चाहे जो मजबूरी हो हमारी मांगे पूरी हो आखिर क्यों ?

 बस्ती, उत्तरप्रदेश,7 दिसम्बर 20

आज किसान आंदोलन के समर्थन में भारत बंद को दोदर्जन रानीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है। कोई घनियाली आंसू बहा रहा तो कोई अपनी बन्द रानीतिक दुकान का किसान आंदोलन के सहारे अपनी दुकान का शटर उठाने को एक अवसर मान रहा है

भारतीय रणनीति का यहएक विद्रूप चेहरा है कि दूसरे के कंधे का इस्तेमाल खूब किया जाता है।किसान नेताओं व आंदोलन करियो की नियति पर कही शक की गुंजाइश नही ,पर जिस तरह अपनी मरी राजनीति को फिर से जिंदा करने का ख्वाब देखा जा रहा है वह निंदनीय और घृणित भी।किसान इस देेे की पहचान है, अन्नदाता है विष्णु का प्रतिनिधि है जो समय भरण पोषण करता है।किसान अन्फॉलन को अशहिष्णु कौन कर रहा है,फंडिंग कहा सर रही है,और सबसे बड़ी बात की उनकी ब्रेनवासिग कौन कर रहा है?सरकार की निगाह आखिर वहाँ क्यो नहीं? जारही जो आंदोलन के पृष्ठ व वित्त पोषक है।

किसानों को आगे कर अपनी आहुति देना विपक्ष का कार्य है।किसानों को समझना चाहिए कि इन्हें अपनी चिंता है किसानों की नही।भगवान करे आज का पूरा आंदोलन  अहिंसक हो । पर किसान क्योंही समझते  देश उन्ही का है,बिना उनके देश नही चल सकता।आज अधिकांश पार्टियों के नेता आत्म श्लाघा में नजर बन्द है।आखिर क्यों कहना पड़ा कि राजनीति पार्टियां अपने झंडे के साथ प्रदर्शन में हिस्सा न लें।अपनी सरकार से अपने लोगो द्वारा यह कहना चाहे जो मजबूरी हो ,हमारी मांगे पूरी हों।कैसे सम्भव है।



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