नेपाल युवाआंदोलन 2025: एक विशेष विश्लेषण और भारत पर इसका प्रभाव,राजेंद्र नाथ तिवारी

 


नेपाल आंदोलन 2025: एक विशेष विश्लेषण और भारत पर इसका प्रभाव.

2025 में नेपाल में चल रहा 'आंदोलन' मुख्य रूप से प्रो-मॉनार्की (राजशाही समर्थक) प्रदर्शनों का एक विस्तार है, जो फरवरी-मार्च से शुरू होकर सितंबर 2025 तक हिंसक रूप ले चुका है। यह आंदोलन नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और आर्थिक संकट से उपजा है। प्रारंभिक चरण में पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के वीडियो संदेश (19 फरवरी 2025) ने राजशाही की बहाली और हिंदू राष्ट्र की मांग को बल दिया। मार्च में काठमांडू में बड़े रैलियां हुईं, लेकिन सितंबर 2025 में यह सोशल मीडिया बैन के खिलाफ जेन जेड (युवा पीढ़ी) के विरोध से तेज हो गया, जो जल्दी ही भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को 9 सितंबर 2025 को इस्तीफा देना पड़ा, जिसमें 19-20 मौतें हुईं। यह आंदोलन बांग्लादेश 2024 के छात्र आंदोलन से समानताएं रखता है, जहां युवा नेतृत्व वाली विरोध ने सत्ता परिवर्तन कर दिया।
आंदोलन के कारण और प्रमुख घटनाक्रम
कारण: नेपाल में 2008 से गणतंत्र स्थापना के बाद 13 सरकारें बनीं, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और आर्थिक मंदी बनी रही। 2024 के एक सर्वे में आधे से अधिक नेपाली हिंदू राज्य की बहाली चाहते थे। युवाओं में बेरोजगारी (12.6%) और बड़े पैमाने पर पलायन प्रमुख मुद्दे हैं। सितंबर 2025 में ओली सरकार का सोशल मीडिया ऐप्स पर बैन (जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया) ने आग में घी डाला, जो 'नेपोकिड्स' (भ्रष्टाचारपूर्ण वंशवाद) के खिलाफ फैल गया। प्रो-मॉनार्की समूहों ने इसे राजशाही बहाली से जोड़ा।
घटनाक्रम:
फरवरी-मार्च 2025: ज्ञानेन्द्र शाह का संदेश; 9 मार्च को काठमांडू एयरपोर्ट पर हजारों की स्वागत रैली; 27 मार्च को जॉइंट पीपुल्स मूवमेंट कमिटी का गठन।
मार्च-अप्रैल 2025: 28 मार्च को टिंकुने में हिंसा—2 मौतें (एक प्रदर्शनकारी, एक पत्रकार), 110 घायल, 110 गिरफ्तारियां। कर्फ्यू लगाया गया; सरकार ने राजा पर आतंकवाद का आरोप लगाया।
मई-जून 2025: गणतंत्र दिवस पर 20,000 की रैली; बालुवाटर के पास झड़पें।
सितंबर 2025: सोशल मीडिया बैन के खिलाफ जेन जेड विरोध; काठमांडू, झापा और भारत सीमा क्षेत्रों में फैलाव। 19 मौतें, संसद और नेताओं के घरों पर हमले। ओली ने इस्तीफा दिया, लेकिन आंदोलन जारी।
सरकार ने कर्फ्यू, आर्मी तैनाती और सभाओं पर प्रतिबंध लगाए, लेकिन यह युवा-नेतृत्व वाला आंदोलन दब नहीं सका।
भारत पर प्रभाव: बहुआयामी विश्लेषण
नेपाल भारत का सबसे निकटवर्ती पड़ोसी है, जो 1,800 किमी खुली सीमा साझा करता है। यह आंदोलन भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति को चुनौती देता है, खासकर बांग्लादेश (2024) और श्रीलंका (2022) के संकटों के बाद। प्रभाव निम्न हैं:
1. राजनीतिक प्रभाव: ओली की प्रो-चाइना नीति (जुलाई 2024 में बीआरआई फ्रेमवर्क साइन) ने भारत को चिंतित किया। आंदोलन का समय संदिग्ध—ओली चीन से लौटने के बाद (SCO समिट) और भारत यात्रा से पहले। विशेषज्ञों का मानना है कि यह यूएस-चाइना प्रॉक्सी वॉर का हिस्सा हो सकता है, जहां यूएस मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (MCC) के $500 मिलियन निवेश से नेपाल को प्रभावित कर रहा है। प्रो-मॉनार्की तत्वों को भारत-समर्थक माना जाता है, क्योंकि राजशाही हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़ी है, जो भारत की सांस्कृतिक निकटता बढ़ा सकती है। हालांकि, भारत ने आधिकारिक रूप से समर्थन से इनकार किया। ओली का इस्तीफा नई सरकार ला सकता है, जो भारत-अनुकूल हो, लेकिन अस्थिरता से राजनीतिक हस्तक्षेप की मांग बढ़ेगी।
2. आर्थिक प्रभाव: भारत-नेपाल व्यापार 2024 में $668.6 मिलियन का था (भारत से $587 मिलियन आयात)। आंदोलन से सीमा क्षेत्रों (झापा, बिराटनगर) में व्यापार बाधित, जो नेपाल के 17% निर्यात को प्रभावित करेगा। 2023 के ट्रेड एंड ट्रांजिट संधि से नेपाल को भारत के जलमार्गों का लाभ मिला, लेकिन अस्थिरता से निवेश रुकेगा। नेपाल की अर्थव्यवस्था पहले से कमजोर है; यह भारत के लिए अवसर (सहायता बढ़ाना) और जोखिम (चाइना का बीआरआई विस्तार) दोनों लाएगा।
3. सुरक्षा प्रभाव: नेपाल की अस्थिरता भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा—माओवादी विद्रोह (1996-2006) की यादें ताजा। सीमा पर प्रदर्शन फैल सकते हैं, खासकर तराई क्षेत्र में जहां भारतीय मूल के नेपाली रहते हैं। प्रो-मॉनार्की हिंसा से हिंदू राष्ट्रवाद उभर सकता है, जो भारत के हित में हो, लेकिन चाइना का प्रभाव (ओली को समर्थन) से बीआरआई प्रोजेक्ट्स (जैसे पोखरा एयरपोर्ट) भारत विरोधी हो सकते हैं। यूएस का MCC ऊर्जा-रोड प्रोजेक्ट्स चाइना के खिलाफ हैं, लेकिन भारत को अलग-थलग कर सकते हैं। कुल मिलाकर, नेपाल अस्थिर होने से भारत की सीमा सुरक्षा, आप्रवासन और आतंकवाद जोखिम बढ़ेगा।
4. भू-राजनीतिक प्रभाव: नेपाल भारत-चाइना के बीच 'बफर' है। आंदोलन हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है, जो भारत के सॉफ्ट पावर (हिंदू तीर्थयात्रा, सांस्कृतिक बंधन) को मजबूत कर सकता है। लेकिन चाइना की पैठ (2024 में $41 मिलियन सहायता) और ओली के लिपुलेख-कलापानी दावे (चाइना को दोहराए) से तनाव। बांग्लादेश पैटर्न से सीखते हुए, भारत को सतर्क रहना चाहिए—संभावित राजशाही बहाली भारत-अनुकूल हो, लेकिन वर्तमान में यह क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ा रही है। भारत की रणनीति: कूटनीतिक संवाद (जैसे नवंबर 2024 की SSB-APF बैठक), आर्थिक सहायता और चीन के प्रभाव को संतुलित करना।
 संभावित परिणाम
यह आंदोलन नेपाल की राजनीतिक प्रणाली को बदल सकता है—संभावित राजशाही बहाली या नई गठबंधन सरकार। भारत के लिए यह अवसर (निकटता मजबूत) और खतरा (चाइना का विस्तार) दोनों है। यदि अस्थिरता बनी रही, तो भारत को सक्रिय हस्तक्षेप करना पड़ेगा, लेकिन 'नेबरहुड इन टर्मॉइल' से क्षेत्रीय स्थिरता प्रभावित होगी। दीर्घकालिक रूप से, भारत को नेपाल में लोकतंत्र समर्थन देकर चाइना को काउंटर करना चाहिए। 
भारत सरकार सतर्क दृष्टि रखे.

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