देश ,प्रदेश,जनपद की मेडिकल व्यवस्था आई सी यू में वेल्टिनेटर पर

 जब अपात्र डाक्टर होगा,अपात्र प्रोफेसर पढ़ाएगा और अपात्र को पीट कर डाक्टर बनाया जाएगा,अल्प विद्या भयंकरी होगा ही.

कौटिल्य शास्त्री






पूरी चिकित्सा व्यवस्था को संचालन कोई परा  शक्ति ही कर रही है,ईश्वर के बाद ईश्वर के समान सम्मानित पेशा अधिकाश  नरभक्षियों के हवाले होचुका है सरकारों से उनकी प्राथमिकताएं लागू करने से मतलब है सिस्टम सड़ा,गला , भष्ट कोई भी हो चलेगा.!हमने कानपुर के मुख्य चिकित्साधिकारियों की बानगी देशी है, अब तो सिस्टम का फायदा आऊट सोर्सिंग, व संविदा कर्मी भी  न्यायालय से स्टे पर जीवित हो जाते हैं.बस्ती मुख्य चिकित्सा अधिकारी की चालीसा पढ़ सभी मनबढ़ राज के रहे,पूरा सिस्टम ही वेलटिनेटर पर चला गया हैं.कलक्टर,मंत्री,मुख्य मंत्री का असर पडरौना की कथा की तरह पड़ रहा,अधिकारी गए,नियति का धूल झड़ गया,आखिर कब तक??लंबा डोनेशन ही असमर्थ चिकित्सैव्यवस्था को ध्वस्त कर रहा.यही हाल  सर्वत्र है.उदाहरण देखिए.

' एक देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और जब उसकी नींव मानी जाने वाली मेडिकल शिक्षा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाए तो यह केवल एक घोटाला नहीं, बल्कि लाखों लोगों के भरोसे और भविष्य पर सीधा हमला है.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने हाल में सनसनीखेज खुलासे के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) और निजी मेडिकल कॉलेजों के बीच गहरे भ्रष्टाचार के जाल को उजागर किया है.34 लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी ऐसी सच्चाई सामने लाई है, जो न केवल मेडिकल शिक्षा की विसनीयता, बल्कि स्वास्थ्य तंत्र के प्रति जनता का विश्वास भी हिलाती है.

यह घोटाला स्वास्थ्य मंत्रालय के गलियारों से शुरू होता है, जहां अधिकारियों ने बिचौलियों और निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ मिल कर ऐसा तंत्र बनाया जो नियमों को तोड़ने-मरोड़ने का पर्याय बन गया.

गोपनीय दस्तावेज की चोरी, निरीक्षण कार्यक्रम लीक होना, और मूल्यांकनकताओं की जानकारी कॉलेजों तक पहुंचना सब सुनियोजित साजिश का हिस्सा था.

इस सेटिंग ने मेडिकल कॉलेजों को वह मौका दिया जिसके जरिए वे निरीक्षण प्रक्रिया को धोखे में बदल सके. कॉलेजों ने इस अवसर का पूरा फायदा उठाया. फर्जी संकाय की नियुक्ति, काल्पनिक मरीजों को भर्ती दिखाना और बायोमेट्रिक उपस्थिति पणाली में हेरफेर जैसे हथकंडे अपनाए गए. यह सब रित के खेल का हिस्सा था, जहां लाखों रुपये हवाला के जरिए लेन देन किए गए. यह धन न केवल व्यक्तिगत लाभ, बल्कि सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों के नाम पर भी इस्तेमाल हुआ.खुलासा सवाल उठाता है कि क्या पवित्रता का मुखौटा पहन कर भ्रष्टाचार को छिपाना अब आम बात हो गई है?

मेडिकल शिक्षा का उद्देश्य कुशल और नैतिक डॉक्टर तैयार करना है, जो स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करें लेकिन जब यह प्रक्रिया ही भ्रष्टाचार से ग्रस्त हो तो पढ़ कर निकलने वाले डॉक्टरों की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजिमी है. यह घोटाला मैडिकल शिक्षा की वैश्विक साख पर गहरा प्रहार करता है.भारत, जो चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए वैश्विक स्तर पर जाना जाता है, ऐसे घोटालों के कारण विसनीयता खो रहा है. उन लाखों छात्रों का क्या जो भारी-भरकम फीस चुका कर इन कॉलेजों में पढ़ते हैं? क्या उनकी मेहनत और सपने भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ जाएंगे?

यह घोटाला मेडिकल शिक्षा तक सीमित नहीं है इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव भी गंभीर हैं. निजी मेडिकल कॉलेजों का व्यावसायीकरण पहले ही शिक्षा को विलासिता बना चुका है. मेधावी लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए मेडिकल शिक्षा का सपना और दूर हो जाता है. हवाला के जरिए रित का लेन-देन अर्थव्यवस्था को खोखला करता है. यह धन, जो जनकल्याण के लिए उपयोग हो सकता था, भ्रष्टाचार के काले गलियारों में गायब हो रहा है.धार्मिक-सामाजिक कायरे के नाम पर इसका इस्तेमाल न केवल नैतिकता पर सवाल उठाता है, बल्कि समाज के प्रति गहरे विश्वासघात को भी दशार्ता है. यह घोटाला एनएमसी की कार्यपग्राली पर भी सवाल उठाता है।

एनएमसी को भ्रष्टाचार-मुक्त और पारदर्शी व्यवस्था लाने के लिए बनाया गया था, लेकिन इस घोटाले ने तमाम दावों की पोल खोल दी. स्पष्ट है कि नियामक ढांचे में गहरी खामियां हैं.निरीक्षण प्रक्रिया को डिजिटल और स्वचालित करना, स्वतंत्र ऑडिट अनिवार्य करना, और भ्रष्टाचार में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करना कुछ ऐसे कदम हैं, जो इस तंत्र को मजबूत कर सकते हैं. यह सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हमारा भी दायित्व है कि हम शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की दिशा में प्रयास करें.

यह घोटाला एक कड़वी सच्चाई सामने लाता है कि हमारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, लेकिन यह अवसर भी है-सुधार का अवसर, जवाबदेही का अवसर और ऐसी व्यवस्था बनाने का अवसर, जो नैतिकता और पारदर्शिता पर टिकी हो.सीबीआई की कार्रवाई एक शुरूआत है, लेकिन यह तभी सार्थक होगी जब इसके परिणामस्वरूप ठोस बदलाव आएं.हमें सुनिश्चित करना होगा कि मेडिकल शिक्षा का हर स्तर प्रवेश से लेकर मान्यता तक पारदर्शी और जवाबदेह हो.

यह न केवल उन छात्रों के लिए जरूरी है, जो अपने सपनों को साकार करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, बल्कि उन करोड़ों मरीजों के लिए भी जरूरी हैं, जिनका जीवन इन डॉक्टरों के हाथों में होता है.यह घोटाला चेतावनी है.बताता है कि हमारी व्यवस्था की कमजोरियों ने हमारे विश्वास से ठगी की है, और हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है.हमारी मेडिकल शिक्षा को भ्रष्टाचार के इस काले साये से मुक्त कराना होगा. बेशक, यह लंबी लड़ाई है, लेकिन अगर हम एकजुट होकर भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ खड़े हों, तो हम एक ऐसी व्यवस्था बना सकते हैं, जो न केवल कुशल डॉक्टर तैयार करेगी बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी निभाएगी. आइए, इस घोटाले को सबक बनाएं और एक नये, पारदर्शी और नैतिक भारत की नींव रखें.
क्या चिकित्सा मंत्री जी प्राइवेट मेडिकल कालेजों,प्राइट अस्पतालों   और प्राइवेट कर्मचारियों के हवाले पूरी चिकित्सा व्यवस्था को धकेल कर निश्चिंत रह सकते हैं?

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