प्रेत छाया !कोरोना ने देश मे लाखो लोगो को आबाद (शादी) होने से भी रोका

 


तबाह ही नहीं कारोना से आबाद भी नहीं हो सके घर


जौनपुर। 
कोरोना की लहर में सैकड़ों घर उजड़े तो, हजारों जोड़ों के घर बसाने के अरमान बह गए। शुभ मुहूर्तों पर कोरोना का ग्रहण लगने से पिछली लगन में टली शादियां इस लगन में भी शहनाई को तरसती रहीं। कोरोना ग्रहण ने युगल जोड़ों के सपनों को ही नहीं तोड़ा, गेस्ट हाउस मालिकों को भी तबाह कर दिया है। शादियों का सीजन देवोत्थान एकादशी नवंबर से  मध्य जुलाई तक रहता है। जाड़े और गर्मी के इस पूरे सीजन में नगर में पांच हजार से अधिक शादियों का औसत रहता है। गर्मी की सहालग अप्रैल से मध्य जुलाई तक ढाई हजार से तीन हजार तक शादियों का अनुमान था। इनमें से छह सात सौ शादियां हो पा रही हैं। बाकी शादियों के लिए गेस्ट हाउस बुकिग करीब 90 फीसद कैंसिल हो गईं और करीब 10 फीसद अगली जाड़े की लगन की उम्मीद में टल गई हैं।   
पिछली गर्मी की सहालग में टली शादियां अगली जाड़े की सहालग में भी महज चार मुहूर्त होने की वजह से टलीं और अधिकांश ने अप्रैल-मई में उम्मीद संजोते हुए गेस्ट हाउस की बुकिग कर दी। कोरोना की दूसरी लहर आई तो गर्मी की चार माह की सहालग में करीब तीन हजार एडवांस बुकिग में से करीब एक हजार बुकिग बरकरार रह सकीं। शहर में दो सौ अधिक शादी वाले होटल, लान  हैं। अमूमन इनमें हर शुभ तिथि पर 70-80 शादियां और तगड़ी सहालग यानी सर्वमान्य बड़ी मुहूर्त वाली तिथि पर करीब 175 शादियों की बुकिग रहती है। 
इस बार नवरात्र में मांगलिक आयोजनों की बंपर बुकिग हुई तो वेडिग कारोबार से जुड़े कारोबारियों ने बड़े पैमाने पर तैयारियां की थीं। मगर अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से पहले आंशिक कर्फ्यू फिर किश्तों में लॉकडाउन लगने से करोड़ों रुपये का कारोबार संकट में फंस गया। वेडिग कारोबार से जुड़े टेंट कारोबारी, कैटर्स, मैरिज होम संचालक तबाह हो गए हैं। रिश्ते हुए लॉक, खर्चा हुआ डाउन कोरोना संकटकाल का दूसरा सुखद पक्ष यह भी रहा है कि गाइड लाइन के मद्देनजर सीमित मेहमानों के कारण कई शादियां सादगी से घर पर ही हो गईं।
 शादी के लिए तय बजट का करीब 10-15 फीसद ही खर्च हो सका। डीजे, फ्लावर डेकोरेशन, इवेंट फंक्शन, म्यूजिक का खर्च बच गया। खासकर गांवों में कई शादियां सादगी से संपन्न हुईं। बेटी की शादी हर परिवार का सपना होता है। लेकिन इसकी तैयारी में कई मां-बाप कर्जदार हो जाते हैं। पर लॉकडाउन ने शादी के बड़े खर्च को बचाया। लॉकडाउन ने मजबूरी या दिखावे की शान शौकत के खर्च से राहत दिलाई। लोकाचार में फिजूलखर्ची न दिखावा न धूमधड़ाका। घरेलू वाद्य ढोलक, मंजीरा की धुनों पर रस्में पूरी हुईं। 
इस परंपरा को जारी रखना वक्त की जरूरत बन गई। चंद बरातियों संग लौटे वर-वधु को सैनिटाइजर, मास्क, हैंडवाश आदि पैक कराकर गिफ्ट भेंट किए गए। बरातियों का स्वागत सैनिटाइजर छिड़क कर किया गया।   बंदिशों के बावजूद कई परिवारों के लिए लॉकडाउन खुशी का सबब भी बना। न मैरिज होम न सजावट, बैंडबाजा न बरातियों की दावत। मंडप और होटल का खर्च भी बच गए। इस तरह कुछ उपहारों के साथ बेटियों की डोली घरों से विदा हुईं।

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