विश्व का पहला विश्वविद्यालय तक्षशिला आखिर किस हालत में है.

 तक्षशिला विश्वविद्यालय को दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय माना जाता है. ये तक्षशिला शहर में था, जो प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था. माना जाता है विश्वविद्यालय छठवीं से सातवीं ईसा पूर्व में तैयार हुआ था. इसके बाद से यहां भारत समेत एशियाभर से विद्वान पढ़ने के लिए आने लगे. इनमें चीन, सीरिया, ग्रीस और बेबीलोनिया भी शामिल हैं. फिलहाल ये पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले की एक तहसील है और इस्लामाबाद से लगभग 35 किलोमीटर दूर है.



वैसे इस विश्वविद्यालय का जिक्र माइथोलॉजी में भी मिलता है. कहा जाता है कि इसकी नींव श्रीराम के भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर की थी. बाद के समय में यहां कई सारे नई-पुराने राजाओं का शासक रहा. इसे गांधार नरेश का राजकीय संरक्षण मिला हुआ था और राजाओं के अलावा आम लोग भी यहां पढ़ने आते रहे. वैसे ये गुरुकुल की शक्ल में था, जहां पढ़ने वाले नियमित वेतनभोगी शिक्षक नहीं, बल्कि वहीं आवास करते और शिष्य बनाते थे

अफगानिस्तान के हिन्दूकुश से लेकर भारत के अरुणाचल तक और भारत के कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जो भी जाति, धर्म, समाज और भाषा के लोग निवास करते हैं वे सभी पंचनंद और ऋषि कश्यप की संतानें हैं। हालांकि अब भारतीयों के धर्म अलग-अलग होने से उन्होंने अपनी भाषा, संस्कृति और इतिहास को भी बदल लिया है। 


यहां के हिन्दू, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, मुसलमान, सिख आदि सभी एक ही कुल और धर्म के हैं, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। रोमन, यूनानी, पुर्तगाली, अरब, तुर्क और अंग्रेजों ने सब कुछ बदलकर रख दिया। अब अपने ही लोग अपनों के खिलाफ हैं।

 
बौद्ध धर्म का विस्तार : भगवान बुद्ध के समय के बाद भारत में हिन्दू एवं जैन, चीन में कन्फ्यूशियस तथा ईरान में जरथुस्त्र विचारधारा का बोलबाला था। बाकी दुनिया ग्रीस को छोड़कर लगभग विचारशून्य ही थी। ईसा मसीह के जन्म के पूर्व बौद्ध धर्म की गूंज जेरुशलम तक पहुंच चुकी थी।
 
ईसा पूर्व की 6ठी शताब्‍दी में ही बौद्ध धर्म का पूर्ण उत्‍थान हो चुका था। दुनिया का सबसे पहला संगठित और सुव्यस्थित धर्म बौद्ध धर्म ही था। कहना चाहिए कि पहली बार भगवान महावीर और बुद्ध ने धर्म को एक व्यवस्था दी थी। बौद्ध धर्म को मगध नरेश महान सम्राट अशोक ने इसे पूरी दुनिया में फैलाने में मुख्‍य भूमिका निभाई थी। अशोक महान के काल में ही बौद्ध धर्म भारत की सीमाओं को लांघकर दुनिया के कोने-कोने में पहुंचना शुरू हो गया था। चीन, श्रीलंका और सुदूर पूर्व में अशोक महान के शासनकाल में बौद्ध धर्म स्‍थापित हो चुका था, वहीं कुषाण शासक कनिष्‍क के काल में तो यह और द्रुत गति से स्‍थापित हुआ और संपूर्ण एशिया पर छा गया। इतिहासकारों अनुसार अरब और मध्‍य एशिया में बौद्ध धर्म को स्‍थापित करने का श्रेय कनिष्‍क को ही जाता है।
 
कनिष्‍क के काल में चौथी और अंतिम बौद्ध परिषद हुई थी। इस परिषद का उल्‍लेख ह्वेनसांग व तिब्‍बत निवासी तारानाथ ने अपनी पुस्‍तकों में किया है। नागसेन व मिलिंद के प्रसिद्ध वार्तालाप से अनुमान होता है कि ग्रीक शासक मिनांडर जिसे बाद में मिलिंद कहा गया, ने बौद्ध धर्म स्‍वीकार कर लिया था। इसके बाद तत्‍कालीन ग्रीक साम्राज्‍य भी बौद्ध धर्म के प्रभाव में आ गया था।
 
यानी बौद्ध धर्म भारत से चलकर पूर्व में तिब्‍बत, चीन, जापान, बर्मा, जावा, लंका और सुमात्रा तक फैला, जहां आज भी विद्यमान है, तो दूसरी ओर पश्चिम व मध्‍य एशिया से होते हुए अरब और ग्रीक तक फैल गया, जहां से आज वह मिट चुका है।
 
बौद्ध मठ और मूर्तियां : गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद उनकी मूर्तियां बनाने के दौर चला। उनकी खड़ी आकृति के अलावा उनके जन्‍म-जन्‍मांतर की कथाओं वाली मूर्तियां पूरे पश्चिमी व मध्‍य एशिया में निर्मित हुईं। इसमें मथुरा और गांधार शैली में विकसित और ईरानी कलाकारों द्वारा बनाई गई मूर्तियां अफगानिस्‍तान, ईरान और कहते हैं कि अरब के केंद्र मक्‍का तक विस्‍‍तृत होती चली गईं।
 
कुषाण काल में गांधार व मथुरा कला से बुद्ध की मूर्ति निर्मित हो रही थी। गांधार उत्‍तर-पश्चिमी में एक विशिष्‍ट क्षेत्र है जिसमें वर्तमान का रावलपिंडी, पेशावर और पूर्वी अफगानिस्‍तान का क्षेत्र आता है। यहां निर्मित मूर्तियां पश्चिमी यूनानी प्रभाव वाली कला और देशी बौद्ध परंपराओं के मध्‍य संश्‍लेषण का परिणाम थी। इसे ग्रीक-बौद्ध कला शैली भी कहा जाता है।


 
गांधार के कलाकार अपोलो के ग्रीक आदर्श से प्रेरित थे। उसी शैली में भगवान बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण किया गया था। वर्ष 2000 में अफगानिस्‍तान में कट्टरपंथी इस्लामिक तालिबान द्वारा बामियान में तोड़ी गई बुद्ध की सबसे विशालकाय मूर्ति गांधार शैली में ही निर्मित की गई थी। यह ग्रीक-रोमन व भारतीय रूपों का अदभुत मिश्रण थी।
 
ऊपर के उदाहरणों से स्‍पष्‍ट है कि भारत से लेकर पश्चिम व मध्‍य एशिया और यूनान तक बौद्ध धर्म का स्थापित हो चुका था और ग्रीक-भारतीय शैली के मिश्रण से उत्‍पन्‍न गांधार शैली में महात्‍मा बुद्ध व बौद्ध परिवार की मूर्तियों का निर्माण किया गया था।
 
बौद्धकाल में विद्यालय की शिक्षा अपने चरमोत्कर्ष पर थी। गुरुकुलों के ही विकसित रूप थे बड़े-बड़े महाविद्यालय। बौद्धकाल से हर्षवर्धन (6टी शताब्दी) के काल तक विश्व के लोग भारत में शिक्षा लेने आते थे। किंतु रोम में रोमन कैथोलिक ईसाई धर्म और अरब में इस्लाम के उदय के बाद दुनिया की तस्वीर बदलने लगी।
 
विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय : तक्षशिला को विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय माना जाता है। यहां पर आचार्य चाणक्य और पाणिनी ने शिक्षा प्राप्त की थी। तक्षशिला शहर प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। माना जाता है कि इसकी स्थापना 6ठी से 7वीं सदी ईसा पूर्व के मध्य हुई थी। यहां पर भारत सहित चीन, सीरिया, ग्रीस और बेबिलोनिया के छात्र पढ़ते थे।
 
इस विश्वविद्यालय को गांधार नरेश आम्भिक का राजकीय संरक्षण प्राप्त था। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठ्यक्रम था। यहां पर लगभग 64 विषयों का अध्ययन किया जाता था।
महत्वपूर्ण पाठ्‍यक्रमों में यहां वेद, वेदांत, जिन सूत्र, धम्मपद, अष्टादस विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, पशुभाषा, अश्व विद्या, मंत्र विद्या, युद्ध विद्या, राजनीति, शल्यक्रिया, शस्त्र संचालन, विविध भाषाएं, हस्त विद्या, गणित आदि की शिक्षा दी जाती थी। इसके अलावा यहां ज्ञान और विज्ञान के मामले में शोध कार्य किया जाता था। यह विद्यालय विस्तृत भू-भाग पर फैला था। कहते हैं कि सिकंदर के आक्रमण के समय यहां पर 10 हजार 500 विद्यार्थी शिक्षणरत थे। यहां के विद्यार्थी उच्च वर्ग से ही होते थे। सिकंदर को आक्रमण के लिए राजा आम्भिक ने ही बुलाया था। तक्षशिला का राजा आम्भिक राजा पुरु का शत्रु था।
 
बौद्ध ग्रंथ तेलपत्त और सुसीमजातक में तक्षशिला महाविद्यालय की भी अनेक बार चर्चा हुई है। बौद्ध भिक्षु महाविद्यालय को महाविहार कहते थे। यहां अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी आते थे। भारत और विश्व के ज्ञात इतिहास का यह सर्वप्राचीन विश्वविद्यालय था। कहते हैं कि पाटलीपुत्र से तक्षशिला जाने वाला मुख्य व्यापारिक मार्ग मथुरा से गुजरता था। बौद्ध धर्म की महायान शाखा का विकास तक्षशिला विश्वविद्यालय में ही होने के उल्लेख मिलते हैं।
 
यहां बुद्ध काल में कोसल नरेश प्रसेनजित्, कुशीनगर के बंधुलमल्ल, वैशाली के महाली, मगध नरेश बिम्बिसार के प्रसिद्ध राजवैद्य जीवक, एक अन्य चिकित्सक कौमारभृत्य तथा परवर्ती काल में चाणक्य तथा वसुबंधु इसी विश्व प्रसिद्ध महाविद्यालय के छात्र रहे थे। पाणिनी ने अपनी पुस्तकों में तक्षशिला का उल्लेख किया है। 400 ई. पूर्व में यहां के एक विद्वान कात्यायन ने वार्तिक की रचना की थी। यह एक प्रकार का शब्दकोश था, जो संस्कृत में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की व्याख्या करता था। तक्षशिला में कई बौद्ध स्तूप, विहार, मंदिर आदि स्थापित थे।
 
तक्षशिला पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। ईसा पूर्व 400 साल पहले ह्वेनसांग ने इसे ता-चा-शि-ले कहकर पुकारा था, ऐसा पाकिस्तान म्यूजियम के ब्रोशर में लिखा है। तक्षशिला का इतिहास ईसा से 600 वर्ष पहले शुरू होता है। हालांकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस नगर को भरत के पुत्र तक्ष ने बसाया था। ऐसा कहा जाता है कि राजा तक्ष को यक्ष खंड का राजा माना जाता था, जो आज के ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच का क्षेत्र है। वर्तमान में उज्बेक की राजधानी को ताशकंद कहा जाता है, जो तक्ष का बिगड़ा हुआ रुप ही है। 
 
1863 ई. में जनरल कनिंघम ने तक्षशिला को यहां के खंडहरों की जांच करके खोज निकाला। इसके बाद 1912 से 1929 तक सर जॉन मार्शल ने इस स्थान पर खुदाई की और प्रचुर तथा मूल्यवान सामग्री को खोजकर इस नगरी की वैभवता को प्रकट किया। माना जाता है कि 6ठी सदी के अंत में अरब और तुर्क के मुस्लिम आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय और नगर का विध्वंस कर दिया था।
 
पहली सदी से लेकर 10वीं सदी के बीच अश्वघोष, नागार्जुन, आर्यदेव, मैत्रेय, असंग, वसुबन्धु, दिग्नाग, धर्मपाल, शीलभद्र, धर्मकीर्ति, देवेन्द्रबोधि, शाक्यबोधि, शान्त रक्षित, कमलशील, कल्याणरक्षित, धर्मोत्तराचार्य, मुक्तकुंभ, रत्नकीर्ति, शंकरानंद, शुभकार गुप्त तथा मोक्षकार गुप्त आदि अनेक बौद्ध दार्शनिक पैदा हुए। चौथी सदी के पेशावर निवासी असंग अद्वैत विज्ञानवाद के प्रवर्तक थे। उनके छोटे भाई वसुबन्धु थे जिन्होंने अयोध्या में रहकर बौद्ध त्रिपिटक के सार के रूप में ‘अभिधम्म कोश' की रचना की थी। दिग्नाग 5वीं सदी के दार्शनिक थे। वे बौद्ध तर्कशास्त्र तथा ज्ञान मीमांसा के सबसे महान प्रवर्तक थे। इस तरह भारत में बौद्ध धर्म 7वीं सदी तक प्रमुख रूप से विद्यमान था।
 
इस तरह विध्वंस हुआ तक्षशिला का : बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि जो लोग यह आरोप लगाते हैं कि बौद्ध धर्म को शक, हूण और कुषाणों ने नष्ट किया वे इतिहास में अरब आक्रांताओं की क्रूरता को छिपाना चाहते हैं। शक, हूण और कुषाणों ने भारत पर आक्रमण तो किया, लेकिन यहां के धर्म और संस्कृति को नष्ट करने का कार्य कभी नहीं किया। उनका मकसद शासन करना था किसी धर्म को नष्ट करना नहीं। बल्कि वे यहां की संस्कृति और धर्म में घुल-मिलकर हिन्दू या बौद्ध हो गए थे। हालांकि यह भी स्पष्ट नहीं हैं कि शक, हूण और कुषाण कौन थे। इतिहासकारों में इसको लेकर मतभेद है। कुषाणों का ही राजा था कनिष्क जिसने बौद्ध धर्म को मध्य एशिया का धर्म बना दिया था।
 
पश्चिम भारत के शिक्षा का केंद्र तशशिला ही हुआ करता था। तक्षशिला व्यापार और राजनीति का भी प्रमुख केंद्र था इसीलिए आक्रमणकारियों का पहले से ही इस पर ध्यान केंद्रित था। भारत पर आक्रमण की शुरुआत तो यूनानियों से पूर्व की रही है, लेकिन जब यूनानियों ने भारत पर आक्रमण किया तब भारत की पश्‍चिम सीमा पर प्रमुख रूप से भारतीय जनपद गांधार और कम्बोज राज्य थे। उक्त राज्यों को मिलाकर आज अफगानिस्तान है।
 
अफगानिस्तान के पहले के क्षेत्र में सौवीर, खांडव, कैकय, यदु, तृसु, वाल्हिक आदि जनपद थे जिसे मिलाकर आज पाकिस्तान है। गांधार राज्य या जनपद की राजधानी तक्षशिला हुआ करती थी। यह तक्षशिला अब पाकिस्तान का हिस्सा है।
स्रोत::शोशल मीडिया

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