मोदीजी!देश में दंगाइयों,आतंकियों, और धर्म परिवर्तन करने वालों के राशन, आयुष्मान,प्रधान मंत्री आवास जप्त करे या निरस्त करें

 बस्ती से राजेंद्र नाथ तिवारी

चित्र  प्रतीकात्मक सोशल मीडिया साभार

इधर देश में दंगाइयों, आतातायियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग समय-समय पर उठती रही है। हाल ही में सोशल मीडिया पर यह मांग तेज़ हुई है कि जिन लोगों को दंगे या हिंसा के मामलों में गिरफ्तार किया गया है, उनकी सभी सरकारी कल्याणकारी योजनाओं—जैसे मुफ्त राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड, प्रधानमंत्री आवास, किसान सम्मान निधि आदि—का लाभ तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाए। इस मांग का आधार यह है कि सरकारी योजनाएं समाज के जरूरतमंद, ईमानदार और कानून का पालन करने वाले नागरिकों के लिए होती हैं, न कि उन लोगों के लिए जो समाज में अशांति फैलाते हैं।

ऐसी मांगों के पक्ष में तर्क यह दिया जाता है कि अगर दंगाइयों को सरकारी सुविधाएं मिलती रहेंगी, तो वे कानून का भय नहीं मानेंगे और समाज में अनुशासनहीनता बढ़ेगी। इससे ईमानदार नागरिकों के मन में भी सरकार के प्रति अविश्वास पैदा हो सकता है। इसलिए, दंगों या हिंसा में लिप्त पाए गए लोगों को इन योजनाओं से वंचित करना एक सख्त और आवश्यक कदम माना जा सकता है।

दूसरी ओर, सरकारी योजनाओं का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को आर्थिक, स्वास्थ्य और आवासीय सुरक्षा देना है। अगर इन योजनाओं का लाभ अपराधियों को मिलता है, तो यह न केवल सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग है, बल्कि ईमानदार नागरिकों के साथ अन्याय भी है। उदाहरण के लिए, आयुष्मान भारत योजना का लाभ गरीबों को मुफ्त इलाज के लिए दिया जाता है, लेकिन अगर कोई अपराधी इसका लाभ उठाता है, तो यह योजना के उद्देश्य के खिलाफ है।

हाल ही में कई राज्यों में सरकारी योजनाओं में फर्जीवाड़े और घोटाले भी सामने आए हैं, जिनमें फर्जी लाभार्थियों के नाम पर करोड़ों रुपये का भुगतान किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि योजनाओं की निगरानी और पात्रता की जांच को और सख्त करने की जरूरत है। यदि दंगाइयों के नाम पर भी लाभ मिलता है, तो यह भ्रष्टाचार और अपराध को बढ़ावा देगा।

कई देशों में अपराधियों के खिलाफ ऐसी सख्त नीतियां अपनाई जाती हैं, जहां सरकारी सुविधाओं से उन्हें वंचित कर दिया जाता है। इससे समाज में कानून का डर बना रहता है और लोग अपराध करने से पहले कई बार सोचते हैं। भारत में भी अगर ऐसी नीति लागू होती है, तो यह एक सकारात्मक संदेश देगा कि सरकार अपराध और हिंसा के मामलों में कोई नरमी नहीं बरतेगी।

हालांकि, यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि केवल गिरफ्तारी के आधार पर किसी का लाभ बंद करना न्यायसंगत नहीं होगा। जब तक कोर्ट में दोष सिद्ध न हो, तब तक किसी को अपराधी नहीं माना जा सकता। इसलिए, अंतिम निर्णय अदालत के फैसले के बाद ही लिया जाना चाहिए, ताकि निर्दोष लोगों को अनावश्यक रूप से सजा न मिले।

सरकार को चाहिए कि वह सभी कल्याणकारी योजनाओं में लाभार्थियों की पात्रता की समय-समय पर समीक्षा करे। अगर कोई व्यक्ति दंगे या हिंसा के मामले में दोषी पाया जाता है, तो उसे इन योजनाओं से वंचित किया जाए और यह नियम सभी राज्यों में समान रूप से लागू हो। इससे समाज में अनुशासन और कानून का सम्मान बढ़ेगा।

अंत में, सरकारी योजनाओं का लाभ केवल उन लोगों को मिलना चाहिए जो देश के कानून और संविधान का सम्मान करते हैं। दंगाइयों और अपराधियों को इन योजनाओं से बाहर करना राष्ट्रहित में एक आवश्यक कदम हो सकता है, जिससे समाज में शांति, सुरक्षा और न्याय की भावना मजबूत होगी

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