थरूर बोले “देश पहले” — कांग्रेस को हुआ पेट दर्द!

 


थरूर बोले “देश पहले” — कांग्रेस को हुआ पेट दर्द!

— एक राजनीतिक व्यंग्य लेख

लेखक: राजेंद्र नाथ तिवारी/कौटिल्य का भारत संवाददाता]

“अगर भारत ही मर गया, तो फिर कौन जिंदा रहेगा?”
— शशि थरूर

 


  • राष्ट्र की बात करना कांग्रेस में अपराध है?”
  • “थरूर की भाषा में राष्ट्रवाद – कांग्रेस की व्यथा में बेचैनी”
  • “जो थरूर सोचते हैं, वही कांग्रेस को डराता है”


इस एक वाक्य ने कांग्रेस पार्टी की नींद उड़ा दी। ऐसा नहीं कि किसी विरोधी ने कहा हो — ये बयान तो पार्टी के अपने शशि थरूर ने दिया। वही थरूर, जो अंग्रेज़ी में धाराप्रवाह तर्क देते हैं, हिंदी में सौम्यता से मुस्कराते हैं और राजनीति में विचारधारा की बात करने की गलती कर बैठते हैं।

थरूर का कहना था कि राष्ट्र सर्वोपरि है, पार्टियां सिर्फ माध्यम हैं। अब ये विचार कांग्रेस के पॉलिटिकल थिंक टैंक में ऐसा धमाका कर गया, जैसे किसी ने चाय में नमक डाल दिया हो। पार्टी नेताओं को शक हो गया — “कहीं ये विचार थरूर अपने मन से तो नहीं सोच रहे?”

कांग्रेस में आजकल सोचने का काम “ऊपर” होता है और बोलने का अधिकार “स्क्रिप्ट” से बंधा है। ऐसे में थरूर जैसे नेता, जो देश, सेना और सरकार की अच्छी बातों का समर्थन करने की बात करते हैं, पार्टी के लिए “आंतरिक खतरा” बन जाते हैं।

थरूर ने कहा —

“मैं जब भारत की बात करता हूं, तो सभी भारतीयों की बात करता हूं, न कि सिर्फ उन लोगों की जो मेरी पार्टी को पसंद करते हैं।”

बस यहीं से कांग्रेस में बेचैनी शुरू हो जाती है।
पार्टी को डर है कि कहीं थरूर “राष्ट्र की बात” करते-करते “राष्ट्रवाद” पर न उतर आएं, और अगली बार मंदिर-मस्जिद नहीं, उद्योग-शिक्षा-स्वास्थ्य की बातें करने लगें!
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता अब यह समझ नहीं पा रहे कि थरूर को सम्मानित करें, सस्पेंड करें या संभालें

अंदरखाने सूत्र बताते हैं कि पार्टी की कुछ बैठकें अब सिर्फ “थरूर हैंडलिंग कमेटी” को समर्पित हैं। इसमें तय किया जाता है कि उनके बयानों को कैसे घुमा-फिरा कर पार्टी लाइन से जोड़ा जाए या कैसे उनके ट्वीट को इग्नोर किया जाए।

शशि थरूर के मन में राष्ट्र और जनता के लिए जो समर्पण है, वह आज की “हॉलीवुड स्टाइल राजनीति” में फिट नहीं बैठता। वह जब सरकार के सही फैसलों का समर्थन करते हैं, तो कांग्रेस को डर लगता है कि जनता ये न समझ बैठे कि विपक्ष भी कभी तर्कपूर्ण और राष्ट्रवादी हो सकता है।

अब सवाल ये है कि क्या थरूर कांग्रेस में फिट बैठते हैं? या कांग्रेस अब सिर्फ थाली चाटने वालों की टोली बनकर रह गई है?

थरूर के लिए असली चुनौती यही है —
वे पार्टी में हैं, लेकिन विचारों से कहीं और।
वे देश की बात करते हैं, और पार्टी को केवल सत्ता की।
वे कहते हैं – भारत बचेगा तो राजनीति भी बचेगी।
पार्टी कहती है – पार्टी बचेगी तो सब कुछ बचेगा।


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