जब नाश मनुज का आता है,पहले विवेक मर जाता है
दुर्योधन भी राहुल से अच्छा था, वयम पंचाधिकम शतम
राहुल पर एकदम सही बैठता है. उन्हें आत्मज्ञान कब कैसे हुआ खुद नहीं बता सकते, पर राहुल गाँधी का यह कथन कि उन्होंने राहुल गाँधी को मार दिया है चर्चा का विषय तो है पर किस राहुल गाँधी को मार दिया है? इसका स्पष्टीकरण न देकर एक अलग से प्रश्न खड़ा कर दिया है.
विरासत से प्राप्त अतुलित राजनीतिक शक्ति वाले राहुल को मार दिया है, क्या जो मात्र उंगली उठाकर अथवा निगाहों के जरिये कांग्रेस में नेताओं की स्थिति को उलट पलट कर देने की शक्ति रखता है अथवा भाषण के दौरान , जारी किये गए सरकारी आदेश की प्रति के पन्ने फाड़ प्रधानमंत्री की शक्ति को सीमित करने की शक्ति रखता है, संयोग वश राजनीति में प्रवेश और वह स्थान प्राप्त कर लेना जो एक जमीन से जुड़े राजनेता के लिए स्वप्न जैसा लगता है. राहुल गाँधी को लगता था कि देश की जनता पर भी उनकी विरासत की शक्ति असर कर जायेगी जैसे कांग्रेस पार्टी के अंदर करती है, किंतु यह सोच फ्लाप हो गयी और राहुल का कद धड़ाम हो गया. चुनावी रैलियों में जहाँ भी चरण रखा, बंटाधार ही हुआ और लोकसभा की अपनी पुश्तैनी सीट से भी भागना पड़ा.एक शानदार जोकर की छवि अवश्य बना ली या बन गई.
राहुल और उनके चमचों का चिंतन सत्र प्रारंभ हुआ और निष्कर्ष निकाला गया कि उस राहुल गाँधी को मार दिया जाय जो विरासत से ताज पोषित था. फटाफट भारत जोड़ो यात्रा की घोषणा और यात्रा के दौरान राहुल के कार्यक्रमों की योजना बनाई जाने लगी, कब, कहाँ और क्या, कैसे करना है के साथ क्या बोलना है, व्यक्तित्व विकास के लिए वेशभूषा में क्या परिवर्तन करने होंगे आदि आदि सब समिधाएं इनके लिए जुटाई गई.
राजेंद्र नाथ तिवारी
गाजे बाजे के साथ शोभायात्रा निकल पडी़ और सोसल मीडिया की मंडली भी कीर्तन भजन करती साथ साथ.प्रचार …इतनी ठंड में एक टी शर्ट वाला जरूर खानदानी योगी हैं राहुल, सेक्युलर मिडिया का एक गधा भड़क गया, योगी कैसे बोला बे ये मुस्लिमो की बेइज्जती कर रहे हो, मरहम लगाया गया पंडित पुजारी साले चोर हैं, पंडे पुजारी गुट वाला एक बंदा मिमियाया ये गलत है, आवाज बुलंद हुई भाग स्सा…यह देश तपस्वियों का है, बात उड़ी, हवा ने उड़ाई बवाल मचा, एक आवाज जो शोरगुल में उंची उठी मैंने राहुल गाँधी को मार दिया, क्या सच में, कौन बोला, राहुल बाबा? तब सच ही होगा.. युधिष्ठिर से उनके गुरु द्रोण ने पूछा , क्या वाकई? आचार्य , अश्वत्थामा मरो नरो मरो वा कुंजरो ?नरो मरो वा कुंजरो को मुरली बजाने वाले ने शंख बजा सुनने ही नहीं दिया, आचार्य को मरना पड़ा.
पता नहीं कौन सा राहुल मारा गया?चमचों की भीड़ मुरली मनोहर की शंख बन गयी. जनता कुछ समझ न सकी . भुलावे में रख छलने की कोशिश है यह…पर जनता भी भाजपा और मोदी की आत्मनिर्भरता की सोच वाली है यह ठगे जाने को तैयार नहीं.यह दांव तो बेकार ही जायेगा. चमचे भी कुटिल मुस्कान बिखेर रहे हैं…कह रहे यह दांव भी फिस्स.
आज आपसेशन सिंदूर पर कौन राहुल प्रश्न कर रहा है?आज जब पूरा देश एकसाथ खड़ा तब जीवंत राहुल मोदी,जयशंकर को ललकार रहा.उसे क्या पता रामधारी सिंह दिनकर ने 1962 युद्ध पराजय केबाद जवाहर लाल को क्या कहा था! उन्हें कायर, ओर सीधे मर जाने की कामना से उनके सामने ही
रे! रोक युधिष्ठिर को न यहां जाने दे इनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गांडीव गदा,लौटा दो अर्जुन भीम वीर
कहदो शंकर से करें आज फिर प्रलय नृत्य फिर एक बार
पूरे भारत में गूंज उठे ,फिर हर हर बम का मोहोच्चार!!
जिन्दा राहुल दिनकर नहीं, नेहरू की परम्परा का महान आत्म घाती ज्ञान वाला है.जिंदा बचे बच्चे राहुल का सौभाग्य है कि मोदी प्रधानमंत्री है,इंदिरा होती तो जो सबकी किया इनकी भी वही करती.
इसलिए हे राहुल!तुम्हारी वृत्ति और प्रवृति दोनों देश की संस्कृति और संस्कार से भिन्न हैं,तुम्हारी बुद्धि विदेश में ही खुलती है,इसलिए तुम बलराम की तरह यात्रा पर निकल जाओ.तुम्हारी जय जय वाले बहुतेरे मिलेंगे.