राजनीति का चरित्र वारंगना की तरह था, है और रहेगा भी,अपना चरित्र त्यागते ही राजनीति दफन होजाएगी , तत्वमसि

राजनीति और सत्य दुनियां का अंतिम आश्चर्य!

राजनीति और सत्य दुनियां का अंतिम आश्चर्य 🐜
हजार साल पहले राजा भर्तृहरि ने राजनीति के बारे में जो श्लोक लिखा था, आज की राजनीति ने उसकी सच्चाई उजागर कर दी है।उस श्लोक में कहा गया था- ‘वारांगनेव नृपनीति्रनेकरूपा:’ अर्थात राजनीति वेश्याओं की तरह अनेकरूपा होती है याने वह मौके-मौके पर अपना रूप बदल लेती है।"
राजनीति..!क्या सुंदर शब्द गढ़ा है लोगों ने–राजनीति! जिसमें नीति बिलकुल पी गए हैं , उसको कहते हैं राजनीति।* सिर्फ चालबाजी है, धोखा_धड़ी है, बेईमानी है। हालांकि ईमानदारी के नकाब ओढ़ने पड़ते हैं, मुखौटे ओढ़ने पड़ते हैं, अपने को छिपा-छिपा कर चलना पड़ता है। राजनीतिक नेताओं के पास जितने चेहरे होते हैं उतने किसी के पास नहीं होते।

राजनीति वालों के अनेक चेहरे उनको खुद ही पता नहीं होता कि उसका असली चेहरा कौन सा है। मुखौटे ही बदलते रहते हैं, गिरगिट की तरह।राजनीति डकैती है। दिन-दहाड़े! जिनको लूटो, वे भी समझते हैं कि उनकी बड़ी सेवा की जा रही है! यह बड़ी अदभुत डकैती है। डाकू भी इससे मात खा गए। डाकू भी पिछड़ गए। सब तिथि-बाह्य हो गए–आउट ऑफ डेट। इसलिए तो बेचारे डाकू, अपराधी  प्रवृति के लोगों का राजनीति में आना सम्मानकी बात और जितने जितने की शत प्रतिशत गारंटी भी है.

 वहीं राजनीति एक संगठित लूट_तंत्र है। पूरे देश में राजनीति की आड़ में भ्रस्टखोरों की नूरा_कुश्ती_कबड्डी जारी है और रैफरी भी कोई नहीं…”राजनीति”..यह खेल ठीक वैसा ही है जैसे सब चोर मिल कर विचार करें कि देश में चोरी कैसे बंद हो? भ्रष्टाचार कैसे बंद हो? अपराध कैसे बंद हो? सब एक-दूसरे की तरफ देखें, हंसें, मुस्कराएं, सभाएं करें, लंबे_लंबे भाषण करें और फिर अपने_अपने उसी काम_धंधे पर निकल जाएं.जैसे छिपकलियां रातभर हजारों कीड़े_मकौड़े खाकर सुबह होते ही दीवारों पर टंगी हुई देवी_देवताओं_ संतों_महापुरुषों की तस्वीरों के पीछे जाकर छुप जाती हैं… ठीक यही चरित्र राजनैतिक दलों और राजनेताओं का है . राजनीति तो विध्वंस है, शोषण है, हिंसा है; शुद्ध डकैती है। डाकुओं के दल हैं.और उन्होंने बड़ा जाल रच लिया है। एक डाकुओं का दल हार जाता है, दूसरों का जीत जाता है; दूसरों का हार जाता है, पहलों का जीत जाता है। और जनता एक डाकुओं के दल से दूसरे डाकुओं के दल के हाथ में डोलती रहती है .यहां भी लुटोगे, वहां भी लुटोगे.यहां भी पिटोगे, वहां भी पिटोगे.

दिल्ली से बढ़िया राजनीतिक डकैती और कहा आपको देखने को मिलेगी! भ्रष्टाचार को समाप्त करनेवका केजरीवाल ने वीणा उठाया ,उसका ज्वलंत देखिए.राजनैतिक पार्टियां सिर्फ शोषण करती हैं। पांच साल एक पार्टी शोषण करती है, तब तक लोग दूसरी पार्टी के संबंध में भूल जाते हैं। फिर दूसरी पार्टी सत्ता में आ जाती है, पांच साल तक वह शोषण करती है, तब तक लोग पहली पार्टी के संबंध में भूल जाते हैं यह एक बहुत मजेदार खेल है. होश पता नहीं तुम्हें कब आए! जिस दिन तुम्हें होश आएगा, उस दिन राजनीति दुनिया से उठ जाएगी; उस दिन राजनीति पर कफन ओढ़ा दिया जाएगा; राजनीति की कब्र बन जाएगी मैंने सुना है कि जंगल के जानवरों को आदमियों का एक दल रोग लग गया। जंगल में दौड़ती जीपें और झंडे और चुनाव! जानवरों ने कहा, हमको भी चुनाव करना चाहिए। लोकतंत्र हमें भी चाहिए। बड़ी अशांति फैल गयी जंगल में सिंह ने भी देखा कि अगर लोकतंत्र का साथ न दे तो उसका सिंहासन डावाडोल हो जाएगा. तो उसने कहा, भई, हम तो पहले ही से लोकतंत्री हैं। खतम करो इमरजेंसी, चुनाव होगा. चुनाव होने लगा. अब बिचारे सिंह को घर—घर, द्वार—द्वार हाथ जोड़कर खड़ा होना पड़ा. गधों से बाप कहना पड़े. एक लोमड़ी उसके साथ चलती थी, सलाहकार, जैसे दिल्ली में होते हैं.उस लोमड़ी ने कहा, एक बात बड़ी कठिन है। आप अभी— अभी भेड़ों से मिलकर आए और आपने भेड़ों से कहा कि तुम्हारे हित के लिए ही खड़ा हुआ हूं. तुम्हारा विकास हो

 सदा से तुम्हारा शोषण किया गया है, प्यारी भेड़ो, तुम्हारे ही लिए मैं खड़ा हुआ हूं। आपने भेड़ों से यह कह दिया है। और आप भेड़ों के दुश्मन भेड़ियों के पास भी कल गए थे और उनसे भी आप कह रहे थे कि प्यारे भेडियो, तुम्हारे हित के लिए मैं खड़ा हूं. तुम्हारा हित हो, तुम्हें रोज—रोज नयी—नयी जवान—जवान भेड़ें खाने को’ मिलें, यही तो हमारा लक्ष्य है. तो लोमड़ी ने कहा, यह तो ठीक है कि इधर तुमने भेड़ों को भी समझा दिया है, भेड़ियों को भी समझा दिया है। और अगर अब दोनों कभी साथ—साथ मिल जाएं, फिर क्या करोगे? उसने कहा, तुम गांधी बाबा का नाम सुने कि नहीं? सुने, उस लोमड़ी ने कहा, गांधी बाबा का नाम सुने. तो उसने कहा, गांधी बाबा हर तरकीब छोड़ गए हैं. जब दोनों साथ मिल जाते हैं तब मैं कहता हूं, मैं सर्वोदयी हूं? सबका उदय चाहता हूं. भेड़ों का भी उदय हो, भेड़ियों का भी उदय हो, सबका उदय चाहता हूं। जब अकेले—अकेले मिलता हूं तो उनको बता देता हूं, जब सबको मिलता हूं तो सर्वोदयी की बात कर देता हूं. तुम अपने मन को जांचो। तुम बड़ी राजनीति मन में पाओगे .तुम चकित होओगे देखकर कि तुम्हारा मन कितना अवसरवादी लेकिन तुम एक मजे की बात देखोगे, पार्टी कोई भी हो, कांग्रेस हों—पुरानी कि नयी—कि जनता पार्टी हो, पार्टी कोई भी हो, लेकिन सब कहेंगे कि महात्मा गांधी के अनुयायी हैं हम.

 कुछ बात है गांधी बाबा में। समय पर काम पड़ते हैं। कुछ तरकीब है। तरकीब है—अवसरवादिता के लिए सुविधा है। तो है. जब जो तुम्हारे अनुकूल पड जाता है, उसी को तुम स्वीकार कर लेते हो। जब जिस चीज से जिस तरह शोषण हो सके, तुम वैसा ही शोषण कर लेते हो. जब जैसा स्वांग रचना पडे, वैसा ही स्वांग रच लेते हो। 

जो अपना,रूप,रंग,विचार, आचार ,सिद्धांत  बदलता रहे वही सच्चा सेवक, राजनीति, देशभक्त और राजनीति का चाणक्य.ताकि आनेवाली पीढ़ी को पता चले राजभरथरी ने सही ही कहा था, कि वह वारंग़ना ही है.सतयुग,द्वापर, त्रेता ,कलियुग सब पर राजनीति की प्रेत छाया रही और रहेगी. भी!

तत्वमसि 

rntiwari basti @gmail.com

कुछ तो लिखिए मान्यवर पाठक जी.

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