एलोपैथी बनाम आयुर्वेद का युद्ध अपना अपना माल ठिकाने लगाने का झगड़ा है

 बस्ती


इसमें क्या संशय है कि मानवता अगर आज एलोपैथी का युग देखने के लिए जीवित है तो वह जड़ीबूटियों की वजह से ही है। किसने बचाए रखा मनुष्यों को इतने हजारों हजार साल तक? यह कहना तो सरासर कृतघ्नता ही होगी कि जड़ीबूटियों से कुछ नहीं होता, यह सब बेकार है। यह कृतघ्नता दुर्भाग्यपूर्ण है। आप यह कहें कि लकड़ी के पहिये का अविष्कार करने वाले हमारे पूर्वज तो नीरे मूर्ख थे जी उन्होंने सीधा एरोप्लेन क्यों नहीं बना लिया? महामारी के इस नाज़ुक मोड़ पर एलोपैथी बनाम आयुर्वेद करने का क्या तुक है सिवाय अपना-अपना माल ठिकाने लगाने के झगङे हैं.


वे मूर्ख हैं जो उस मेकेनिक को बेकार कहे जो ब्रेक आदि अच्छे से रिपेयर करके एक बस को एक्सीडेंट होने से बचाता है और वह भी मूर्ख हैं जो उन रेसक्यू करने वालों को कुछ न समझे जो एक्सीडेंट होने पर उस बस को खाई में से निकाले, चोटिल लोगों की जान बचाए। आयुर्वेद, यूनानी या होमेओपेथी वाले मेकेनिक हैं और ऐलोपैथी वाले रेसक्यू टीम के मेम्बर। मैं जानता हूँ कि इन मेकेनिक को कोई हीरो नहीं मानता... लेकिन रेस्क्यू मेंबर्स को लोग हीरो मानते हैं और मैं भी कभी उन्हें कमतर नहीं आंकूंगा। दोनों की ज़रूरत है और यह तो लोगों को चाहिए कि वे इन दोनों से ही समय समय पर लाभ उठाते रहें।


मेरी सलाह यह है कि आप अपनी बॉडी रूपी मोटरकार या बस के लिए एक अच्छा मेकेनिक तलाशिये और उससे सर्विसिंग करवाते रहें साथ ही इमरजेंसी के लिए एक रेसक्यू ऑफिसर से भी बनाकर रखिए.

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form