जिस सर्व हारा और बुर्जुआ को लेकर कॉलमार्क्स,स्टालिन माओत्सेतुंग ने तलवार की धार में पर वामपंथ की नींव रखी,वह हुलस गई है. अब वाम पंथ अपनी अंतिम सांसों गिन रहा है.
यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क में भी आया कि ऐसा क्यों है कि वामपंथ में जन कल्याण की बाते यानी गरीब को ऊपर उठाने की, जातिगत समानता की बातें होती है फिर क्यों थोड़े समय बाद लोग इससे दूर क्यों हो जाते है। इस के जबाब में अभी यूट्यूब पर एक वीडियो मिला जिसमे उसमे इसका जबाब दिया।
इसमें बतलाया गया है कि बास्तव में राजा लोगों की इच्छाओं को पूरा करने वाला व्यक्ति होता है। जो भी व्यक्ति प्रजा की हित की बात करता है तो प्रजा वहुत जल्दी उसकी और आकर्षित हो जाती है लेकिन राजा अगर उन प्रजा के हितों को पूरा नही कर पाता तो उसे जल्दी ही उतार भी देती है।
वामपंथी शुरू में बड़ी लच्छेदार बातों से प्रजा को मोहित करते है। समस्याओं को बतलाते है। लेकिन इनके पास राजा बनने पर भी समाधान नही होता। जब इनके पास समाधान नही होता तो ये प्रजा पर खुद ही क्रांति के नाम से शोषण करते है। विश्व मे रूस, फ्रांस में लाखों लोग मार दिए गए।
जब ये प्रजा द्वारा सत्ता से उतार दिए जाते है तो प्रजा में लेखन से, न्याय के नाम से, शासन में अधिकार के नाम से ऊंचनीच, वर्ग भेद, पुराने विचारों पर प्रजा पर शासन करते है। शासन में अपना प्रभुत्व जताने के लिये मीडिया, ज्यूडिशियरी, शिक्षा, शासन में घुस कर पेंठ बनाते है। यानी सरकार भले ही प्रजा दूसरी बदल दे लेकिन सिस्टम इनका ही चलता है। ये सबसे पहले उन लोगों पर पहले अपने तीर चलाते है जो इनके सिस्टम में खतरा है जैसे व्राह्मण, पूंजीपति, पुरानी धरोहर आदि, क्योंकि ये इनके एजेंडे को सूट नही करती।
कहना का मतलब इनके पास समस्या बतलाने को वहुत कुछ होता है लेकिन उन समस्यओं का प्रक्टिकल समाधान कैसे निकाल पाएंगे उसमे यह फैल हो जाते है। यही हमने त्रिपुरा, बंगाल और केरल में देख लिया। बंगाल बहुत पीछे चला गया। केरल भी खुद इतने संसाधन होते हुए भी पीछे है। अमेरिका, कनाडा, इटली में इनको अभी प्रजा ने दूर कर दिया। रूस, चीन और उत्तरी कोरिया में ये अपनी कमियों को छिपाने के लिये लोकतंत्र की जगह कठोर तंत्र अपनाते है।