“राहुल : भाषा खो बैठे, भेष बदलते रहे, भविष्य गँवा बैठे

बस्ती से राजेंद्र नाथ तिवारी 

सम्पादकीय

राहुल गांधी : भाषा, भेष और भविष्य — सब शून्य


भारतीय राजनीति में राहुल गांधी का नाम एक लंबे अरसे से चर्चा में है। परंतु सवाल यह उठता है कि इस लंबे राजनीतिक सफर में उनके पास ठोस पूँजी के रूप में बचा क्या है? जनता के बीच गहरी धारणा बन चुकी है कि राहुल गांधी के पास भाषा, भेष और भविष्य — तीनों का अभाव है। और वह  काफी हल्का आदमी है!

भाषा का संकट किसी भी नेता की सबसे बड़ी ताक़त उसकी भाषा होती है। जनता नेता की भाषा में सपना और समाधान ढूँढ़ती है। परंतु राहुल गांधी के भाषण अक्सर अस्पष्ट, असंबद्ध और हास्यप्रद प्रतीत होते हैं। संसद से लेकर जनसभाओं तक उनके वक्तव्य गंभीर विमर्श के बजाय चुटकुले और मीम का विषय बन जाते हैं। कभी “आलू से सोना बनाने” का दावा, तो कभी बिना तारतम्य की कथाएँ — इन सबने उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए। यही कारण है कि जनता को आज भी उनके भाषणों से कोई ठोस दिशा या नारा याद नहीं है।

निष्कर्ष यही कि राहुल गांधी की भाषा = 0। भेष का भ्रम .राजनीति में “भेष” का अर्थ केवल परिधान नहीं, बल्कि नेता की स्थायी छवि से होता है। परंतु राहुल गांधी की छवि निरंतर बदलती रहती है। एक दिन वे जनेऊधारी “पंडित” बनते हैं, दूसरे दिन किसान के खेत में हल चलाते दिखाई देते हैं, तीसरे दिन मजदूर के वेश में यात्रा करते हैं, और विदेश में फिर यूरोपीय अभिजात्य रूप में नजर आते हैं। यह निरंतर छवि-परिवर्तन जनता की नज़रों में एक नाटकीय प्रयोग बनकर रह गया है। जबकि जनता एक ऐसे नेता को चाहती है जिसकी छवि स्थिर और प्रामाणिक हो।

 परिणामस्वरूप उनका भेष = 0। ,भविष्य का प्रश्न किसी भी नेता का भविष्य उसके नेतृत्व कौशल और जनसमर्थन पर आधारित होता है। किंतु कांग्रेस के नेतृत्व में राहुल गांधी की स्थिति लगातार कमजोर होती गई। 2014, 2019 और कई राज्यों में बार-बार पराजय, संगठन के भीतर कार्यकर्ताओं की हताशा, और जनता के बीच असमंजसपूर्ण छवि — इन सबने उनके भविष्य को अनिश्चित बना दिया है।

आज कांग्रेस कई राज्यों में अपनी जड़ें खो चुकी है और राष्ट्रीय राजनीति में उसकी स्थिति हास्य का विषय बनती जा रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी का ग्राफ निरंतर गिर रहा है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि आने वाले वर्षों में उनका राजनीतिक भविष्य शून्य से अधिक कुछ नहीं है।  इसलिए कहा जाता है कि राहुल गांधी का भविष्य = 0

समापन समीकरण ,यदि हम इस पूरे विश्लेषण को जोड़ें तो परिणाम सामने आता है:

भाषा (0) + भेष (0) + भविष्य (0) = राहुल गांधी (0) यह समीकरण कठोर अवश्य है, पर राजनीति की कसौटी पर यही वास्तविकता है। जनता अब भावनाओं या दिखावे पर भरोसा नहीं करती; उसे स्पष्ट भाषा, स्थिर भेष और विश्वसनीय भविष्य चाहिए। राहुल गांधी इन तीनों कसौटियों पर विफल साबित हो रहे हैं। यही कारण है कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी निरंतर क्षीण हो रही है और भारत की राजनीति में राहुल का स्थान आज भी प्रश्नवाचक चिन्ह बना हुआ है।

राहुल का बॉडीलेंगवेज ही नेता का  नहीं

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form