अर्णब गोस्वामी को लेकर मीडिया जगत में समाज में और न्याय क्षेत्र में जो हलचल चल रही है वह स्वाभाविक है सत्ता कभी भी किसी के भी सत्यता का हनन कर सकते हैं ,सत्ता में हंकार होता है, सत्ता में उपकृत करने और
पतित करने ,होने की अद्भुत क्षमता होती है क्योंकि उसके पास कुर्सी होती है ,यह बात सत्य है की सारी सीमाओं को लाघकर अर्णब गोस्वामी की पत्रकारिता थी परंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि अर्णब गोस्वामी को सजा दी जाए जिसके वह पात्र नहीं थे।
अर्णव गोस्वामी ने रिपोर्टिंग के समय स्थतापित सारे मानदंड तोड़े थे ,लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर जो बातें संविधान से अंगीकृत की गई हैं उसमें अर्णब गोस्वामी का कोई अपराध नहीं बनता ।हमारे कुछ कहने से कोई आत्महत्या कर लेता है और कई साल बाद उसके राजनीतिक नेता नीहितार्थ से जुड़े जाते हैं गलत बात है ।
यद्यपि रिपब्लिक टीवी ने अहंकार वश यह टी आर पी पावर या कुछ ज्यादा ही दिखा कर जेन केन प्रकारेण अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए कुछ किया होगा परंतु महाराष्ट्र सरकार ने जो उनके साथ किया वह नहीं होना चाहिए था। दुर्भाग्य इस बात का है कि इस देश में जुडिशल ट्रायल अलग चलता है ,और मीडिया ट्रायल अलग चलता है अब तो एक नया चलन चल चल पड़ा है कि सोशल मीडिया ट्रायल भी हो रहा है। जिस तरह से महाराष्ट्र सरकार ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर रिपब्लिक टीवी पर धावा बोला है,या कार्य कर रही हैं संदेश देता है कि 25 जून 1975 के बाद इंदिरा जी ने अपने विरोधियों के साथ ऐसा ही किया था ।प्रेस पर सेंसरशिप लगाकर उन्होंने प्रेस का गला घोटने का जितना संभव था प्रयास कियाथा। आखिर शिवसेना सत्ता प्राप्ति के लिए कांग्रेस की नाजायज़ औलाद के रूप में काम कर रही है उसका, सामना ,अखबार शिवसेना को छोड़कर किसी भी पार्टी को पवित्रता की गारंटी नहीं दे सकता ।
और शिवसेना शिवसेना है कि कुछ भी करें तो गोमुख गंगोत्री से भी ज्यादा पवित्र है। यह नहीं चल पाएगा दुर्भाग्य इस बात का है कि सरकार का पक्ष बॉम्बे हाई कोर्ट का पक्ष हो गया जो नहीं होना चाहिए था, परंतु धन्यवाद है सुप्रीम कोर्ट का जिन्होंने सत्ता और न्यायिक अत्याचार का प्रतिकार करते हुए न्याय का पक्ष लेते हुए अर्णव गोस्वामी पर कुछ ज्यादा अत्याचार करने का संज्ञान लिया है।
मुंबई हाई कोर्ट ने जिस तरह से प्रथम दृष्टया अर्णव को अपराधी मान लिया वह उसे नहीं मानना था, संभव है कि सत्ता ट्रायल और मीडिया ट्रायल का संयुक्त अभियान हो परंतु मेरा अभिप्राय यह नहीं की सत्ता और मीडिया सत्ता और न्यायिक प्रक्रिया एक दूसरे से मिले हुए है न्याय चेहरा देख कर के फैसलाकरेगा यह होगा न्याय नहीं रहेगा ।सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जो संदेश दिया है वह लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर हो सकता है और सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अर्णव का अपराध जाने अनजाने हो सकता है परंतु इतना बड़ा अपराध नहीं था कितना जबरदस्त उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाए ।
महाराष्ट्र सरकार जिस तरह अर्णव के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव कर रही है उनके के जीवन पर खतरा है परंतु एक बात ध्यान देने योग्य चाहे रिपब्लिक टीवी हो या कोई और जिस तरह से आती अपनी महत्वाकांक्षी योजनाए लगुनकरते है वह निंदनीय है
टीवी चैनलों के वहसी पन पर सरकार को लगाम लगाना चाहिए ।चार चरणों को बैठाकरअक्षम और आयोग वक्ताओं को बुलाकर जो परिचर्चा होती है वह सर्वथा डिबेट के योग्य नहीं होते ,उन पर चर्चाएं करना और कराना वही बात है अंधा बांटे शिवनी खरे घर आना खाए ।जब किसी मीडिया हाउस पर सत्ता का पप्रहार होता है तो आंचलिक पत्रकार उनकी जी जान से मदद करते हैं परंतु आंचलिक पत्रकारों पर जब कोई हमला होता है एक कारपोरेट मीडिया के घड़ियाल घड़ियाली आंसू भी बहाना आवश्यक नहीं समझते हैं।
यह नहीं चलेगा अपने-अपने टीआरपी बढ़ाने के लिए जिस तरह से टीवी चैनलों ने आचरण किया है और कर रहे हैं वह आचरण अ राष्ट्रीय है, सरकार को ऐसे कर्मों पर रोक लगाने के लिए मीडिया नियमन कानून लाना चाहिए और यह भी लाना चाहिए कि कोई भी सत्ता सरकार नौकर शाह पत्रकारों पर अतिवाद का आरोप लगाने से बचें और पत्रकारों को भी चाहिए अपने बौद्धिक अहंकार में विवाद से बचें ।अगर इनका बौद्धिक अहंकार इसी तरह से चलता रहा तो आने वाले दिनों में जो प्रेस की स्वतंत्रता है और प्रेस की आजादी है तथा प्रेस का सम्मान है सब समाप्त हो जाएगा ।
मेरा आग्रह है कि जब इस तरह की बातें आए तो संपूर्ण मीडिया और प्रेस जगत को वयम पंचा धिकम शतम का अवलंबन करना चाहिए। परंतु सबसे बड़ा कौन के चक्कर में और विज्ञापन बटोरने के चक्कर में जो गला काट प्रतियोगिता चल रही है वह किसी भी हालत में प्रेस के लिए अच्छी नहीं है ,तमाम कारपोरेट हाउसेस मीडिया के माध्यम से काम कर रहे हैं और अपने वर्चस्व के लिएधन भी झोंक रहे हैं उसमें कोई भी हो सकता है पर सत्य तो एक ही है जो सब तरफ से सत्य हो ।
अगर हमारे लिए कुछ और आपके लिए कुछ और है तो वह सत्य है इसलिए सत्य और असत्य का विवेचन करते हुए अर्णव जैसे मामले सामने आए और मीडिया ट्रायल ना हो इसके लिए प्रयास करना चाहिए ।मैं अर्णव के अतिवाद का विरोध करते हुए उन्हें जमानत देने और उनकी सहायता बहाल रखने और उन्हें जो दंडित किया जा रहा है उसके लिए महाराष्ट्र सरकार से आग्रह करता हूं कि आरोप मुक्त कर पुनर्जीवन दे और और सत्ता का हथिया चलानाबंद कर प्रेस के लिए स्वायत्तता का मार्ग