राजेंद्र नाथ तिवारी,
मोदी को ,देश को लोक तांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करना ,मोदी विरोधियों का मात्र लक्ष्य है.उस की एकल समीक्षा वक्फ कानून.
वक्फ संशोधन अधिनियम 25 सरकार की कम सुप्रीम अदालत के लिए अत्यंत अग्निपरीक्षा है जहां आगे कुआं पीछे खाई साफ परिलक्षित हो रही है. न्याय होने या न्याय करने से ज्यादा भादुड़ी न्याय करते दिखने में आना चाहिए.यह संभवतः स्वतंत्र भारत का पहला मामला है जहां न्याय और न्यायमूर्ति दोनों कटघरे में खड़े हैं.अबतक सरकार से लेकरवाम खास को कटघरे की ओर अनफिट करने वाली न्यायपालिका समवेत स्वर से देश को करोड़ों जनता न्याय प्रिय जनों के कटघरे में खड़ी है.सुप्रीम पालिका के हाथ सुप्रीम न्याय प्रतीक्षा कर रहा है. जहां उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री और न्याय पालिका की प्रत्यंचा परस्पर खा लेने या देख लेने को दांत पीस रहे हैं.मोदी सरकार वक्फ कानून बिना तैयारी के लाकर जल्दबाजी की है.उसे मुर्शिदाबाद जैसे नरसंहार की प्रत्याशा कदापि नहीं थी.
वक्फ के नाम पर पांडव और कौरव प्रवृतियां आमने सामने खड़ी है और शकुनि अपने पाशा से सबको सह और मात का मंतव्य प्रगट कर रहे हैं.अकेला निष्कलुश मोदी अंदर या बाहर किसी निपटेइस ज्वलंत यक्ष प्रश्न का उत्तर देश की जनता और विदेशी ध्वशंकारी शक्तियों को देना होगा.उत्तर सुप्रीम कोर्ट देती है या सर्वोच्च सत्ता संसद देती है,पर संवैधानिक संस्थाओं पर आज प्रश्न चिन्ह खड़ा होचुका है यह उत्तर भारतीय जनतापार्टी,कांग्रेस, सहित सभी छोटी बड़ी पार्टियों से कोई नहीं पूछेगा जागृति पिक्चर का वह गाना पूछ रहा है
लाए हैं तूफान से कस्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के..
सर्वोच्च अदालत वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर ‘अंतरिम आदेश’ जारी करने के मूड में है, लेकिन कानून पर फिलहाल रोक लगाने के पक्ष में नहीं है. नए कानून की संवैधानिकता को चुनौती देती 73 याचिकाएं प्रधान न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने हैं. कुछ सवाल न्यायिक पीठ ने भी उठाए हैं, लेकिन वे वक्फ से जुड़े विवादों पर चिंतित भी हैं.प्रधान न्यायाधीश ने वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ भडक़ती-सुलगती हिंसा पर परेशानी और हैरानी जताई.अंतत: उन्होंने अपील के स्वर में कहा-‘मामला सर्वोच्च अदालत के सामने है, लिहाजा हिंसा बेमानी है.
हिंसा नहीं की जानी चाहिए’ बहरहाल सर्वोच्च पीठ की सुनवाई मंगलवार को भी जारी रही. पीठ ने ‘वक्फ बाय यूजर’ के मुद्दे पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है और दो सप्ताह में उसका जवाब मांगा है.नए कानून में जो प्रावधान तय किए गए हैं, न्यायिक पीठ उनसे सहमत नहीं लगती.जस्टिस खन्ना ने कहा है कि अंग्रेजों से पहले वक्फ रजिस्टे्रशन नहीं होता था. कई मस्जिदें 13वीं-14वीं सदी की हैं. आप ऐसे ‘वक्फ बाय यूजर’ को कैसे रजिस्टर करेंगे? वे दस्तावेज कहां से दिखाएंगे? यह असंभवहै. यदि वक्फ बाय यूजर की संपत्ति को ‘डी-नोटिफाई’ किया जाता है, तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। न्यायिक पीठ का तीन मुद्दों पर मूड स्पष्ट दिखाई दिया.
एक, अदालत से वक्फ घोषित संपत्ति ‘डी-नोटिफाई’ नहीं होगी. वह वक्फ बाय यूजर हो अथवा वक्फ बाय डीड हो. दूसरा, कलेक्टर वक्फ संपत्ति का सर्वे कर सकते हैं, लेकिन वक्फ की संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास ही रहेगी.उसकी प्रकृति नहीं बदल सकते. अदालत को सूचित करेंगे.तीसरा, वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को लेकर प्रधान न्यायाधीश जस्टिस खन्ना और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच तीखी बहस भी हुई.
न्यायमूर्ति ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक बोर्ड या मंदिरों के प्रबंधन में किसी मुसलमान को शामिल करेगी? यहां तक कि सॉलिसिटर जनरल ने न्यायिक पीठ के तीनों न्यायाधीशों के धर्म (हिंदू) पर सवाल उठाया. प्रधान न्यायाधीश ने जवाब दिया-‘जब हम इस सीट पर बैठते हैं, तो हमारी व्यक्तिगत पहचान मायने नहीं रखती. कानून के सामने सभी पक्ष एकसमान हैं. अब यदि सर्वोच्च अदालत कोई अंतरिम आदेश जारी करती है, तो उसमें कुछ निर्देश सरकारी कानून के खिलाफ भी हो सकते हैं. मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल बार-बार अनुच्छेद 26 और 20 करोड़ लोगों की आस्था और उनके धार्मिक प्रबंधन के अधिकार का मुद्दा उठा रहे थे, तो प्रधान न्यायाधीश ने साफ कहा कि अनुच्छेद 26 सार्वभौमिक और धर्मनिरपेक्ष है.यह विधायिका को कानून बनाने से नहीं रोकता. यह सभी समुदायों पर लागू होता है.
संसद ने हिंदुओं के संदर्भ में भी कानून बनाए हैं. न्यायमूर्ति ने सिब्बल को धार्मिक बातें कहने से रोका. सिब्बल ने ही ‘अंतरिम आदेश’ की मांग की थी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कानून पर रोक लगाने की मांग की थी. प्रधान न्यायाधीश ने उसे भी खारिज करदिया. प्रधान न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि जामा मस्जिद सरीखी स्मारक इमारतें यथावत रहेंगी। उनसे कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. जस्टिस खन्ना ने वक्फ संशोधन कानून की धारा 2-ए के प्रावधान पर चिंता जताई। इतना तो स्पष्ट लगता है कि न्यायिक पीठ वक्फ कानून को खारिज नहीं करेगी और रोक लगाने के भी आसार नगण्य हैं, लेकिन ऐसे कुछ सुधार करवा सकती है, जो संविधान के मद्देनजर न्यायोचित नहीं हैं.
मिलार्ड देश रहेगा तो न्याय पालिका,कार्यपालिका,विधायिका रहेगी. अन्यथा अन्धेन नियमान: यथेव अंधा: