क्या जातिगत राजनीति देश को ले डूबेगी?

 बस्ती /वशिष्ठ नगर  से राजेंद्र नाथ तिवारी


जातिगत राजनीति की काट क्या है? क्या जातिगत राजनीति देश को ले डूबेगी।इससे देश को कैसे बचाया जा सकता है?

जातिगत राजनीति की बात करनी बुरी नहीं है, बुरी है जातिगत मुद्दे को उठाकर वोट की राजनीति करना। यह कथन जातिगत राजनीति के मुद्दे के सार को पकड़ता है। जातिगत राजनीति का मुद्दा अपने आप में बुरा नहीं है, लेकिन जब इसे वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह समाज को विभाजित करने और जातिगत तनाव को बढ़ावा देने का कारण बन सकता है। जातिगत मुद्दों पर चर्चा करना और समाधान ढूंढना आवश्यक है, लेकिन इसका उद्देश्य समाज को एकजुट करना होनी चाहिये और जातिगत भेदभाव को कम करना होना चाहिए, न कि वोट बैंक की राजनीति करना। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि राजनीति में जातिगत मुद्दों का इस्तेमाल वोट प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि समाज की भलाई के लिए किया जाना चाहिए।

जातिगत राजनीति की काट अनेक हो सकते हैं, लेकिन इनमें अति महत्वपूर्ण बिंदु हैं शिक्षा और जागरूकता का प्रचार प्रसार। लोगों को जातिगत राजनीति के नकारात्मक प्रभावों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें इसके विकल्पों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। यह तभी सम्भव है जब सामाजिक एकता की भावना पनपेगी। समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने से जातिगत भेदभाव कम हो सकता है। जातिगत राजनीति को कम करने के लिए सभी को मिलकर संविधान में संशोधन करना भी एक विकल्प हो सकता है। अत: संविधानिक संशोधन आवश्यक है। नेताओं को जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में काम करना चाहिए अत: इनमें नेताओं की भूमिका अहं है । जनता को भी जातिगत राजनीति के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और अपने मतों का उपयोग जिम्मेदारी से करना चाहिए।

जातिगत राजनीति देश के लिए एक गंभीर समस्या है, जो हमारी राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित कर रही है। यह समस्या किसी न किसी रूप में हमारी राजनीति को प्रभावित करती आई है, और संविधान निर्माण के समय से ही इस पर सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं।

जातिगत राजनीति के कारण समाज में विभाजन और तनाव बढ़ता है, जो देश की एकता और सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक हो सकता है। इसके अलावा, यह राजनीतिक नेताओं को वोट बैंक की राजनीति करने के लिए प्रेरित करती है, जो देश के विकास को रोकती है । इन कदमों को उठाकर हम जातिगत राजनीति के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकते हैं और देश को एक मजबूत और एकजुट समाज बना सकते हैं।

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