राम मंदिर और देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल

 



आर.के. सिन्हा 

दशकों की कानूनी लड़ाई के बाद अंततः सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया । अब वहां पर भव्य श्री राम मंदिर बनेगा। इसी क्रम में राम जन्मभूमि मंदिर न्यास ने मंदिर के निर्माण के लिए सबसे सहयोग राशि मांगी है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मांगी थी। राष्ट्रपति जी ने मंदिर निर्माण के लिए पहला दान दिया। उन्होंने इसके लिए 5,01,000 (पांच लाख एक) रुपए का दान दिया और इस अभियान की सफलता के लिए अपनी व्यक्तिगत शुभकामनाएं भी दीं। याद रखिए कि वे देश के राष्ट्रपति होने के साथ-साथ एक नागरिक भी हैं। उनकी भी अपनी धार्मिक आस्थाएं और निष्ठाएं हैं।  इसलिए अगर उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए एक राशि दे दी तो कुछ सेक्युलरवादी जल-भुन क्यों गए। वे कह रहे हैं कि राष्ट्रपति पद पर बैठे इंसान को धार्मिक क्रिया-कलापों से अपने को दूर रखना चाहिए। क्यों क्या ऐसा कहीं संविधान में लिखा है क्या ?

संविधान में राम-कृष्ण

राष्ट्रपति जी पर सवाल खड़े करने वाले जरा ठीक से पता कर लें कि भारत के संविधान की मूल प्रति में रामकृष्ण और नटराज के चित्र क्यों हैं। यही नहीं, हमारे  संविधान की मूल प्रति पर शांति का उपदेश देते हुये भगवान बुद्ध भी और पूर्व सभ्यता के प्रतीक मोहन जोदड़ों के चित्र भी हैं जो अब कायदे से पाकिस्तान के अंग है। हिन्दू धर्म के एक और अहम प्रतीक अष्ट कमल भी संविधान की मूल प्रति पर हर जगह मौजूद हैं। पूरा मुखपृष्ठ ही कमल दल को संजोकर बनाया हुआ है I  संविधान की मूल प्रति में मुगल बादशाह अकबर भी दिख रहे हैं और सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह भी वहां मौजूद हैं। मैसूर के सुल्तान टीपू और 1857 की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के चित्र भी संविधान की मूल प्रति पर उकेरे गए हैं। तो राष्ट्रपति जी पर सवालिया निशान खड़े करने वाले जान लें कि हमारा संविधान नास्तिक भारत के निर्माण की वकालत तो कदापि नहीं करता। यह देश की समृद्ध संस्कृति और सभी प्रकार की धार्मिक आस्थाओं का पूरा सम्मान करता है।

ये विक्षिप्त मानसिकता के तत्व यह भी कह रहे हैं कि राष्ट्रपति कोविंद ने देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद का अनुसरण किया तो यह तो बहुत अच्छा ही किया है । डा. राजेन्द्र प्रसाद 1951 में जब सोमनाथ मंदिर का पुननिर्माण पूरा हुआ तो खुद इसका उद्घाटन करने के लिए गए थेहालांकि तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को यह पसंद नहीं आया था और उन्होंने खुले तौर पर विरोध भी किया था । राजेन्द्र बाबू,  नेहरु जी और सोमनाथ मंदिर का उदाहरण देने वाले अपना इतिहास का ज्ञान थोड़ा सा दुरुस्त कर लें। जो नेहरु जी आपत्ति जता रहे थे राजेन्द्र बाबू के सोमनाथ मंदिर जाने पर वे स्वयं दिल्ली में हजरत बख्तियार काकी की दरगाह की मरम्मत के लिए तो कभी पीछे नहीं हटे थे। उस समय नेहरु की धर्म निरपेक्षता कहां चली गई थी दरअसल काकी की दरगाह को 1947 में भड़के दंगों में कुछ क्षति पहुंचाई गई थी। उसे देखने के लिए 27 जनवरी 1948 को गांधी जी महरौली स्थित काकी की दरगाह में गए थे। उसे देखने के बाद उन्होंने नेहरु जी को निर्देश दिए कि वे इसकी मरम्मत करवाएं। नेहरु जी ने तुरंत दरगाह की मरम्मत और सौंदर्यीकरण के लिए उन दिनों सरकार के कोष से 50 हजार रुपए आवंटित करवाएं। जरा सोचें कि 1948 के 50 हजार रुपए आज की तारीख में कितने होते हैं। फिर वे आगे चलकर वहां जाने भी लगे फूल वालों की सैर कार्यक्रम में भाग लेने के लिए। ये थी नेहरु जी की धर्मनिरपेक्षता। सोमनाथ मंदिर तो मुगल आक्रांताओं द्वारा कई बार तोडा गया था I लेकिनइसके पुनरोद्धार के लिये नेहरु ने तो कभी 50 रूपये भी नहीं किये थे कहाँ सोमनाथ और कहाँ एक मामूली शख्श की कब्र इसी से साबित हो जायेगा कि नेहरु और उनके चेलों की धर्मनिरपेक्षता का दोगला चरित्र कैसा है ?

 अपने को धर्मनिरपेक्षता का प्रवक्ता बताने वाले नेहरु जी की पुत्री के भी तमाम उदाहरण देते है धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने के लिहाज से। क्या उन्हें मालूम है कि दिल्ली में विगत 50 सालों में बने भव्य मंदिरों में छतरपुर में स्थित आद्या कात्यानी शक्ति पीठ मंदिर की स्थापना में उन्हीं इंदिरा जी का आर्शीवाद था। ये मां दुर्गा के कात्यायनी रूप को समर्पित मंदिर है। इसका शिलान्यास सन् 1974 में किया गया था। इसकी स्थापना कर्नाटक के संत बाबा नागपाल जी ने की थी। यह  मंदिर 70 एकड़ में फैला है। कहते हैं कि ये संसार के सबसे विशाल मंदिरों में से एक है। अगर इंदिरा जी इस मंदिर के निर्माण से जुड़ी थीं तो इसमें कोई अपराध तो वह नहीं कर रही थीं। इंदिराजी अपने पिता की तरह ढ़ोगी नहीं थी। वो मंदिरों में अक्सर जाया करती थीं और बाबा नागपाल से लेकर कांचीपीठ के शंकराचार्य चन्द्रशेखरानन्द सरस्वती (जयेन्द्र सरस्वती के गुरु ) के आशीर्वाद लेती रहती थीं ।

राष्ट्रपति भवन में मंदिर-मस्जिद

और जो राजेन्द्र बाबू के सोमनाथ मंदिर में जाने को बार-बार मुद्धा बनाते हैंवे  जान लें कि उन्हीं की पहल पर राष्ट्रपति भवन परिसर के भीतर मंदिर और मस्जिद दोनों ही का निर्माण हुआ था। चूंकि राष्ट्रपति भवन से सटे ही हैं चर्च और गुरुद्वारा इसलिए इनके निर्माण की जरूरत महसूस नहीं की गई होगी। राजेन्द्र बाबू और उनकी पत्नी श्रीमती राजवंशी देवी प्रसाद दिवालीईदक्रिसमसबाबा नानक जन्म दिन आदि त्यौहार पूरे राष्ट्रपति भवन के सैकड़ों कर्मचारियों के साथ मनाते थे। अगर राजेन्द्र बाबू उन आयोजनों में व्यस्ततावश कुछ देर तक रूकने के बाद चले जाते थे  तो भी उनकी अति सरल पत्नी सारे कार्यक्रम में पूरे समय उपस्थित रहती थी। उन्हें राष्ट्रपति भवन में सब मां ही कहते थे। आप अब भी राष्ट्रपति भवन में रहे पुराने लोगों से पूछे सकते हैं कि राजेन्द्र बाबू रमजान के दौरान खत्म शरीफ के मौके पर राष्ट्रपति भवन की मस्जिद में अवश्य ही जाते थे। रमजान में सभी मस्जिदों में कुरआन सुनाया जाता है। वो जिस दिन मुकम्मल होता हैउसे खत्म शरीफ कहते हैं। खत्म शरीफ पर राष्ट्रपति मस्जिद में गाजे-बाजे के साथ पहुंच कर इमाम साहब को पगड़ी पहनाते थे। उन्हें उपहार भी देते थे । उस मौके पर राष्ट्रपति भवन में रहने वाला स्टाफ और उनके परिजन बड़ी संख्या में उपस्थित रहते थे । इस मस्जिद को राष्ट्रपति भवन मस्जिद ही कहा जाता है। ये रिवायत राजेन्द्र बाबू ने शुरू की थी। बेशकउनके जैसे पवित्र शख्स को लेकर मिथ्या प्रचार करने वाले घोर पाप कर रहे हैं।

चलिए फिर लौटें अपने मूल विषय पर। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए एक लाख रुपए का चेक सौंपा है। अच्छी बात यह कि अय़ोध्या के मुसलमान भी राममंदिर के निर्माण में आगे आ रहे हैं। सबको पता है कि वे तो पहले भी राम मंदिर के निर्माण को लेकर काफी सकारात्मक थे। विवाद फ़ैलाने वाले तो ये तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी ही थे बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय लेखिका तसलीमा नसरीन ने भी कहा कि राम मंदिर के लिए अनेकों मुसलमान दान दे रहे हैं। मुसलमानों को मंदिर के लिए धन जुटाने के लिए आगे आना भी चाहिए। अगर मुस्लिम दान करते हैंतो इससे हिंदू-मुस्लिम सद्भाव मजबूत होगा और हिंदुओं के साथ उनके संबंध बेहतर होंगे।

राम मंदिर निर्माण में सबसे बड़ी बाधा तो सेक्युलरवादी और असदुद्दीन ओवैसी जैसे मुसलमानों के कथित नेता ही थे। पर वह तमाम अवरोध तो अब हट चुके हैंI

(लेखक  वरिष्ठ संपादकस्तभकार और पूर् सांसद हैं)

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