देश को अभिप्रेत, कांग्रेस की प्रेतछाया से मुक्त हो देश!

राजेंद्र नाथ तिवारी


आज कल  कांग्रेस, पीडीए सहित अनेक विपक्षी दल मोदी,शाह और संघ को कच्चा चबा लेने को  तैयार बैठे हैं  पर नियति उनके विरूद्ध है,कांग्रेस संघ की शाश्वत विरोधी है .कांग्रेस को अगर भारतीय राजनीति का कालनेमी कहा जाय तो सटीक बैठेगा.कांग्रेस संविधान फूंके,संविधान में बदलाव करे,कांग्रेस न्यायपालिका की हत्या करे,कांग्रेस प्रेस का गला  घोंटे,कांग्रेस चीन और पाकिस्तान को जमीन दे,कांग्रेस पाकिस्तान प्रस्तवातंकियों को भारत के विरुद्ध प्रोत्साहित करे,कांग्रेस भाषा वाद,प्रांतवाद,अलगाव माओवाद को धार,कम्युनिस्टिवको राज,स्वजनों की हत्या,दोगली राजनीति,मिजोरम में बम वर्षा,सिख नरसंहार,गांधी,आंबेडकर केवविचारों की हजारबार हत्यारिन कांग्रेस,देश की संपत्ति पर लुट का एकाधिकार वाली कांग्रेस,परिवार बाद की पोषक कांग्रेस, कितने मुद्दे गिनाए लिखना,पढ़ना दोनों कम पड़ जय,पर कांग्रेस के कुकृत्य का धारावाहिक कभी भी न समाप्त होने वाला.अनावश्यक मुद्दे उठाना, प्रधानमंत्री पद न पाने की हताशा,खरगे पूत का कुत्सित बयान??

देश के ज्वलंत मुद्दों से भागती कांग्रेस,पाकिस्तान,चीन परस्त कांग्रेस,  ने आजकल एक मुद्दे को भड़ास और बौद्धिक व्यभिचार कर  तो कांग्रेस विवादित बयान की माहिर है. पहला यह है कि 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत दो शब्द-‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’-संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए.वह आपातकाल का दौर था, लिहाजा संसद, न्यायपालिका और मीडिया ‘बंधक’ की स्थिति में थे. विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता जेल में बंद थे. संविधान सभा के दौर में जाएं, तो इन शब्दों पर व्यापक बहस हुई थी. सांसद प्रो. केटी शाह और कामथ सरीखों ने संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत इन शब्दों को जोडऩे की मांग की थी.संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर की दलीलें थीं कि ये शब्द औसत भारतीय की आत्मा में समाए हैं. अनुच्छेद 31 में इन शब्दों का उल्लेख है. नीति निर्देशक तत्त्वों में भी ये शब्द शामिल हैं. इन्हें संविधान की प्रस्तावना में रखने से लोकतंत्र का लचीलापन समाप्त होगा. लोकतंत्र नष्ट भी हो सकता है, लिहाजा वह प्रस्ताव गिर गया और बाबा अंबेडकर ने उन दो शब्दों को प्रस्तावना में नहीं जोड़ा.1976 के संविधान संशोधन के बाद छह साल भाजपा-एनडीए की वाजपेयी सरकार केंद्र में रही और अब 11 साल से मोदी सरकार मौजूद है। इनके अलावा, 1977-80 के दौरान जनता पार्टी भी सत्ता में रही.सवाल है कि वे शब्द क्यों नहीं हटाए गए? जब 2020 में सर्वोच्च अदालत में एक याचिका दाखिल की गई, जिस पर 2024 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली न्यायिक पीठ ने फैसला सुनाया कि इतने लंबे सालों के बाद इन शब्दों से छेड़छाड़ न की जाए.पीठ ने ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ की व्याख्या भी की.यह राजनीतिक विडंबना है कि ‘मंडल बनाम कमंडल’ की राजनीति के दौर में एक शब्द बदल कर ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहा जाने लगा और भाजपा समर्थक राजनीति को ‘सांप्रदायिक’ करार दिया जाने लगा. अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए दो शब्दों को ‘नासूर’ करार दिया है, लिहाजा राजनीति ज्यादा विषाक्त हो गई है। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ पहले आरएसएस के सरकार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय होसबले ने इस मुद्दे को गरमाते हुए कहा है कि इन दो शब्दों को हटाने पर विचार किया जाना चाहिए. दूसरा मुद्दा बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण से जुड़ा है. विपक्ष चिल्ल-पौं कर रहा है कि उसके वोट बैंक के कई नाम सूचियों से काटे जा सकते हैं और भाजपा-समर्थक नाम जोड़े जा सकते हैं.

विपक्ष का लगातार आरोप रहा है कि चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और हरियाणा में भी ऐसा ही किया था, नतीजतन भाजपा सरकारें बनीं. सवाल यह है कि बीते 11 सालों के कालखंड के दौरान चुनाव आयोग की मंशा, चुनावी कवायदों, मतदाता सूचियों के संशोधन आदि शक के घेरे में क्यों हैं? मौजूदा चुनाव आयोग को ‘भाजपापंथी’ आरोपित क्यों किया जाता है? क्या चुनाव आयोग इतनी घालमेल कर सकता है कि भाजपा की ही सरकार बने, तो देश के कई राज्यों में कांग्रेस, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, झामुमो और वामदलों की सरकारें क्यों और किस आधार पर हैं? ये जवाब विपक्ष नहीं देगा.संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को मतदान कराने से पूर्व मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण और संशोधन के विशेषाधिकार प्राप्त हैं. यह कवायद हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले की जाती रही है. विपक्ष की कुछ दलीलें सार्थक हैं कि आयोग बिहार में 2003 के बाद बने मतदाताओं के सत्यापन करना चाहता है और यह संख्या करीब 5 करोड़ है, क्या यह कवायद मात्र 25 दिन में पूरी की जा सकती है? बेशक 98,000 से अधिक बूथ लेवल अफसर घर-घर जाकर डाटा इक_ा करेंगे. इसे नागरिकता की पात्रता का भी साक्ष्य माना गया है। पहले घर-घर जाकर दस्तावेज और निजी डाटा इक_ा करेंगे, फिर उसका संकलन होगा, फिर सूचियां छापी जाएंगी, उस पर किसी भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार को आपत्ति होगी, तो उसका समाधान निकालना पड़ेगा.

इस देश को अभिप्रेत ,

कांग्रेस को निर्मूल करे देश.

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