राजेंद्र नाथ तिवारी
भारत के आदि दार्शनिक चार्वाक हुए हैं.चार्वाक का अपभ्रंश हे चारु यानी अच्छी लगने वाली बात.आज प्रत्येक राजनीतिक दल के ध्येय वाक्य में उनका नाम लिया जाता है,वे नास्तिक थे पर आज का चालक राजनेता नास्तिक,आस्तिक का रासायनिक मिश्रण है.उसे स्वत:भी नहीं पता कि उसने कल क्या वादा जनता से किया था. भौतिकतावादी थे चार्वाक.
पक्ष, विपक्ष,सत्ता,सबका प्रिय विषय चार्वाक
राजनीतिक दल नहीं, अगली पीढ़ी चुकाएगी मुफ्त सुविधाओं की कीमत.राजनीतिक दल केजरीवाल ,राहुलवाल अखिलेश वाल, ममतावाल हर चुनाव में मतदाताओं को मुft बिजली कर्ज माफी और कैश ट्रांसफर के साथ और मनोहारी योजनाओं के साथ लुभा रहे हैं. मुफ्त की इन सुविधाओं से चुनाव जीते जा सकते हैं लेकिन भविष्य में इसकी बेकीमत दुकाना होगी और बमित वही लोग चुकारणे, जी मुफ्त सुविधाओं के लिए तभी मुफ्त सुविधाही राजनीतिक दलों द्वारा कोबीजे यानी मुफ्त सुविधाएं देने कबीज यानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार ने देश के कल्याण पर इनके हानिकारक बहस के बारे में एक महिलाकाम करने की जरूरत पर ध्यान आकर्षित करती है।
चुनाव से पहले सरकारें मुफ्त सुविधाओं की घोषणा करती है या राजनीतिक दल वादा करते हैं कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आएगी तो वह मुफ्त सुविधा या हर माह एक तय रकम देंगे। मतदाताओं में इस तरह की स्कीमों का काफ आकर्षण है। इन योजनाओं के जरिये राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने में भी मदद मिल रही है। लेकिन 2023 में क्रक्स की स्टडी अस्थायी राहत देती है और मुफ्त सुविधाओं और रेवड़ी संस्कृति की कीमत राजनीतिक दल नहीं, हमारी आपकी अगली पीढ़ी चुकाएगी। उनको शिक्षा, स्वास्थ्य और बेहतर जीवन के लिए जरूरी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। इसके संकेत अभी से दिखने लगे हैं।
राजनीतिक जवाबदेही के बारे में चिंताओं की पड़ताल की। स्टडी मेंमें कटौती की गई। इस है। स्टडी में मुक्त सुनि नीतियों को बंद कर आत्मनिर्भरती शिक्षा और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर और दिया गया है. इसमें नागरिक मीडिया से अप्रैल की गई है कि वह चुनाव सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करें और मस्तको सुविधाओं से हट कर न्यायसंगत नीतियों के लिए सरकारों पर दबाव बनाएं।
मुफ्त सुविधाओं के लिए संसाधनों की जरूरत होती है। इसके लिए सरकारों को अधिक उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है और क्रेडिट रेटिंग गिरावट आने का जोखिम रहता है उधारी की लत बढ़ जाती है सरकारों का पहले से तय खर्च बढ़ जाता है और पूंजीगत खर्च यानी उत्पादक गतिविधियों में निवेश कम हो जाता है पजाब मुक्त सुविधाओं को राजनीति के खतरों का उदाहरण है किसानों के लिए मुक्त बिजली देने को इसकी प्रतिबंधकता राजनीतिक रूप से लोकप्रिय होने के बावजूद गंभीर राजकोषीय घाटे का कारण बनी है क्षतिपूर्ति करने के लिए सरकार ने महत्वपूर्ण क्षेत्रों में खर्च में कटौती की है जिससे विकास में बाधा आ रही है और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है यह मुक्त सुविधाओं की राजनीति में होने वाले लेनदेन और उजागर करता है जहां अल्पकालिक लाभ विग्रह कालिक आर्थिक स्थिरता की कीमत पर आते हैं भविष्य की पीढ़ियां अंततः संचित कर्ज और कम निवेश का बोझ उठाती है.
सरकार जनता की अवश्य होती है पर व्यवहारिकता यह है जनता ही सरकारों की दासी है. सरकारों
को अपना नहीं जनता का देखना चाहिए.