लॉक डाऊन,सकारात्क सोचे स्वाध्याय करे,मस्त रहें ।नकारात्मकता सेभी बचे

बस्तीः कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किये गए लाक डाउन के दौरान घर से बाहर निकलने पर लगी पाबंदी को बोझ समझकर बोरियत महसूस करने से संकट कम होने वाला नहीं है। यह बाते जिला अस्पताल के एनसीडी क्लीनिक में तैनात साइकोट्रिक सोशल वर्कर डा. राकेश कुमार ने कहीं। उन्होने कहा सकारात्मक सोचें और परिवार के सदस्यों के साथ बात करें, अपने विचारों को साझा करें और उनके विचार भी जानें। उनके चेहरों पर मुस्कान बिखेरने की कोशिश करें। इसके लिये आप परिवार के साथ में सामान्यज्ञान, अंताक्षरी, चित्रकारी व पहेलियों की मदद ले सकते हैं।

स्कूली बच्चों में प्रतियोगिता आयोजित कर सकते हैं। उन्हे होमवर्क दे सकते है जो कोर्स और कोर्स के बाहर के हो सकते हैं। जैसे कोई विषय सामग्री याद करना, निबंध लिखना या सगे सम्बन्धियों के मोबाइल नम्बरों को एक डायरी में सजाना आदि। इससे वे व्यस्त भी रहेंगे, उनके भीतर निर्माण की सकारात्मक सोच विकसित होगी और समय भी आसानी से कट जायेगा। उन्हे उत्साहित करना, पारितोषिक देना न भूलें। मनपसंद पस्तकें, प्रेरक कहानियां समय कबताने का जरिया बन सकती हैं। टीवी पर प्रोग्राम देखें तो पूरे परिवार के साथ बैठें। किसी प्रसंग को लेकर बहंस भी छेड़ें। घर की लक्ष्मण रेखा पार करके खतरा मोल लेने और दूसरों के लिये खतरा बनने से अच्छा है अपने घरों में रहें। यह कई मायनों में अच्छा हो सकता है।

ये न कहें कि घर में फंसे हैं
बार-बार यह सोचना कि हम घर में फसे हैं धीरे धीरे अवसाद की ओर ले जाता है। अवसादग्रस्त व्यक्ति न स्वयं खुश रह सकता है और न दूसरों को कोई खुशी दे सकता है। बल्कि उसे देखकर परिवार के अन्य सदस्य भी घोर निराशा के शिकार हो सकते हैं। कोरोना वायरस से जारी जंग में हम घरों में ही रहकर सुरक्षित रह सकते हैं। इसका कोई दूसरा विकल्प नही है। इसमें संक्रमण एक से होकर दूसरे में फैलता है। इसलिये सोशल डिस्टेंस का पालन न हो और लोग एक दूसरे से मिलते जुलते रहें तो कोरोना तबाही मचा सकता है। याद रखना होगा आप घरों में हैं ये आपको सजा नही मिली है बल्कि ऐसा करके आप देश के साथ खड़े हैं।


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