चोर को मारने से पहले चोर बनाने वाली अम्मा को मार रहा इजराइल.

 ईरान का तानाशाही शासक इस्लाम का ना समझ,


ईरान की सबसे नीच हरकत यह है कि वह एक खलीफा बनने के चक्कर में इज़राइल को बर्बाद करने का प्लानिंग कर रहा था, और पिछले तीन दशकों में उसने कई प्रोक्सी तैयार किया है। वह खुद डायरेक्ट इज़राइल से नहीं लड़ना चाहता था। इसीलिए ईरान ने हिजबुल्ला को तैयार किया। ईरान ने ही हमास को तैयार किया, ईरान ने ही हूथी को तैयार किया है, और ईरान यह चाहता था यह तीनों संगठन मेरे से मिसाइल और हथियार लेते रहे और इज़राइल को बर्बाद करते रहें, और मैं इज़राइल से 2000 किलोमीटर दूर मौज करता रहूं और इज़राइल को बर्बाद होते देखता रहूं। लेकिन अब यह नहीं चलेगा।

 इज़राइल समझ गया कि चोरों को मारने के पहले चोर की अम्मा को मारो। वैसे ईरान अगर हारता है तो इसका एक नुकसान भारत को ये होगा कि ईरान में अमरीकी पालतू सरकार आएगी जैसे हाल में बंग्लादेश में हुई है। भारत ने बड़ी मेहनत से पाकिस्तान को अलग थलग किया है। पाकिस्तान जो अपनी जमीन के लिए इतराता था, उसकी काट करते हुए हमने ईरान के माध्यम से सेंट्रल एशिया में एंट्री ली थी। यदि कल को ईरान की ये सरकार चले गई और अमरीकी पालतू सरकार आ गयी तो वो अमरीका के इशारे पर वैसे ही काम करेगी जैसी इस समय बंग्लादेश में कर रही है।

 इसका फायदा पाकिस्तान को भी होगा क्योंकि वर्तमान ईरानी सरकार पाकिस्तान को पसन्द नही करती। इसका नुकसान रूस को भी होगा क्योंकि फिर अमरीका ईरान के माध्यम से रूस को घेरने का प्लान बनाएगा जो अब तक नही हो सका है। भारत के पास ले देकर फिर एक ऑप्शन बचेगा कि उसे गिलगित बाल्टिस्तान आजाद कर भारत मे मिलाना होगा ताकि अफगानिस्तान के माध्यम से नया रुट सेंट्रल एशिया के लिए खुले। ये पाकिस्तान, अमरीका, चीन नही चाहेंगे क्योंकि तीनों के अपने इंटरस्ट हैं।

 सरकार ये समझती है, भारत की जनता नहीं, वो इसलिए खुश है कि बुल्ले पिट रहे हैं और मजा आ रहा है। जो दुखी हैं वो भी सिर्फ इसलिए दुखी हैं कि उनके लिए भी बुल्ले पिट रहे हैं। खुमैनी निपट जाए ये तो मैं भी चाहता हूँ लेकिन ईरान की शर्तों पर निपटे। अर्थात खुमैनी हट जाए और वहां कोई उदारवादी लेकिन राष्ट्रवादी ही आये। ना कि अमरीकी पालतू जैसा अमरीका चाहता है। यदि ईरान हार गया तो ईरान में अमरीकी पालतू आएगा।

 यदि ईरान खुद से चीजें सही कर लेगा तो कोई राष्ट्रवादी आएगा, इसलिए, बेहतर है ये विवाद यहीं थम जाए। ईरान इस समय सिर्फ आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रहा है ताकि दुनिया मे उसका कोई मजाक न बनाये कि ईरान के बस का कुछ नही था। जबकि इसके उलट इज़राइल को जो सऊदी से लेकर जॉर्डन मदद कर रहे वो उसे शिया से दुश्मनी के कारण कर रहे हैं।

राजेंद्र नाथ तिवारी

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