गुरुपर्व पर विशेष पाथेय, राजेन्द्र नाथ तिवारी

 वैदिक रीति के द्वारा अनुप्राणित जीवन शैली के अनुसार व्यक्ति के जीवन में चार आश्रमों का प्रावधान है।  ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ , सन्यास।  



*प्रथमे नार्जिता विद्या,*


*द्वितीये नार्जितं धनम् ।*

*तृतीये नार्जितं पुण्यं,*

*चतुर्थे किं करिष्यति*


अर्थात जिस व्यक्ति ने, पहले आश्रम (ब्रम्हचर्य) में विद्या अर्जित नहीं की। दूसरे आश्रम (गृहस्थ) में धन अर्जित नहीं किया। तीसरे आश्रम (वानप्रस्थ) में पुण्य अर्जित नहीं किया। हे मनुष्य अब चौथे आश्रम (सन्यास) में क्या करोगे?


यदि व्यक्ति अपने जीवन की संपूर्ण तरुण अवस्था एवं युवावस्था के कुछ भाग को ज्ञान प्राप्ति में व्यतीत करता है तो उसे विद्या की प्राप्ति होती है।  

तत्पश्चात गृहस्थ जीवन सफल बनाने के क्रम में धनार्जन की बारी आती है । इन दोनों को प्राप्त कर लेने के बाद मनुष्य का ध्येय यशकीर्ति होना चाहिए।  

ऐसा व्यक्ति जिसने इन तीनों को प्राप्त कर लिया हो, उसे मोक्ष प्राप्ति के लिए संघर्षरत नहीं होना पड़ता है।  सपाट शब्दों में अभिव्यक्ति की जाए तो चतुर्थ अवस्था में कैवल्य की प्राप्ति स्वतः स्फूर्त जैसी हो जाती है।  


उपर्युक्त चारों अवस्थाओं को आकार देने और साकार करने हेतु मार्गदर्शन के लिए व्यक्ति को जीवन में गुरु की आवश्यकता होती है जो मशाल बनकर जीवन में पूर्णिमा की भूमिका का निर्वाहन करता है। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर जगत के समस्त जीवों को गुरु और गुरुत्व की प्राप्ति हो , इन्हीं शुभकामनाओं के साथ गुरु पूर्णिमा पर साधुवाद।

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