राजेंद्र नाथ तिवारी,बस्ती
डिजिटल युग का निर्णायक मोड़ : 2027 का चुनाव और युवाओं की राजनीति
भारत की राजनीति का डिजिटल सफ़र अब निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। 2014 में “फेसबुक इलेक्शन” से शुरू हुई यह यात्रा 2019 और 2024 में और आक्रामक होती चली गई। लेकिन 2027 का चुनाव महज़ एक और डिजिटल प्रयोग नहीं होगा, बल्कि यह युवाओं द्वारा परिभाषित एक नया राजनीतिक विमर्श होगा।
2014 और 2019 में सोशल मीडिया मुख्यतः प्रचार का औज़ार था—नारे, वीडियो और हैशटैग्स ने जनमत बनाया। 2024 में यह दायरा और फैला, जहाँ टिकटॉक की गैरमौजूदगी में इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स ने युवाओं तक पहुँच बनाई। लेकिन 2027 में तस्वीर बदली नज़र आती है—अब युवा केवल दर्शक नहीं, बल्कि निर्माता और संवादक होंगे।
भारत का लोकतंत्र एक ऐसे बिंदु पर है जहाँ जेन-ज़ेड और मिलेनियल्स मिलकर आधे से ज़्यादा वोटर बन चुके हैं। उनकी प्राथमिकताएँ पारंपरिक वादों से परे हैं। वे नौकरी, मानसिक स्वास्थ्य, किराया, लैंगिक समानता और जलवायु संकट जैसे विषयों को अपनी राजनीति के केंद्र में देखना चाहते हैं। यह वह पीढ़ी है जो राजनीति को केवल भाषणों से नहीं, बल्कि मीम्स, व्यंग्य, संगीत और पॉप-कल्चर के जरिए समझती और गढ़ती है।
न्यूयॉर्क का मामदानी प्रयोग भारतीय दलों के लिए संकेत है—युवा मतदाता भावनात्मक जुड़ाव चाहते हैं, लेकिन औपचारिक भाषा में नहीं। वे इंटरएक्टिव, बहुभाषीय और हास्य से भरपूर संवाद में शामिल होना चाहते हैं। यही वजह है कि 2027में चुनावी लड़ाई अब पार्टी बनाम पार्टी नहीं, बल्कि कंटेंट बनाम कंटेंट होगी।
जो दल युवाओं की डिजिटल भाषा को नहीं समझेगा, वह अप्रासंगिक हो जाएगा। और जो दल इस भाषा में संवाद करेगा, वही अपना नया चेहरा गढ़ पाएगा। भारत का लोकतंत्र हमेशा से जनता की भागीदारी पर टिका है—अब यह भागीदारी मोबाइल स्क्रीन और डिजिटल स्पेस में रूपांतरित हो रही है।
2027का चुनाव शायद यह तय करेगा कि डिजिटल क्रांति राजनीति को जनतांत्रिक बनाएगी या सतही प्रचार का शोर। लेकिन इतना तय है कि इस बार युवाओं की रील, मीम और वीडियो ही सत्ता की दिशा तय करेंगे
2027: जब लोकतंत्र तय करेंगे मीम्स और रील्स
भारत की राजनीति अब डिजिटल भाषा में अनुवादित हो चुकी है। 2014 का “फेसबुक इलेक्शन”, 2019 के आक्रामक व्हाट्सऐप अभियान और 2024 के इंस्टाग्राम-यूट्यूब शॉर्ट्स ने साफ़ कर दिया कि सत्ता की राह अब मोबाइल स्क्रीन से होकर जाती है।
लेकिन 2027 अलग है। यहाँ युवाओं की भूमिका दर्शक की नहीं, बल्कि कंटेंट क्रिएटर की होगी। जेन-ज़ेड और मिलेनियल्स, जो वोटरों का आधा हिस्सा हैं, अपनी चिंताओं—नौकरी, मानसिक स्वास्थ्य, जलवायु संकट—को मीम्स, व्यंग्य और रील्स में ढालकर राजनीति की दिशा तय करेंगे।
यह चुनाव पार्टी बनाम पार्टी नहीं, बल्कि कंटेंट बनाम कंटेंट की लड़ाई होगी। जो दल इस डिजिटल भाषा को नहीं समझेगा, वह युवाओं से कट जाएगा। और जो दल युवाओं की भाषा में बात करेगा, वही भारत के लोकतंत्र का नया चेहरा बनेगा।