श्रीअयोध्या
बताते है कि मन्त्र बडे शक्तिशाली होते हैं, उल्टा जप भी उल्टा ही फल देता है।और सीधे यप यज्ञ का कुछ विलम्ब से ही.जब विश्व के सर्वाधिक दर्शनीयता में एक श्री अयोध्या जी का श्री हनुमानगढ़ी मन्दिर बताते है सनातन परंपरा का स्वतः स्फूर्त केंद्र है।जहाँ से प्रतिदिन देश विदेश ले हजारों जन आकर सुख,शांति की तलाश करते रहते हैं. सैकड़ो वर्ष की ऐतिहासिकता व तमाम उतार चढ़ाव का साक्षी यह मंदिर असंख्य नर नारियो,आबाल वृद्ध का आध्यात्मिक चेतना स्थल व विश्रामस्थल भी है।कहा जाता है श्री हनुमानजी को बुद्धिमत्ताम वरिष्ठम भी कहा गया है पर उनके ही मन्दिर में शायद विश्व का सबसे प्रभावशाली सकारात्मक चेतना का केंद्र स्थानीय प्रबन्धन की बौद्धिक दोर्यवल्लता का शिकार होगया है।
भक्त श्री हनुमान जी के दर्शन के बाद सामने के बरामदे के बगल की भित्ति पर उत्तकीर्ण संगमरमरी शिलाओं पर जब दृष्टिपात करता है तो वहाँ श्री श्रीहनुमानचालीसा का स्वगत पाठ करता है कि इससे शांति मिलेगी.पर उसमे उत्तकीर्ण पंक्ति में भयंकर त्रुटि खुदी है"शंकर स्वयं केशरी नन्दन" यह जहाँ हास्यास्पद है वही श्री हनुमानगढ़ी के सन्तो,महन्तो व सहयोगियों व पण्डा पुजारियो की मेधा व जानकारी पर प्रश्नचिन्ह!
यह विश्वाश करना कठिन है कि अति विशिष्ट तीर्थ स्थल जहाँ प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तक का आना हो वह गलत हनुमानचालीसा का पाठ करना कराना दोनो पाप को आमंत्रित करता है।मुझे विश्वाश है दीवाल पर उत्तकीर्ण हनुमान चालीसा को हटाकर हनुमानगढ़ी प्रबन्धन भूल सुधार अवश्य करेगा।ज्ञातव्य है अगर यह लिखावट किसी अन्य धर्मावलम्बी के साहित्य की होती तो आप कल्पना कर सकते है।ततदजन्य मार काट का।सैकड़ो वर्षो से हनुमान चालीसा का पाठ अयोध्या की हनुमान गढ़ी का प्रबंधन त्रुटि पूर्ण लिखावट के लिए क्षमा मांगे और भूल सुधार भी करे।
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