शेर को भी मात देता पोगोविन

आर्ट ऑफ लीविंग...
कुदरत ने पैंगोलिन को जो दिया, वह शायद किसी को नहीं दिया। पैंगोलिन एकमात्र ऐसा स्तनपायी जानवर होता है, जिसके शरीर पर कुदरत ने मजबूत शल्कों की रचना की है। इन शल्कों से उनका शरीर किसी किले जैसा सुरक्षित हो जाता है। 
जब भी कोई मुसीबत आती है, कोई शिकारी हमला करता है तो वे अपने पूरे शरीर को मोड़कर एकदम गोल कर लेते हैं। शेर के जबड़े भी उनके शल्कों को तोड़ नहीं पाते। वे शल्कों से बनी किसी गेंद जैसे हो जाते हैं। कुछ देर अपने जबड़ों से रियाज करने के बाद शेर थक-हार कर उन्हें छोड़ देते हैं। सैकड़ों-हजारों साल के जैवविकास में पैंगोलिन ने जीवन जीने की यह कला विकसित की। उन्होंने अपने अंदर जीने का कुछ ऐसा हुनर पैदा किया, जिसका मुकाबला करना किसी और के लिए संभव नहीं था। उन्होंने अपने शरीर पर ही किलेबंदी कर ली है। 
लेकिन, नतीजा क्या है। आज पैंगोलिन दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी होने वाले वन्यजीवों में शामिल हैं। उन्हें पकड़ा जाता है। डिब्बों में बंद करके अवैध तरीके से उन्हें भेज दिया जाता है। चीन जैसे देशों में पैंगोलिन का मांस खाया जाता है। कई जगहों पर अंधविश्वासों के चलते भी उन्हें मार दिया जाता है। कुछ ही महीनों पहले गुड़गांव के एक गांव में पैंगोलिन को नहीं जानने की वजह से उसे खतरनाक समझकर लोगों ने पीट-पीट कर मार दिया था। (जंगलकथा के पिछले अंकों में आप इस घटना का ब्यौरा पा सकते हैं)। पैंगोलिन की जीभ कमाल की होती है। पलती और लंबी। इसी से वो चींटियां और दीमकों का भोजन करता है। दीमकों की संख्या नियंत्रित करना एक तरह से पौधों और इँसानों की मदद करना ही होता है। लेकिन, इसकी परवाह किसे है। 
बेतरह शिकार के चलते पैंगोलिन दुनिया के दुर्लभ और संकटग्रस्त जीवों की सूची में शामिल हो गए हैं। लोगों को पैंगोलिन के प्रति जागरुक करने के लिए 20 फरवरी के दिन वर्ल्ड पैंगोलिन दिवस भी मनाया जाता है। 
अपने अंदर जीवन जीने की कुछ ऐसी ही कला चमगादड़ों ने भी विकसित की है। चमगादड़ शायद एकमात्र ऐसे स्तनपायी हैं जो उड़ते हैं। दुनिया भर के तमाम जीव जिस तरह से चीजों को देखते हैं, उस तरह से वे नहीं देखते। लाखों सालों के विकासक्रम में उन्होंने दुनिया को अलग तरह से देखने का हुनर विकसित किया। यही उनका आर्ट ऑफ लीविंग है। लेकिन, दुनिया भर में चमगादड़ भी अपने पर्यावास के संकट का सामना कर रहे हैं। वे कई सारे पेड़-पौधों के परागण में अपनी भूमिका निभाते हैं। 
पिछले सौ दिनों से, जब से कोरोना वायरस का हमला शुरू हुआ है, ये दोनों जीव सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि कोरोना वायरस एक ऐसा वायरस है जो पहले किसी वन्यजीव में रहता था। लेकिन, जब उसके होस्ट के जीवन पर संकट छाया, उनकी तादाद कम होने लगी तो उसने एक नया होस्ट चुना है। इसके लिए उसने अपनी जैविक संरचना में बदलाव किया है। जाहिर है कि किसी भी वायरस के लिए मानव होस्ट से ज्यादा अच्छा होस्ट और कोई साबित नहीं हो सकता। क्योंकि, दुनिया में सबसे ज्यादा बायोमास इसी प्रजाति के पास है और निकट भविष्य में इसके समाप्त होने का कोई खतरा नहीं है। 
कई बार लगता है कि क्या हम इंसानों की नस्ल एक प्रकार की कुंठा की शिकार है। हम जिसके पास भी अपने से ज्यादा खूबियां देखते हैं, उसे नष्ट करने पर तुल जाते हैं। शेर और बाघ हमसे ज्यादा शक्तिशाली है, तो उनके शिकार पर लग जाते हैं। शक्तिप्रदर्शन में हाथियों को मार डालते हैं। 
लेकिन, क्या यह सबकुछ इतनी ही आसानी से हो जाएगा। कि हम पूरी धरती को नष्ट कर दें और धरती से हमसे कुछ न कहे। कुदरत का बच्चा तो हर कोई है। अब चाहे वो फफूंद हो या विशालकाय दरख्त। चाहे वो अमीबा हो या विशालकाय व्हेल। अब वह छोटा सा मेंढक हो या विशालकाय हाथी।।       ( एक पाठक की वाल से साभार)


आर्ट ऑफ लीविंग...
कुदरत ने पैंगोलिन को जो दिया, वह शायद किसी को नहीं दिया। पैंगोलिन एकमात्र ऐसा स्तनपायी जानवर होता है, जिसके शरीर पर कुदरत ने मजबूत शल्कों की रचना की है। इन शल्कों से उनका शरीर किसी किले जैसा सुरक्षित हो जाता है। 
जब भी कोई मुसीबत आती है, कोई शिकारी हमला करता है तो वे अपने पूरे शरीर को मोड़कर एकदम गोल कर लेते हैं। शेर के जबड़े भी उनके शल्कों को तोड़ नहीं पाते। वे शल्कों से बनी किसी गेंद जैसे हो जाते हैं। कुछ देर अपने जबड़ों से रियाज करने के बाद शेर थक-हार कर उन्हें छोड़ देते हैं। सैकड़ों-हजारों साल के जैवविकास में पैंगोलिन ने जीवन जीने की यह कला विकसित की। उन्होंने अपने अंदर जीने का कुछ ऐसा हुनर पैदा किया, जिसका मुकाबला करना किसी और के लिए संभव नहीं था। उन्होंने अपने शरीर पर ही किलेबंदी कर ली है। 
लेकिन, नतीजा क्या है। आज पैंगोलिन दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी होने वाले वन्यजीवों में शामिल हैं। उन्हें पकड़ा जाता है। डिब्बों में बंद करके अवैध तरीके से उन्हें भेज दिया जाता है। चीन जैसे देशों में पैंगोलिन का मांस खाया जाता है। कई जगहों पर अंधविश्वासों के चलते भी उन्हें मार दिया जाता है। कुछ ही महीनों पहले गुड़गांव के एक गांव में पैंगोलिन को नहीं जानने की वजह से उसे खतरनाक समझकर लोगों ने पीट-पीट कर मार दिया था। (जंगलकथा के पिछले अंकों में आप इस घटना का ब्यौरा पा सकते हैं)। पैंगोलिन की जीभ कमाल की होती है। पलती और लंबी। इसी से वो चींटियां और दीमकों का भोजन करता है। दीमकों की संख्या नियंत्रित करना एक तरह से पौधों और इँसानों की मदद करना ही होता है। लेकिन, इसकी परवाह किसे है। 
बेतरह शिकार के चलते पैंगोलिन दुनिया के दुर्लभ और संकटग्रस्त जीवों की सूची में शामिल हो गए हैं। लोगों को पैंगोलिन के प्रति जागरुक करने के लिए 20 फरवरी के दिन वर्ल्ड पैंगोलिन दिवस भी मनाया जाता है। 
अपने अंदर जीवन जीने की कुछ ऐसी ही कला चमगादड़ों ने भी विकसित की है। चमगादड़ शायद एकमात्र ऐसे स्तनपायी हैं जो उड़ते हैं। दुनिया भर के तमाम जीव जिस तरह से चीजों को देखते हैं, उस तरह से वे नहीं देखते। लाखों सालों के विकासक्रम में उन्होंने दुनिया को अलग तरह से देखने का हुनर विकसित किया। यही उनका आर्ट ऑफ लीविंग है। लेकिन, दुनिया भर में चमगादड़ भी अपने पर्यावास के संकट का सामना कर रहे हैं। वे कई सारे पेड़-पौधों के परागण में अपनी भूमिका निभाते हैं। 
पिछले सौ दिनों से, जब से कोरोना वायरस का हमला शुरू हुआ है, ये दोनों जीव सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि कोरोना वायरस एक ऐसा वायरस है जो पहले किसी वन्यजीव में रहता था। लेकिन, जब उसके होस्ट के जीवन पर संकट छाया, उनकी तादाद कम होने लगी तो उसने एक नया होस्ट चुना है। इसके लिए उसने अपनी जैविक संरचना में बदलाव किया है। जाहिर है कि किसी भी वायरस के लिए मानव होस्ट से ज्यादा अच्छा होस्ट और कोई साबित नहीं हो सकता। क्योंकि, दुनिया में सबसे ज्यादा बायोमास इसी प्रजाति के पास है और निकट भविष्य में इसके समाप्त होने का कोई खतरा नहीं है। 
कई बार लगता है कि क्या हम इंसानों की नस्ल एक प्रकार की कुंठा की शिकार है। हम जिसके पास भी अपने से ज्यादा खूबियां देखते हैं, उसे नष्ट करने पर तुल जाते हैं। शेर और बाघ हमसे ज्यादा शक्तिशाली है, तो उनके शिकार पर लग जाते हैं। शक्तिप्रदर्शन में हाथियों को मार डालते हैं। 
लेकिन, क्या यह सबकुछ इतनी ही आसानी से हो जाएगा। कि हम पूरी धरती को नष्ट कर दें और धरती से हमसे कुछ न कहे। कुदरत का बच्चा तो हर कोई है। अब चाहे वो फफूंद हो या विशालकाय दरख्त। चाहे वो अमीबा हो या विशालकाय व्हेल। अब वह छोटा सा मेंढक हो या विशालकाय हाथी। 
आखिर सबक क्या हैं (एक पाठक की वाल से सभार,)


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