ब्राह्मणों को ब्रम्हफांस में बांधने की तैयारी में यूपी के सियासी दल!
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ।
उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में अक्सर दलित और मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करने के लिये राजनैतिक दल भिड़ते थे। 2014 से भाजपा ने अति पिछड़े और अति दलित वोटों में सेंधमारी कर सत्ता हाशिल करके विपक्षी दलों को चौंका दिया। अब विपक्षी दल भी भाजपा के कोर वोट ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने के नया- नया दांव चल रहे हैं। इससे न केवल भाजपा परेशान हो रही है बल्कि ब्राह्मणों को अन्य दलों में तरजीह दिखती मिल रही है। हर कोई अपने-अपने तरीके से ब्राह्मणों का हितैषी होने का दावा ठोंक रहा है। 2022 विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल ब्राह्मण मतदाताओं को साधने में जी जान से जुट गये हैं।राम नगरी अयोध्या में रविवार को आयोजित बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलन का श्रीगणेश कर सभी राजनीतिक दलों की रात की नींदे उड़ा दी है।
सतीश चंद्र मिश्र का दावा है कि 2007 में बसपा ने जिताऊ ब्राह्मणों को सबसे ज्यादा टिकट दिया था। हम 2022 में भी यह दुहराना चाहते हैं।बीएसपी की इस पहल के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी बीएसपी की राह पद चल पड़े हैं। सपा प्रमुख ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, पूर्व कैबिनेट मंत्री मनोज पांडेय, अभिषेक मिश्र, पूर्व विधायक सनातन पांडेय व संतोष पांडेय को पार्टी से ब्राह्मणों को जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है। सपा का पहला ब्राम्हण सम्मेलन बलिया में किया जायेगा। सपा नेता संतोष पांडेय पहले ही भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवाने के ऐलान कर चुके हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि 1989 से पहले कांग्रेस ही ब्राह्मणों की पार्टी थी। कांग्रेस ने 1991 से पहले उत्तर प्रदेश को 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिया है। भाजपा ने ब्राह्मणों की सबसे ज्यादा दुर्गति किया है।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व 2012 में अखिलेश यादव की सरकार को उखाड़ने में सबसे अहम रोल निभा चुके डॉ लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि बसपा का नफरत भरा नारा "तिलक तराजू औ तलवार इनको मारो जूते चार" ब्राह्मण समाज कभी नहीं भूल सकता। जब मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब सपा मुखिया ने कन्नौज में ब्राह्मणों पर अत्याचार का नया कीर्तिमान स्थापित किया था। कांग्रेस कब राम के जन्म का, कब रामसेतु का प्रमाण मांगने लगेगी इसका कोई ठिकाना नहीं है। सपा ने मखताब-मदरसों में तो धन की बरसात कर दिया था लेकिन संस्कृत विद्यालय के अध्यापकों के साथ अन्याय किया है।जिसके कारण उसे सरकार से जाना पड़ा।ब्राह्मण भाजपा के साथ था, है और रहेगा।
ब्राह्मण कभी भी शरणागति नही स्वीकारता,उपरोक्त सबकी कथनी करनी में एकही साम्यता है वह है"शरणागति"
जिसके पास ब्राह्मणत्व ही नही उसी के सहारे चुनावी नोकायन का प्रयास यदि होगा तो उसमें चरित्र की भी प्रधानता होनी चाहिए.चारो नाम अब मिथक सिद्ध होचुके है और चारो में एक चीज कामन है " सावंत:सुखाय". फिरभी इनके अस्तित्व को नकारना भी किसे के लिए पार्टी लेबिल पर असम्भव नही तो कठिन अवश्य होगा.