जो जाग्रत है उसे परमात्मा के दर्शन होते हैं-राघवाचार्य
सुख की इच्छा ही दुःख का कारण है। ईश्वर की सेवा के बदले जो कुछ मांगे वह तो व्यापारी हुआ, वहां भक्ति कहां है। सत्य ही वह साधन है जिसके सहारे मनुष्य सत्यनारायण हो जाता है। हरिश्चन्द्र ने पत्नी का विक्रय करके भी सत्य का निर्वाह किया था। महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य के प्रसंग में श्रीकृष्ण को असत्य बोलना पड़ा था। उनके असत्य बचन भी सत्य है क्योंकि उससे लोक मंगल की भावना जुड़ी है। जो व्यक्ति बलि की भांति तन, मन, धन भगवान को अर्पित करता है भगवान उसके द्वारपाल बनते हैं। यह सद्विचार गुरू स्वामी राघवाचार्य जी महाराज ने शिव नगर तुरकहिया में भाजपा जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल के आवास पर आयोजित 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
दशम स्कन्ध को भगवान श्रीकृष्ण का हृदय बताते हुये महात्मा जी ने कहा कि कंस अभिमान है, वह जीव मात्र को बन्द किये रहता है। संसार में जो जाग्रत रहता है उसे ही परमात्मा के दर्शन होते हैं। यश सभी को दोगे और अपयश अपने पास रखोगे तो कृष्ण प्रसन्न होंगे। दूसरे को जो यश दे वही तो यशोदा माता है। जो व्यक्ति वसुदेव की भांति श्रीकृष्ण को अपने मस्तक पर विराजमान करते हैं उनके सभी बन्धन टूट जाते हैं। सम्पत्ति और सन्तति का सर्वनाश हो गया था फिर भी वसुदेव-देवकी दीनता पूर्वक ईश्वर की आराधना करते हैं।
श्रीकृष्ण जन्म के उद्देश्य का रोचक वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि ब्रम्ह सम्बन्ध होने पर जगत के बन्धन टूट जाते हैं। यशोदा के गोद में खेलते हुये बाल कृष्ण का गोपियां दही से अभिषेक करने लगी। आनन्द में पागल गोपियां कन्हैया का जय-जयकार कर रही है। महात्मा जी ने कहा कि जो सदैव आनन्द में रहे वही नन्द हैं। ईश्वर से मिलन होने पर जीव आनन्द से झूम उठता है। उत्सव तो हृदय में होना चाहिये। आजकल लोग शरीर की अपेक्षा मन से अधिक पाप करते हैं। शरीर को मथुरा बनाओ तो आनन्द आ जाय।
भाजपा जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल , माता श्यामा देवी ने विधि विधान से परिजनों, श्रद्धालुओं के साथ व्यास पीठ का वंदन किया। मुख्य रूप से सुशील सिंह, अनिल पाण्डेय, विजय तिवारी, रामउग्रह जायसवाल, रामचरन चौधरी, सुधाकर पाण्डेय, ब्रम्हानंद शुक्ला, सुरेन्द्र कुमार त्रिपाठी, विनय उपाध्याय, योगेश शुक्ला, गिरीश पाण्डेय, अनूप खरे, अखिलेश शुक्ला के साथ श्रद्धालु श्रोता उपस्थित रहे।
दशम स्कन्ध को भगवान श्रीकृष्ण का हृदय बताते हुये महात्मा जी ने कहा कि कंस अभिमान है, वह जीव मात्र को बन्द किये रहता है। संसार में जो जाग्रत रहता है उसे ही परमात्मा के दर्शन होते हैं। यश सभी को दोगे और अपयश अपने पास रखोगे तो कृष्ण प्रसन्न होंगे। दूसरे को जो यश दे वही तो यशोदा माता है। जो व्यक्ति वसुदेव की भांति श्रीकृष्ण को अपने मस्तक पर विराजमान करते हैं उनके सभी बन्धन टूट जाते हैं। सम्पत्ति और सन्तति का सर्वनाश हो गया था फिर भी वसुदेव-देवकी दीनता पूर्वक ईश्वर की आराधना करते हैं।
श्रीकृष्ण जन्म के उद्देश्य का रोचक वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि ब्रम्ह सम्बन्ध होने पर जगत के बन्धन टूट जाते हैं। यशोदा के गोद में खेलते हुये बाल कृष्ण का गोपियां दही से अभिषेक करने लगी। आनन्द में पागल गोपियां कन्हैया का जय-जयकार कर रही है। महात्मा जी ने कहा कि जो सदैव आनन्द में रहे वही नन्द हैं। ईश्वर से मिलन होने पर जीव आनन्द से झूम उठता है। उत्सव तो हृदय में होना चाहिये। आजकल लोग शरीर की अपेक्षा मन से अधिक पाप करते हैं। शरीर को मथुरा बनाओ तो आनन्द आ जाय।
भाजपा जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल , माता श्यामा देवी ने विधि विधान से परिजनों, श्रद्धालुओं के साथ व्यास पीठ का वंदन किया। मुख्य रूप से सुशील सिंह, अनिल पाण्डेय, विजय तिवारी, रामउग्रह जायसवाल, रामचरन चौधरी, सुधाकर पाण्डेय, ब्रम्हानंद शुक्ला, सुरेन्द्र कुमार त्रिपाठी, विनय उपाध्याय, योगेश शुक्ला, गिरीश पाण्डेय, अनूप खरे, अखिलेश शुक्ला के साथ श्रद्धालु श्रोता उपस्थित रहे।