अनुदानित विद्यालयों ,मदरसों और पाठशालाओं के शिक्षक,प्रबंधन के शोषण के हो रहे शिकार,सरकार का कोई दबाव नहीं

 मैने भी कई शिक्षक , शिक्षिकाओं से धीमे स्वर में ऐसा सुना है कि सैलरी खाते में आते ही उसका कुछ हिस्सा उनको ATM से निकाल कर प्रबंधन को वापस करना होता है। अब यह निकाला गया हिस्सा ब्लैक मनी ही है जिसे प्रबंधन जैसे चाहे प्रयोग कर सकता है। लेकिन इसमें कोई दबाव तो है नही यह तोशिक्षकों, शिक्षिका और स्कूल प्रबंधन के बीच का आपसी कॉन्ट्रैक्ट है जिसमे अगर शिक्षिक को नौकरी करना है तो यह नियम लगेगा ही। अगर इससे आपत्ति है तो वे चलाते का प्रयोग कर सकती हैं।

रही बात शासन, न्यायालय या न्यायाधीश की, तो जब तक यह बात उनके संज्ञान में नहीं आती वे कुछ नही कर सकते। पीढ़ित शिक्षक जाकर पुलिस में शिकायत दर्ज करें कि स्कूल मैनेजमेंट इतनी सैलरी ऑफर करके अब कैश में वापस मांग रहा है,लेकिन उसके लिए आपके पास सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट होना जरूरी है जिसमे सैलरी रिकॉर्ड और खाते में सैलरी आने तथा आपने कैश किसको दिया उसके रिकॉर्ड आदि। कई बार स्कूल मैनेजमेंट को बहुत से खर्चे चलाने के लिए ऑफ रिकॉर्ड कैश की जरूरत होती है तब वे इसी तरह खर्चे चलाते हैं।

दिक्कत इस बात की है अधिकांश  प्रबंधन के विद्यालयों में यह व्यवस्था लागू हे. अन्यथा की स्थिति में इतना टोका टोकी होगी कि नौकरी करना कठिन होजाएगा.बस्ती जनपद में अनुदानित मदरसों में तो वसूली अनिवार्य हो गई है कप्तानगंज में मदरसा दारुल उलूम में सेलरी आते ही वहां नियुक्त अवैध दामाद अध्यापकों को छोड़  सबको दस हजार देना ही होता है,परेशान अब अध्यापक है पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे.विभागीय शिकायतें मैनेज होजती हैं और प्रशासन की प्राथमिकता में नहीं है भ्रष्टाचार उन्मूलन.कैसे करें ,कौन करे इब ऊपर से नीचे तक सब नंगे ही है.

यह व्यवस्था होसकता हे सभी अनुदानित,प्रबंधन के विद्यालयों में लागू हो,उसमें जूनियर हाई स्कूल, इंटर, मदरसे और संस्कृत विद्यालय भी हो सकते हैं.

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