जीवन पथ का पाथेय !

 मूर्ख शिष्योपदेशेन दुष्ट स्त्रिभरनेनच .


दु:खितए:सम्प्रयोगेन पंडितोपयवसीदति.. कौटिल्य

अर्थात मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन - पोषण से और दुखियों के साथ संबंध रखने से बुद्धिमान व्यक्ति भी दुखी होता है .तात्पर्य है कि मूर्ख शिष्य को कभी भी उचित उपदेश नहीं देना चाहिए पतित आचरण करने वाली स्त्री की संगति भी दुख का कारण है. विद्वान तथा वाले व्यक्ति को इनकी संगति से दुख उठाना पड़ता है वास्तव में शिक्षा उस व्यक्ति को देनी चाहिए जो सुपात्र हो जो व्यक्ति बताई गई बात को न समझे उसे परामर्श देने से कोई लाभ नहीं मूर्ख व्यक्ति को शिक्षा देकर समय ही नष्ट किया जाता है .इस तरह पतिता स्त्री का भरण-पोषण अथवा उसकी संगति करके विद्वान व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंचती है और उसका अपमान होता है .

यही बात दु :खी व्यक्ति के संबंध में भी है .दु :खी व्यक्ति हर पल अपना ही रोना रोता है .इससे विद्वान व्यक्ति की साधना और एकाग्रता भंग हो जाती है. एकाग्रता भंग होना अथवा साधना में व्यवधान पढ़ना बुद्धिमान व्यक्ति को बहुत कचोट ता है इसलिए मूर्ख शिष्य और कुसंगति कार्य महिला तथा सभी लोगों से दूर रहने में ही अपनी और समाज की भलाई है.

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