पत्रकार को नही मिली मुख्यमंत्री कोषः की सहायता,

पत्रकार को नहीं  दिलवा सके सरकारी सहायता
   राज्यमंत्री का आश्वासन कोरा
जौनपुर। प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री गिरीश चंद यादव द्वारा लोगों के इलाज के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से दी गई सरकारी सहायता की जो सूची जारी की गई है उसमें शाहगंज के पत्रकार रवि शंकर वर्मा का नाम नदारद है इसके चलते पत्रकार काफी निराश हैं। पत्रकारों में सरकार और राज्य मंत्री के प्रति काफी आक्रोश है। उनका कहना है कि यदि प्रयास नहीं करना था तो राज्य मंत्री 5 माह से लगातार आश्वासन क्यों दे रहे हैं? पत्रकारों का काम लोगों को जमाने भर का हाल सुनाना है लेकिन इस दौर में उनका पुरसाहाल लेने वाला शायद ही कोई है। हालात तब और अजीब हो जाते हैं, जब पत्रकार समाज के प्रति पूरी ईमानदारी से संकल्पित हो लेकिन सक्षम व्यक्तियों को इसकी कद्र ही न रहे।   जिले में ऐसा ही हो रहा है, जहां के राज्यमंत्री गैर जनपद तक के लोगों को मुख्यमंत्री के विवेकाधीन राहत कोष से सहायता दिलवा देते हैं लेकिन अपने ही जिले के परेशान पत्रकार को तमाम सिफारिशों के बाद भी नजरअंदाज कर देते हैं। नतीजा.. सरकारी मदद के लिए पत्रकार दर दर की ठोकर खा रहा है। खबर है कि राज्यमंत्री गिरीश चंद्र यादव की संस्तुति पर मुख्यमंत्री विवेकाधीन राहत कोष से दो दर्जन गम्भीर रूप से बीमार लोगों को आर्थिक मदद मिली है। इसमें जौनपुर के अलावा वाराणसी के निवासी लाभार्थी भी शामिल हैं। राज्यमंत्री इसके लिए खुद की पीठ थपथपाते हैं और सबका साथ, सबका विकास के नारे की दुहाई देते हैं लेकिन यह भी सच है कि उनके ही जनपद के एक पत्रकार जो कि मुंह के कैंसर से जूझ रहे हैं, उनको तमाम जतन और सिफारिशों के बावजूद राहत पाने के लायक न समझा गया।   जिले के वरिष्ठ पत्रकारों ने उन्हें मदद दिलवाने के लिए मुहिम शुरू की थी। राज्यमंत्री   ने आश्वासन भी दिया था कि उनकी फाइल मुख्यमंत्री तक पहुंचा दी गई है लेकिन कुछ नही हुआ। इस बीच लॉकडाउन का बहाना भी बनाया गया। अब जब खबर आई कि दो दर्जन लोगों को सरकारी मदद मिली है तो जाहिर हो गया है कि हालात से परेशान पत्रकार को सिर्फ कोरा आश्वासन ही दिया गया था। ये भी साफ हो गया है कि सरकार और शासन प्रशासन सिर्फ बरगलाने के लिए पत्रकारों को कोरोना योद्धा बताते हैं, जब उनकी सहायता की बात आती है तो कन्नी काट लेते हैं। तुर्रा ये भी कि आत्ममुग्ध होकर सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं और ठीक उसी समय लोकतंत्र का चैथा खंभा कहे जाने वाली पत्रकार बिरादरी को नजरअंदाज करते हैं।


Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form