूट और टाई पहनकर लन्दन पढाई करने कैसे पहुंचे.


हां, आधुनिक काल में दलितों पर अत्याचार हुआ है पर थोड़ा जानने का प्रयत्न कीजिये कि उन पर अत्याचार किस काल में आरम्भ हुआ. थोड़ा इतिहास पढ़ेंगे तो समझ आ जाएगा कि मुगलों और अंग्रेजों ने किस प्रकार समाज में इस खाई को पैदा किया.आज भी वही हो रहा है, पहले गोरे अंग्रेज अपने फायदे के लिए ऐसा करते थे और अब काले अंग्रेज वोटों के लिए करते हैं.


इस बात को आप तब ही समझ पाएंगे जब "वर्ण" और "जाति" का अंतर समझ पाएंगे। इस लेख[1] को पढ़ें, शायद चीजें कुछ और साफ हो जाये.


और हां, जिसे शंबूक नामक काल्पनिक चरित्र के कीड़े ने काट रखा है तो वे इस लेख[2] को पढ़ लें, शंबूक के प्रति आपका मोह भंग हो जाएगा.


आशा है कि आपकी दुविधा का अंत हो गया होगा. कहानी शुरू होती है एक छलावे से...


इटावा के अच्छलदा-बकेवर क्षेत्र में दो शातिर दिमाग़—मुकुट मणि जाटव और संत राम यादव—नकली नामों के साथ एक खतरनाक खेल खेलने उतरे मुकुट मणि, जो पहले नवबौद्ध के रूप में बुद्ध कथा सुनाया करते थे, ने देखा कि बाज़ार में उनकी कथा की मांग नहीं. फिर क्या? भगवा चोला ओढ़कर, संस्कृत के टूटे-फूटे श्लोकों के साथ, वे बन गए “मुकुट मणि अग्निहोत्री”—एक नकली ब्राह्मण कथावाचक.दूसरी ओर, संत राम यादव, जो पहले कई धंधों में नाकाम रहे, ने भी नया चेहरा अपनाया और बन गए “संत राम तिवारी”.


साज़िश का जाल


दोनों ने मिलकर फर्ज़ी आधार कार्ड बनवाए, नकली पर्चे छपवाए, और ब्राह्मण बनकर इटावा के गांवों में कथा का धंधा शुरू किया.मुकुट मणि की लत थी पव्वा मारने की, और संत राम की नज़र थी औरतों पर.फिर भी, ये दोनों आस्था के मंच पर चढ़कर लोगों को ठगने लगे. उनकी दुकान चल निकली—मुकुट मणि श्लोक बांचते, और संत राम पब्लिक डीलिंग संभालते. लेकिन सच्चाई का पर्दाफाश होने में देर नहीं लगती.


दादरपुर का भयानक मोड़


21 जून को दादरपुर गांव के पप्पू महाराज ने इन दोनों को कथा के लिए बुलाया। एडवांस रकम दी, लाव-लश्कर के साथ ये गुरु-चेला गांव पहुंचे. लेकिन वहां उनकी मुलाकात हुई परीक्षित दंपति से, जो खुद पुरोहित थे.जैसे ही कथा शुरू हुई, खेल खुलने लगा. मुकुट मणि के श्लोक गलत, संस्कृत अशुद्ध, और उच्चारण में भयंकर त्रुटियां. गांव वालों को शक रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मिकी वैसे तो ब्राह्मण थे किंतु रामायण के सबसे प्रसिद्ध संस्करण रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने इन्हे रत्नाकर नामक डाकू बताया है को शुद्र था। मानस के अनुसार शुद्र होते हुए भी उस व्यक्ति ने महर्षि का पद प्राप्त किया।

एक बालक ऐसा हुआ को श्रीराम का ऐसा भक्त बना जैसा आज तक कोई नही हुआ। महादेव के वरदान से उसने इतनी लंबी आयु पाई कि रामायण को 11 बार और महाभारत को 16 बार होते हुए देखा। उन्होंने पक्षीराज गरुड़ के भ्रम को दूर किया। उनका नाम था काकभुशंडी और उन्होंने शुद्र वर्ण में ही जन्म लिया।

एक ब्राह्मण कन्या ने शूद्र वर्ण के एक नाई से विवाह किया। उनका एक पुत्र हुआ, और ऐसा हुआ कि अल्पायु में ही सारे शास्त्रों का ज्ञाता बन गया। अपने कर्म से (ध्यान दें, कर्म से ना कि जन्म से) उसने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। प्रताप उनका ऐसा था कि स्वयं श्रीराम उनकी मृत्यु के पश्चात उनके आश्रम में पधारे। उनका नाम था महर्षि मातंग और वे शूद्र थे।

इन्ही महर्षि मातंग की एक शिष्या थी जो जन्म से भीलनी थी। श्रीराम ने ना केवल इनका आशीर्वाद लिया बल्कि इनके जूठे बेर भी खाये। उस स्त्री का नाम था शबरी और वो भी शूद्र ही थी।

एक निषाद भी श्रीराम के अभिन्न मित्र थे। वनवास के समय श्रीराम इनके साथ ही रुके और साथ भोजन किया। इनका नाम था गुह और वे भी शूद्र ही थे।

एक व्यक्ति ने श्रीराम को नदी पार करवाई। उनके चरण अपने हाथों से धोए और जाते समय श्रीराम के हृदय से लगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस व्यक्ति का नाम था केवट और वो भी शुद्र ही था।

जब श्रीराम के पिता महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया तो जिन व्यक्तियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था उनमें एक थे महर्षि जाबालि। ये भी जन्म से शूद्र ही थे।

रामायण काल से बहुत पहले श्रीराम के एक पूर्वज थे जिन्होंने क्षत्रिय होते हुए भी केवल धर्म की रक्षा के लिए एक शुद्र के दास के रूप में कार्य किया। उनका नाम सभी जानते हैं, वे थे महाराज हरिश्चंद्र।

आइए अब महाभारत को भी देख लिया जाए।


महाभारत के रचनाकार और हिन्दू धर्म के सर्वकालिक महान ऋषियों में से एक महर्षि व्यास भी शूद्र ही थे। प्रताप ऐसा था कि राजा महाराजा क्या, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी उनके आगे शीश नवाते थे।

महर्षि व्यास की ही माता सत्यवती, जिससे हस्तिनापुर जैसे महान साम्राज्य के क्षत्रिय राजा शांतनु ने विवाह किया, शूद्र ही थी।

सत्यवती के ही पालक पिता दाशराज, एक शूद्र के अड़ जाने पर भीष्म ने समर्थ होते हुए भी उन्हें विवश नहीं किया बल्कि उनकी इच्छा का मान रखते हुए राज सिंहासन और अपने जीवन के सभी सुखों का त्याग कर दिया।

हस्तिनापुर जैसे विशाल महाजनपद के महामंत्री महात्मा विदुर, जिनकी गाथा से महाभारत भरा हुआ है, शूद्र वर्ण के ही थे।

कर्ण भले ही जन्म से क्षत्रिय हों लेकिन उनका ये रहस्य उनकी मृत्यु के बाद ही खुला। उससे पहले जीवन भर वे सूतपुत्र के नाम से ही जाने गए जो उच्च कुल का नहीं माना जाता था। फिर भी दुर्योधन जैसे राजकुल के क्षत्रिय के वे प्रिय मित्र थे, अंग महाजनपद के राजा बने और महाभारत के युद्ध में उस सेना के सेनापति भी बने जिसके सेनापति भीष्म जैसे क्षत्रिय और द्रोण जैसे ब्राह्मण रह चुके थे।

महाभारत में ऐसा वर्णन है कि राजकुल में जन्मे भीम ने शूद्र वर्ण में जन्मे कई मल्लों को अपने गुरु का स्थान दिया।

एक कुबड़ी थी जिसका नाम था त्रिवक्रा जिसे स्वयं श्रीकृष्ण ने स्पर्श कर स्वस्थ कर दिया था और अपने भक्त का स्थान दिया। वो भी शूद्र ही थी।

आज कल कथा कहते हुए हर धार्मिक पुस्तक में जिन सूत जी का वर्णन आता है उनका वास्तविक नाम था उग्रश्रवा सौती। ये भी जन्म से शूद्र ही थे पर कर्म से महान ऋषि हुए।

एक पौराणिक काल के क्षत्रिय राजा थे रंतिदेव। इनके यहाँ तो साक्षात् त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) ने एक साथ ब्राह्मण, शूद्र और चांडाल के रूप में अवतार लिया और इन क्षत्रिय राजा ने स्वयं अपने भोजन का भाग उन्हें दिया।

पौराणिक काल की बात बहुत हो गयी हो तो आधुनिक काल में आते हैं।


एक राजा था धनानंद। उसने एक ब्राह्मण का घोर अपमान किया। वो ब्राह्मण यदि चाहता तो किसी और क्षत्रिय राजा के पास जाकर सहायता मांग सकता था किन्तु उसने शूद्र वंश में जन्मे एक बालक को शिक्षा देकर इतना महान बनाया कि उसने ना सिर्फ धनानंद को परास्त किया बल्कि समस्त आर्यावर्त पर राज किया। और उसके बाद उसी शूद्र वर्ण के उत्तराधिकारियों ने सम्पूर्ण भारत पर 137 वर्षों तक अखंड राज्य किया। वो ब्राह्मण थे चाणक्य और वो शूद्र बालक थे चन्द्रगुप्त मौर्य।

रुकिए श्रीमान! जिस राजा धनानंद और नन्द वंश की बात हमने अभी किया वो स्वयं शूद्र वर्ण के ही थे। और उस शूद्र वर्ण के राजाओं ने डेढ़ शताब्दियों तक इस देश पर राज्य किया।

कुछ नाम सुनिए - अवन्ति वर्मन, चिंतामणि धोबा, मयूरध्वज, सुहेलदेव, दलदेव, सतन पासी, बिजली पासी, लक्ष्मण पासी, पूँजा भील, कोटिया भील, बूंदा सिंह मीणा, जैत मीणा, बड़ा मीणा, आशा भील, मनोहर भील, विश्वासु भील, मांडलिक, नीलध्वज, चीला राय, लक्ष्मी नारायण, रघुदेव, मल्हार राव होल्कर, जादू राय, दलपत शाह, नरसिंह राय, महामणिक्य। अब आप कहेंगे इनमें क्या समानता है। तो भाई सबके आगे राजा लगा दीजिये। सब के सब किसी ना किसी प्रान्त के राजा थे और शूद्र वर्ण से ही थे। ऐसे वैसे शूद्र नहीं, आज काल हम जिन्हे महादलित कहते हैं, वे थे।

कुछ और नाम सुन लीजिये - घासीदास, रामदेव, रविदास, अच्युतनन्द, भोज भगत, बोगर, दादू दयाल, गाडगे महाराज, गोरोबा, गोरखनाथ, गुलाबराव, कबीर, कनकदास, कांचीपूर्ण, माधव देव, मत्स्येन्द्र नाथ, नंदनार, नरहरि सोनार, नारायण गुरु, निसर्गदत्त, पोतुलूरी वीरब्रह्मम, रामानंद राय, सरला दास, सिद्धरामेश्वर, तुकाराम, वैकुण्द स्वामी, वलम राम। अब आप फिर पूछेंगे कि इन सब में क्या समानता है? तो ये सभी भारत के हर प्रान्त के प्रसिद्ध संत हैं। सब के सब शूद्र वर्ण से ही हैं।

इन में से किस पर आपको दिल दहला देने वाले अत्याचार हुआ दिख रहा है?


समस्या ये है कि आज किसी को अपने इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। सही इतिहास कोई पढ़ना नहीं चाहता किन्तु दलितों पर अत्याचार के ऊपर सोशल मीडिया पर भाषण जरूर देना चाहता है। अंबेडकर की बात हर कोई करना चाहता है लेकिन ये जानना नहीं चाहता कि दलित होते हुए भी उस ज़माने में अंबेडकर सूट-बूट और टाई पहनकर लन्दन पढाई करने कैसे पहुंचे।


हां, आधुनिक काल में दलितों पर अत्याचार हुआ है पर थोड़ा जानने का प्रयत्न कीजिये कि उन पर अत्याचार किस काल में आरम्भ हुआ। थोड़ा इतिहास पढ़ेंगे तो समझ आ जाएगा कि मुगलों और अंग्रेजों ने किस प्रकार समाज में इस खाई को पैदा किया। आज भी वही हो रहा है, पहले गोरे अंग्रेज अपने फायदे के लिए ऐसा करते थे और अब काले अंग्रेज वोटों के लिए करते हैं।


इस बात को आप तब ही समझ पाएंगे जब "वर्ण" और "जाति" का अंतर समझ पाएंगे। इस लेख[1] को पढ़ें, शायद चीजें कुछ और साफ हो जाये।


और हां, जिसे शंबूक नामक काल्पनिक चरित्र के कीड़े ने काट रखा है तो वे इस लेख[2] को पढ़ लें, शंबूक के प्रति आपका मोह भंग हो जाएगा।


आशा है कि आपकी दुविधा का अंत हो गया होगा।हुआ।


पहले दिन की कथा किसी तरह निबटी, लेकिन मुकुट मणि की काली करतूतें रुक न सकीं। रात होते-होते, उन्होंने परीक्षित की पत्नी पर अभद्र टिप्पणी कर दी। बस, यहीं से आग भड़क उठी।


पोल खुलने का डरावना सच


संध्या को गांव वालों ने दोनों को घेर लिया। सवाल शुरू हुए—गोत्र क्या है? कुल कौन सा? ऋषि कौन? मुकुट मणि घबरा गए। उनके मुंह से निकला, “हाय बुद्ध! ये सब भी होता है?” बस, यहीं उनकी सारी पोल खुल गई। पहले मुकुट मणि ने खुद को यादव बताया, फिर कठेरिया, और आखिर में सच सामने आया—वो थे जाटव, एक नवबौद्ध। संत राम यादव भी फर्ज़ी “तिवारी” निकले। आधार कार्ड चेक किए गए—सब नकली!


और फिर शुरू हुआ भयानक तांडव


गांव वालों का गुस्सा सातवें आसमान पर था. आस्था के साथ खिलवाड़, नकली पहचान, और अभद्रता—सब कुछ सामने था। भीड़ ने दोनों को घेर लिया. वायरल वीडियो में दिखा—नाक रगड़वाई गई, पिटाई हुई। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती.


साज़िश का दूसरा पर्दा


मामला पुलिस तक पहुंचा, लेकिन अब खेल और डरावना हो गया. सोशल मीडिया और वामपंथी लॉबी ने इस घटना को तोड़-मरोड़कर पेश करना शुरू किया. संत राम यादव को सामने रखा गया, लेकिन असली मास्टरमाइंड—मुकुट मणि जाटव—को गायब कर दिया गया। क्यों? क्योंकि सच सामने आने से उनकी कहानी कमज़ोर पड़ती.


मुकुट मणि, जो नवबौद्ध से नकली ब्राह्मण बने, वही इस पूरे फरेब के सूत्रधार थे. लेकिन सोशल मीडिया पर सिर्फ़ संत राम का चेहरा उछाला जा रहा है, ताकि एक खास नैरेटिव चलाया जा सके.


कानूनी और नैतिक सवाल


पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है. पिटाई करने वाले गांव वाले भी अब जेल की हवा खा रहे हैं. लेकिन सवाल ये है—अगर ये घटना किसी यादव या दूसरी जाति के गांव में हुई होती, तो क्या नतीजा अलग होता? शायद और भयानक.दादरपुर ब्राह्मण बाहुल्य गांव भी नहीं है, फिर भी गुस्सा फूट पड़ा.।


सच्चाई का डरावना चेहरा


ये कहानी सिर्फ़ नकली पहचान की नहीं, बल्कि आस्था के साथ विश्वासघात की है. धर्म के नाम पर ठगी, चाहे कोई बौद्ध हो, यादव हो, या ब्राह्मण—हर बार बदनाम वही होता है, जिसका चेहरा सामने लाया जाता है। मुकुट मणि जैसे लोग भगवा चोला ओढ़कर, पव्वा मारकर, और अनुचित हरकतें करके सनातन धर्म को बदनाम करते हैं.

अखिलेश यादव जी सत्याश्तय जानिए,आस्तीन के कथा वाचकों को पहचानिए. और होसके तो कथा वाचकों का पीडीए तैयार करिए.आपके कथित्वकथा वाचक का भेद तो खुलना ही था,संकल्प में.

राजेंद्र नाथ तिवारी


सावधान रहें!


सोशल मीडिया पर जो दिखता है, वो हमेशा सच नहीं होता। असली कहानी को छिपाने की साज़िश चल रही है। आस्था के नाम पर फरेब करने वालों का असली चेहरा सामने लाने की ज़रूरत है। क्या आप तैयार हैं इस खुलासे को और गहराई तक जानने के लिए? सच का इंतज़ार की

जिए, क्योंकि ये खेल अभी खत्म नहीं हुआ...


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