जब बाढ़ आती है तब सांप बिच्छू गोजर एक ही डाली पर बैठ जाते हैं। ठीक वही स्थिति आज मोदी के सामने हताश ,निराश और दिग्भ्रमित विपक्ष की है ।विपक्ष का कोई वजूद नहीं है फिर भी अरण्यरोदन से उन्हें कोई रोक नहीं सकता ।विपरीत दिशाओं के खींचे जाने वाले घोड़े की तरह विपक्षी है ।क्या यह कभी भी संभव होगी ?जिस तरह से सूरज पश्चिम नहीं हो सकता उसी तरह से कभी भी भारतवर्ष में विपक्षी एकता नहीं हो सकती।राहुलो व् निशिथो से अच्छा तो दुर्योधन ही था जिसने यहाँ तक कह दिया ,"व्यम्पन्चधिकम शतम्
राजनीतिक परिस्थिति कुछ भी हो और मोदी के खिलाफ कतई नहीं है देश का 75% से ऊपर का मानस मोदी के तरीके कोई भी विकल्प सोचने को तैयार नहीं है राहुल गांधी हैं जो एक अनावश्यक और निरर्थक वक्तव्य को अंजाम देते हैं विदेश में भी जाकर मीरजाफर राम भी और जयचंद की परंपरा का पालन कर रहे हैं व्यक्तिगत रूप से मेरी मान्यता है कि राहुल गांधी के खिलाफ देश का विदेशों के सामने गलत चित्रण करने के लिए एफ आई आर दर्ज करना चाहिए और ऐसे लोगों को जो कुछ भी हो अपने मंच पर कहने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन राहुल गांधी से अच्छा तो दुर्योधन था जिसने 100 और 5 105 मिलकर वयं पंचायती कम शतम के सिद्धांत का पालन किया वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों में भारत में विपक्षी एकता ‘गूलर के फूल’ की मानिन्द क्यों होती जा रही है? इसका जवाब भी विपक्षी दल ही दे सकते हैं क्योंकि अपने लक्ष्य को लेकर जिस प्रकार की गफलत है
उससे इनकी एकता की संभावनाएं क्षीण होती हैं। मसलन तृणमूल कांग्रेस की नेता सुश्री ममता बनर्जी से लेकर तेलंगाना की भारत राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष के. चन्द्रशेखर राव और दिल्ली की आम आदमी पार्टी के नेता श्री अरविन्द केजरीवाल और ओडिशा के बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक और आन्ध्र प्रदेश वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी तक की चाल विपक्षी एकता के मुद्दे पर अलग-अलग नजर आती है जबकि ये सभी नेता जानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर वे किसी भी सूरत में सत्तारूढ़ भाजपा का विकल्प नहीं बन सकते।
बेशक अपने राज्यों में वे भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं परन्तु राष्ट्रीय राजनैतिक सन्दर्भों में उनकी इस एकल लड़ाई का कोई विशेष महत्व नहीं है। दरअसल में ‘नेतृत्व व अगुवाई’ में अन्तर होता है और ‘एकता व एकजुटता’ में भी अन्तर होता है। अतः यदि सभी विपक्षी दल एक साझा मंच पर आना चाहते हैं तो उन्हें एकजुटता की बात करनी होगी न कि एकता की। एकजुटता में यह विकल्प रहता है कि इसमें शामिल सभी राजनैतिक दल अपना पृथक अस्तित्व बनाये रखते हुए एक साथ आएं और मिलकर आपसी समझ पैदा करके चुनाव लड़ें।
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