अराजक राज्य की ओर बढ़ता कनाडा ::खालिस्तानिओ का अभ्यारण्य बनता जारहा क्यों?? आर क़े सिन्हा

 क्यों खालिस्तानी सक्रिय हैं कनाडा में


आर.के. सिन्हा

कनाडा में खालिस्तानी ताकतें भारत  और हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगल रही हैं। दुख इस बात का है कि मित्र देश होने के बावजूद कनाडा सरकार कुछ नहीं कर रही है। अब ताजा मामले में खालिस्तानियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी पर निकाली परेड में पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गांधी को आपत्तिजनक रूप में दिखाया। बीती 6 जूनको कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में खालिस्तानियों ने 5 किलोमीटर लंबी परेड निकाली। इसमें एक झांकी में इंदिरा गांधी की हत्या का सीन दिखाया गया। झांकी में इंदिरा गांधी को खून से सनी साड़ी पहने दिखाया गया है। उनके हाथ ऊपर हैं। दूसरी तरफ दो शख्स उनकी तरफ बंदूक ताने खड़े हैं। इसके पीछे लिखा है-बदला। कनाडा अपने को एक सभ्य देश होने का दावा करता है। पर वहां अलगाववादियोंचरमपंथियों और हिंसा की वकालत करने वाले खुल कर खेल कर रहे हैं। आप इंदिरा गांधी की कुछ नीतियों से असहमत हो सकते हैंपर यह कोई भी भारतीय सहन नहीं करेगा कि उन्हें आपत्तिजनक तरीके से झांकी में पेश किया जाए। बेशकइस सारे घटनाक्रम से भारत स्तब्ध है। इस कट्टरपंथ की सार्वभौमिक तौर पर निंदा होनी चाहिए। पता नहीं क्यूँ, प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विदेशों में जाकर ज़हर उगलने वाले राहुल अपनी दादी के अपमान पर क्यों नहीं बोल रहे। कनाडा लंबे समय से खालिस्तानियों की गतिविधियों का केंद्र बन चुका है। वहां पर मंदिरों में भी तोड़फोड़ की जाती है। कनाडा का ब्रैम्पटन शहर तो भारत विरोधी गतिविधियों का गढ़ बन चुका है। कनाडा में बार-बार इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। जुलाई 2022 में कनाडा के रिचमंड हिल इलाके में एक विष्णु मंदिर में महात्मा गांधी की मूर्ति को खंडित कर दिया गया था।

 सितंबर 2022 में कनाडा में  स्वामीनारायण मंदिर को कथित खालिस्तानी तत्वों ने भारत विरोधी भित्ति चित्रों के साथ विकृत कर दिया था। पर वहां की पुलिस की काहिली और निकम्मेपन के कारण दोषी पकड़ में नहीं आते। कौन भूल सकता है  कनिष्क विमान हादसे को। मांट्रियाल से नई दिल्ली आ रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क को 23 जून 1985 को आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय9,400 मीटर की ऊंचाई परबम से उड़ा दिया गया था और वह अटलांटिक महासागर में गिर गया था। इस आतंकी हमले में 329 लोग मारे गए थेजिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी जिम्मेदारी को निभाने में असफल रहे हैं। वे कथित किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे। तब ट्रूडो  कह रहे थे कि "कनाडा दुनिया में कहीं भी किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा।" क्या कनाडा  की खुफिया एजेंसिया इतनी घटिया हैं कि उन्हें पता ही नहीं है कि वहां पर खालिस्तानी सक्रिय हैंउन्हें भारत-विरोधी तत्वों पर कठोर एक्शन लेना चाहिए। जस्टिन ट्रूडो  2018 में  भारत यात्रा पर आए थे। वे अमृतसर से लेकर आगरा और मुंबई से लेकर अहमदाबाद का दौरा करने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले तो  उन्हें कायदे से समझा दिया था कि " भारतधर्म के नाम पर कट्टरता तथा अपनी एकताअखंडता और संप्रभुता के साथ समझौता नहीं करेगा।" उनका इशारा कनाडा में खालिस्तानी तत्वों की नापाक भारत विरोधी गतिविधियों से था। 

कनाडा की लिबरल पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो कहने को तो एक उदार देश से हैं। उन्हें भी यह समझ लेना होगा कि भारत भी एक उदार और बहुलतावादी देश है। उनकी उस भारत यात्रा के समय तब तगड़ा हंगामा हो गया थाजब पता चला था कि नई दिल्ली में कनाडा हाई कमीशन ने अपने प्रधानमंत्री के सम्मान में आयोजित एक कार्य्रक्रम में कुख्यात खालिस्तानी आतंकी जसपाल अटवाल को आमंत्रण भेजा है।  अटवाल पर कनाडा में वर्ष 1986 में एक निजी दौरे पर गए पंजाब के मंत्री मलकीत सिहं सिद्धू पर जानलेवा हमला करने का आरोप साबित हो चुका है। कनाडा सरकार की बेवकूफिय़ों के कारण वहां पर खालिस्तानी सक्रिय हैं। ये भारत को फिर से खालिस्तान आंदोलन की आग में झोंकना चाहते हैं। आपको याद होगा कि कनाडा की ओंटारियो विधानसभा ने 2017 में 1984 के सिख विरोधी दंगों को सिख नरसंहार और सिखों का राज्य प्रायोजित कत्लेआम करार देने वालाएक प्रस्ताव भी पारित किया था।इस तरह की गतिविधियों से स्पष्ट है कि कनाडा में भारत के शत्रु बसे हुये हैं। ये खालिस्तानी समर्थक हैं। 

समझ नहीं आता कि कनाडा सरकार वहां पर खालिस्तानियों पर लगाम क्यों नहीं लगा पा रही है। भारत सरकार इसके चलते कनाडा सरकार से खासी नाराज भी है।  भारत इंदिरा गांधी को झांकी में गलत तरीके से दिखाने पर नाराज है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा को लताड़ लगाते हुए कहामुझे लगता है कि ये मुद्दा  दोनों देशों के संबंधों के लिए सही नहीं है और न ही ये कनाडा के लिए ही ठीक है। अब भारत कनाडा से इतनी तो उम्मीद करेगा ही कि वह खालिस्तानियों को कस दे।  एक बात माननी होगी कि कनाडा अराजकता के अंधकार में डूब रहा है। वहां पर तीन साल पहले पाकिस्तान फौज की तरफ से बलूचिस्तान में किए जा रहे जुल्मों-सितम के खिलाफ आवाज उठाने वाली प्रखर महिला एक्टिविस्ट करीमा बलोच की निर्मम हत्या पाकिस्तान की धूर्त और शातिर इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई ने करव दी थी थी।  बलोच पाकिस्तान सरकारसेना और आईएसआई की आंखों की किरकिरी बन चुकी थीं। वह पाकिस्तान सरकार की कालीकरतूतों की कहानी लगातार दुनिया को बता रही थीं। इसीलिए उसे आईएसआई ने ठिकाने लगा दिया। 

बलोच के कत्ल नेसाफ कर दिया  था कि कनाडा एक अराजक मुल्क के रूप में आगे बढ़ रहा है। वहां पर खालिस्तानी तत्व तो पहले से ही जड़ें जमा ही चुके हैं। हैरानी इस बात की है कि इन सब बातों को जानने के बावजूद भारत के बहुत से लोगों का ख्वाब है कनाडा में जाकर बसना।

(लेखक वरिष्ठसंपादकस्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

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