करोड़ो बोधिष्ट पर्यटकों के आने का आकर्षण, साथ ही विदेशी मुद्रा भी


 

आर.के. सिन्हा


भारत में बीते कुछ सालों के दौरान बहुत से नए हवाई अड्डे चालू होते रहे हैं और आने वाले समय में यह सिलसिला तो जारी ही रहेगा। प्रधानमंत्री जी तो देशभर में 200 से ज्यादा हवाई अड्डों का जल बिछा देने का संकल्प लिये हुये हैं I लेकिनउत्तर प्रदेश के कुशीनगर में शुरू हुआ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अपने आप में विशेष महत्व रखता है। इसके चालू हो जाने से बौद्ध देशों से तीर्थयात्रियों को भारत में लाने में भारी मदद मिलेगी। इसके चालू होने से दुनिया के बौद्ध धर्म को मानने वाले अनेक देशों में रहने वाले बौद्ध के अनुयायी उनके परिनिर्वाण स्थल (वह स्थान जहां बौद्ध ने अंतिम सांस ली थी) की यात्रा आसानी से कर सकेंगे। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नए हवाई अड्डे का उदघाटन कर रहे थे तब वहां पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के पुत्र और कैबिनेट मंत्री नमल समेत दक्षिण कोरिया,थाईलैंडसिंगापुर,वियतनाम,जापान आदि देशों के डिप्लोमेट मौजूद थे। इनकी उपस्थिति ही इस बात की गवाही है कि बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों के लिए कुशीनगर हवाई अड्डे का कितना महत्व है। यदि आप कभी थाईलैंड या श्रीलंका नहीं गए तो सच में आपको यकीन नहीं होगा कि वहां के बुद्ध मंदिरों में हर समय बौद्ध  देशों के हजारों पर्यटक आ-जा रहे होते हैं। ये भगवान बौद्ध  की मूर्तियों के दर्शन करके अभिभूत होते रहते हैं। ये स्थिति तब है जब इन देशों का बौद्ध धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं है। श्रीलंका तो यह स्वीकार करता है कि बौद्ध धर्म उसे उपहार में भारत से ही मिला।

बहरहालकुशीनगर,श्रावस्ती और कपिलवस्तु के आसपास बौद्ध सर्किट को विकसित किया जा रहा है। इसके अलावामध्य प्रदेश,बिहार,गुजरात और आंध्र प्रदेश में कई बौद्ध सर्किट परियोजनाओं को चालू किया जा चुका है। आप जानते हैं कि पर्यटन का क्षेत्र उन क्षेत्रों में से एक है जो कोविड महामारी से सबसे पहले और बुरी तरह प्रभावित हुआ। अब चूंकि हालात सुधर रहे हैं तो माना जा सकता है  भारत के बौद्ध सर्किट से जुड़े स्थानों पर विदेशी पर्यटकों की आवक तेजी से बढ़ेगी।

देखिए भारत में बौद्ध के जीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थलों के साथ एक समृद्ध प्राचीन बौद्ध विरासत है। हमें यह सोचना होगा आखिर हम बौद्ध की भूमि होने के बावजूद दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों को आकर्षित करने में अभी तक क्यों कमजोर रहे। भारतीय बौद्ध विरासत दुनिया भर में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत रुचिकर है। कुशीनगर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। भगवान बौद्ध ने कुशीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया जो भारत के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है। कुशीनगर में प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में बौद्धों के लिए सबसे पवित्र मंदिरों में से एक प्राचीन महापरिनिर्वाण मंदिररामभर स्तूप,कुशीनगर संग्रहालयसूर्य मंदिर,निर्वाण स्तूप,मठ कुआर तीर्थ,वाट थाई मंदिरचीनी मंदिर,जापानी मंदिर आदि शामिल हैं। लेकिन फिर भी हमारे देश में अन्य कुछ देशों की तुलना में बहुत कम ही बौद्ध पर्यटक आते रहे हैं। इसका कारण है कि हमारी पूर्व सरकारों ने मुग़ल स्मारकों को जिस प्रकार महिमामंडित किया, जो वास्तव में हमारी गुलामी की याद दिलाते थे, बौद्ध स्मारकों को संरक्षित और संवर्धित नहीं किया जो हमारी आध्यात्मिक समृद्धि के प्रतीक थे I

बौद्ध पर्यटक भारत में दो-तीन हफ्ते गुजारते ही हैं।  बोधगया से वैशालीसारनाथ से कुशीनगर का चक्कर लगाते ही रहते हैं कुछ तो नागपुर की दीक्षा भूमि भी जाकर देखते हैं जहाँ डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी I मोदी सरकार ने अब सोचना शुरू किया है कि  भगवान बुद्ध को मानने वाले देशों से पर्यटकों को भी भारत लाना है। यह पर्यटकों का एक बहुत ही बड़ा समूह है। दुनियाभर में फैले करोड़ों बौद्ध धर्म के अनुयायियों को अभी तक तो हम भारत के प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों की तरफ लाने में तो बुरी तरह असफल ही रहे  हैं। यह एक सच्चाई है।

अकेले थाईलैंड में ही हर साल साढ़े चार-पांच करोड़ पर्यटक आते हैं। श्रीलंका में भी इसी प्रकार आते हैं तो हमारे भारत में जो बौद्ध धर्म का केंद्र है, पर्यटक क्यों नहीं आते ? यह एक विचारणीय प्रश्न है ?

 जान लें कि बोधगया और उससे सटे बुद्ध सर्किट के शहरों-राजगीर और नालंदावैशालीवाराणसीसारनाथ और कुशीनगर का दौरा करने वाले सभी पर्यटक साल भर में मोटा पैसा भी खर्च करते है जो स्थानीय अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है ।

भारत बुद्ध पर्यटकों को अपनी तरफ  आकर्षित करने के स्तर पर भारत थाईलैंड से बहुत कुछ सीख सकता है। वहां नए-नए बुद्ध तीर्थ स्थल विकसित हो रहे हैंउसी तरह से हमें भी बौद्ध सर्किट पर विकास करने होंगे। हमने कुछ तो किए भी हैं। उदाहरण के रूप में राजधानी दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित महाबोधि मंदिर है। यह दिल्ली का पहला बौद्ध बुद्ध मंदिर है। इसका उदघाटन महात्मा गांधी ने 1939 में किया था।  यहाँ भगवान बौद्ध की एक सुंदर मूर्ति स्थापित है। इसके साथ ही हमें  राजधानी में स्थित लद्दाख बौद्ध विहार को भी अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए विकसित करना होगा। बौद्ध विहार के साथ लद्दाख का नाम पढ़कर आपको हैरानी हो सकती है। दरअसल इस बौद्ध विहार के लिए केन्द्र सरकार ने दिल्ली में रहने वाले लद्दाख के बौद्ध समाज के लोगों को जगह आवंटित की थी। ये 1963 की बात है। आप यहां कश्मीरी गेट के मेट्रो स्टेशन से भी पहुंच सकते हैं। यहाँ भी  भगवान बौद्ध की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में कई छोटे प्रार्थना पहिए लगे हुए हैं। एक बड़ा पहिया मंदिर के मुख्य द्वार पर लगा हुआ है। यहां के सारे वातावरण में आध्यात्मिक शांति मिलती है। इसके आगे यमुना नदी बहती है। दिल्ली की भागम भाग भरी जिंदगी के बीच यहां पर कुछ लम्हें गुजार लेना चाहिए। लद्दाख बौद्ध विहार में एक समृद्ध लाइब्रेरी भी है।

बेशककुशीनगर हवाई अड्डा के शुरू होने के बाद कुशीनगर के लिए पर्यटन के अवसरों में तेजी से वृद्धि होने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश और बिहार के  बौद्ध तीर्थयात्रा सर्किट विशेष रूप से श्रीलंका,जापानताइवानदक्षिण कोरियाचीन और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से  पर्यटकों के आने का सिलसिला तेज होगा। अब भारत का पहले लक्ष्य यह होना चाहिए अगले पांच सालों में भारत में बौद्ध देशों से कम से कम एक करोड़ पर्यटक तो हर साल आ ही जाएं। इसके लिए हमें बौद्ध से जुड़े तीर्थ स्थलों के आसपास की सड़कों और होटलों को विश्व स्तरीय बनाना होगा। अगर हम एक बार इस दिशा में कायदे से पूँजी निवेश कर देंगे तो हमें बहुत लाभ होगा। सबसे बड़ा लाभ तो ये होगा कि स्थानीय नवयुवकों के रोजगार के अवसर बहुत बढ़ जाएंगे।

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

 

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