प्राथमिक विद्यालयों के विलय को हाईकोर्ट ने नहीं माना,, कहा प्राकृतिक न्याय के प्रतिकूल


 बस्ती , लखनऊ 

इलाहाबाद (लखनऊ) हाई कोर्ट ने 7 और 8 जुलाई 2025 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 16 जून को जारी प्राथमिक और उच्च‑प्राथमिक विद्यालयों के विलय/पेयरिंग संबंधी आदेशों को रोकने वाली याचिकाएं ठुकरा दीं।

 हाई कोर्ट का निर्णय — सार और तर्क याचिकाएँ नामंज़ूर: लखनऊ बेंच (न्यायमूर्ति पंकज भाटिया) ने दो याचिकाएँ खारिज कीं, जबकि प्रयागराज बेंच (न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह) ने अन्य याचिकाओं को भी खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि स्पष्टीकरण पहले ही मिल चुका है । पेयरिंग सर्वोत्तम विकल्प: सरकार ने स्पष्ट किया कि यह विलय नहीं है, बल्कि संसाधन-विभाजन और गुणवत्ता सुधार के लिए “पेयरिंग” है – यानी छोटे स्कूलों को नजदीकी बड़े स्कूलों से जोड़ना । कोर्ट ने RTE (Right to Education) Act के नियम (4(1)-(3)) का हवाला देते हुए कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना होता है कि बच्चों को शिक्षा के लिए पर्याप्त निकट स्कूल और परिवहन उपलब्ध हो । NEP 2020 के प्रकाश में, यह एक सुविचारित नीति है जो छोटे, कम नामांकन वाले स्कूलों में उपलब्ध संसाधनों को विखंडित होने से रोककर बेहतर शिक्षा की सुविधा सुनिश्चित करेगी । न्यायिक गैर-हस्तक्षेप: उच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक कोई प्रत्यक्ष और गंभीर उल्लंघन न सिद्ध हो — जैसे कि कोई बच्चे को शिक्षा से वंचित या अधिवृत्त करता हो — तब तक अदालतों को इस तरह की नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ।


 


पक्ष मुख्य आरग्यूमेंट याचिकाकर्ता – RTE के अंतर्गत नजदीकी स्कूल का अधिकार छिनता है।

 – यात्रा दूरी बढ़कर_dropout बढ़ सकते हैं, खासकर लड़कियों में। – कोई सर्वे या प्रभाव अध्ययन नहीं कराया गया। 

  – शिक्षकों के पदों व प्रमोशन पर प्रभाव।   सरकार – 50 से कम नामांकन वाले स्कूलों में संसाधनों का विखंडन होता है।

  – “पेयरिंग” से बेहतर शिक्षक‑छात्र अनुपात, लाइब्रेरी, खेल, डिजिटल सुविधाएं मिलेंगी।    – स्कूल बंद नहीं हो रहे, बल्कि जिसमें छात्र नहीं हैं उन्हें जोड़कर “Bal Vatika” जैसे उपयोग किया जाएगा, परिवहन की व्यवस्था होगी। 

   शिक्षक संगठनों और विपक्ष की प्रतिक्रिया उदय शंकर शुक्ल अध्यक्ष ने कहा सरकार बड़ी है विनीत भाव से विचार करे


शिक्षक संगठन जैसे UTA, PTSGA, एडजुकेशनल महासंघ आदि ने चेताया कि: इससे dropout बढ़ सकता है, विशेषकर ग्रामीण व लड़कियों में । नए शिक्षकों की नियुक्ति व वर्तमान संसाधनों की कमी पर ध्यान देने की माँग की गई


प्रदर्शन और सतर्कता, विशेषकर न्यायपालिका के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी ।


संक्षिप्त विश्लेषण 1. नीतीयुक्त निर्णय: न्यायालय ने इसे शिक्षण गुणवत्ता व संसाधन प्रबंधन की दृष्टि से उपयुक्त नीतिगत निर्णय माना, बशर्ते कि परिवहन आदि की व्यवस्था उचित रूप से की जाए। 2. संविधान सम्मत: RTE और NEP 2020 की आवश्यकताओं का पालन करने की शर्तें शासन द्वारा स्वीकार की गईं तथा कोर्ट ने भी इन्हें मान्य किया। 3. न्यायिक विवेक: अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि वास्तविक नुकसान व खामियां प्रमाणित हो जाती हैं, तो उच्च न्यायालय भी हस्तक्षेप कर सकता है। फिलहाल स्थिति में ऐसा कोई स्पष्ट नुकसान प्रमाणित नहीं हुआ।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की “पेयरिंग” नीति को संविधान और आरटीई के अंतर्गत वैध माना है, बशर्ते बच्चों की पहुंच, परिवहन सुविधा और शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित हो। हालांकि, सामाजिक विरोध, शिक्षक संघों की चिंताएं और विपक्षी दलों की चुनौती अभी भी जारी है। इस नीतिगत बदलाव के वास्तविक प्रभाव सरकारी निगरानी और डेटा (जैसे ड्रॉपआउट दर, उपस्थिति, छात्र प्रदर्शन) पर निर्भर करेंगे। यदि राज्य इन पहलुओं पर ध्यान देगा, तो यह नीति दीर्घकालिक रूप से सकारात्मक साबित हो सकती है, अन्यथा न्यायिक समन्वय और संस्थागत संदेहों और बढ़ सकते हैं।




Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form