111 नई नगर पंचायतो ने एक हजार से ऊपर की गांव पंचायतो का अस्तित्व एक झटके में समाप्त कर दिया.

 

बस्ती
प्रदेश में नई नगर पंचायतों के गठन, नगर पालिका परिषद और नगर निगमों के सीमा विस्तार से करीब एक हजार से अधिक ग्राम प्रधानों और दस हजार से अधिक वार्ड सदस्यों का कार्यकाल पांच की बजाय डेढ़ साल में ही खत्म हो गया है। ग्राम पंचायतों के निकायों में शामिल होने से ग्राम प्रधानों व वार्ड सदस्यों के राजनीतिक भविष्य पर तलवार लटक गई है।अप्रैल 2021 में हुए पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान और वार्ड सदस्य बनने के लिए उम्मीदवारों ने पूरे दम के साथ चुनाव लड़ा था। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने पांच वर्ष तक ग्राम प्रधान बनकर अपनी राजनीति संवारने का सपना देखा था। लेकिन सरकार ने इस दौरान 111 नई नगर पंचायतों का गठन और करीब 122 निकायों का सीमा विस्तार कर इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सरकार के इस फैसले से 45 जिलों की एक हजार से अधिक ग्राम पंचायतों का अस्तित्व खत्म हो गया और ग्राम प्रधानों और वार्ड सदस्यों का कार्यकाल डेढ़ वर्ष में ही खत्म हो गया।
इसलिए नहीं रह सकते ग्राम प्रधान
पंचायतीराज विभाग के उप निदेशक योगेंद्र कटियार कहना है कि ग्राम प्रधान बनने की पहली शर्त है कि व्यक्ति उस ग्राम पंचायत का निवासी हो। ऐसे में नगर निकाय सीमा में शामिल होने के बाद ग्राम पंचायत का अस्तित्व ही समाप्त हो गया तो ग्राम प्रधान पद पर निर्वाचित व्यक्ति ग्राम प्रधान कैसे बना रह सकता है।

इस लिए लड़ सकते हैं निकाय चुनाव
ग्राम पंचायत के नगरीय निकाय में शामिल होने से जिन ग्राम प्रधानों या वार्ड सदस्यों की कुर्सी छिन गई है उनके सामने अब नगर निकाय चुनाव में चेयरमैन या सभासद का चुनाव लड़ने का रास्ता खुला है। जानकारों का मानना है कि भले ही ग्राम प्रधानों की कुर्सी चली गई है, लेकिन चेयरमैन और सभासद के चुनाव में कोई भी राजनीतिक दल उनकी अनदेखी नहीं कर सकता है।



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