सरकार देश हित में उर्दू को देवनागरी लिपि में भी लिखे जाने की अनिवार्यता स्वीकारे

 भारत की अपनी भाषा और बोली है उर्दू, पर उसे  लिप्यान्तरित  कर भारतियों के बहु संख्या समाज से योजनावद्ध दूर कर दिया गया ही.होसकता है कुछ और निहितार्थ रहा हो पर इतना तो सत्य हे उर्दू  के साथ साथ राजनीति खूब हुई है . 


मैं एक वामन प्रयास कर रहा हु होसक्ता है कुछ का समर्थन भी मिले और नही भी.तथापि राष्ट्र कर्तव्य मान स्वत:स्फूर्त भावना को मूर्त देने के प्रयास में सहयोग कर्ताओ के प्रति कृत्यग्ता ज्ञापित अवश्य ही करूंगा,था भी होसक्त ही मेरे पूर्व किसी ने उर्दू को देवनागरी लिपि में भी लिखे जाने का महनिय प्रयास किया भी हो पर मेरे गिलहरी प्रयास पर सहयोग अवश्य अपेक्षित है,.चुकी इस समय सरकार चुनाव में व्यस्त है इसलिए नीति आयोग को पत्र लिख विचार हेतु आग्रह निवेदित किया है .

मेरा कोई शोध या अध्ययन आधिकारिक नहीं हे पर इतना अवश्य कह सकता हू, कि राष्ट्र और समाज हित का यह निर्णय अगर होता है तो उर्दू और हिंदी के पूर्वाग्रही दुकानदार अवश्य प्रभावित होंगे.इस निर्णय को स्वीकार कर मिस्लिम समाज अपनी सदाशयता को सर्व ग्राही और सर्व व्यापी बना सकता है.

गुगल से साभार सामग्री में पाठकों को परोसने का प्रयास कर रहा हू, सकारात्मक, नकारात्मक  प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा  रहेगी.

भारत में उर्दू का उदय मुग़लों के आगमन के साथ हुआ। अब चूँकि मुग़ल, अरब त को करथा फ़ारस प्रदेशी थे, उनकी भाषा दाये से बायें लिखी जाती है। सो भारत में हिंदी के साथ रहकर उनकी भाषा में परिवर्तन हुआ। यही उर्दू कहलाई। जिसकी बदौलत आज आप और हम जानते हैं कई शब्द जो उर्दू और हिंदी में एक ही हैं। 

यदि कुछ भिन्न हैं तब भी बोलने में उर्दू को हिंदी की ही भाँति बोला जाता है और हम समझ सकते हैं।इसमें वही हिंदी वाले संयोजक और कारक प्रयोग होते हैं। भले ही ये सम्मिश्रण अनजाने में हुआ, कुछ लोग इसे उर्दू की अपनी आयडेंटिटी बताएँ, लेकिन मैं इस बात पर अड़ा रहूँगा कि उर्दू का आज जो स्वरूप है वो हिंदी के साथ रहने से हुआ। या यूँ कहें कि उर्दू को उर्दू बनाया है भारत की बोलचाल ने। हालाँकि हिंदी का भी उस वक़्त तक उतना विकास नहीं हुआ था।लेकिन पाली और अपभ्रंश से हिंदी बनी ना की उर्दू से। जबकि उर्दू ने भारत की भाषा में मिलकर अपना आज का स्वरूप पाया।

उर्दू का इतना विकास हो जाने के बावजूद उसका लिखित स्वरूप अब भी बरक़रार है, क्यूँकि इसे ऐसे ही पढ़ा पढ़ाया जाता है। आप देख सकते हैं की उर्दू में नुख़्ता और अन्य कई अक्षर संयोजक हैं जिन्हें उर्दू में पढ़ना पढ़ाना सहज है। इस कारण से उर्दू को अब भी अरबी लिपि में लिखा जाता है।

उर्दू ने भले ही अपनी लिपि बरक़रार रखी हो, लेकिन भारत में रहने का एक ऐडेड अड्वैंटिज भी मिला है इसे। भारत में रहकर जितनी प्रसिद्धि इस भाषा ने पाई उसमें देवनागरी का बहुत बड़ा योगदान है। उर्दू को देवनागरी में लिखने का ही ये नतीजा है की अधिक से अधिक लोग इसे पढ़, समझ पाए, बिना अरबी लिपि ज्ञान के।

उम्मीद करता हूँ, मैं आपका उत्तर दे पाया हूँ

उर्दू भाषा भी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है गूगल से प्राप्त स्रोतों के अनुसार देखिए

देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, नेपाली, तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।

अधितकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है)इसे शिरोरे़खा कहते हैं। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल आइपीए लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है।

भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग ‘हू-ब-हू’ उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका कोई ख़ास मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या आइएएसटी।

इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।

भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं (उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं — क्योंकि वो सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।

१) वर्तमान में संस्कृत ,पाली , हिन्दी , मराठी , कोंकणी , सिन्धी, काश्मीरी , नेपाली , बोडो , मैथिली आदि भाषाऒं की लिपि है ।

२) उर्दू के अनेक साहित्यकार भी उर्दू लिखने के लिए अब देवनागरी लिपि का प्रयोग कर रहे हैं ।

३) इसका विकास ब्राम्ही लिपि से हुआ है ।

४) यह एक ध्वन्यात्मक ( फोनेटिक या फोनेमिक ) लिपि है जो प्रचलित लिपियों ( रोमन , अरबी , चीनी आदि ) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है ।

५) इसमे कुल ५२ अक्षर हैं , जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं ।

६) अक्षरों की क्रम व्यवस्था ( विन्यास ) भी बहुत ही वैज्ञानिक है । स्वर-व्यंजन , कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण , अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं ।

७) एक मत के अनुसार देवनगर ( काशी ) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पडा ।

८) इस लिपि में विश्व की समस्त भाषाओं की ध्वनिओं को व्यक्त करने की क्षमता है । यही वह लिपि है जिसमे संसार की किसी भी भाषा को रूपान्तरित किया जा सकता है ।

९) इसकी वैज्ञानिकता आश्चर्यचकित कर देती है ।

१०) भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं ( उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान है । इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है ।

११) यह बायें से दायें की तरफ़ लिखी जाती है ।

१२) देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल , सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है ।


४) उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी । – खुशवन्त सिंह

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