लोमस ऋषि ने अपने पुत्र श्रृंगी को अपने से भी उच्च कोटि का ऋषि बनाने के लिए उनको शिक्षा साधना के अतिरिक्त आहार-विहार का विशेष रूप से संरक्षण दिया था ।उन्हें आश्रम में उत्पादित प्रतिदिन अन्न फल खिलाए जाते थे। ऋषि श्रृंग यह नहीं पता था कि नारी भी कोई चीज होती है। दुनिया के इस नारी सम्मान से एकदम अलग रहे।
एक बार महाराजा दशरथ और ब्रहम र्षित वशिष्ठ ज्ञासा बस उनके
आश्रम में आए अप्सराओं के साथ उन्होंने हाथों मिष्ठान दिलाया उन्होंने इसके पहले नारियां कभी नहीं देखी थी सो ऋषि श्रीग ने उनका परिचय पूछा ।उत्तर मिला हम भी ब्रह्मचारी विद्यार्थी हैं हमारा गुरुकुल सीत प्रधान क्षेत्र में है जो बड़ी तक दाढ़ी मूंछ नहीं आती प्राणायाम करके अधिक से अधिक हमने अपने शरीर को सुखा दिया और आप से मिलने चले आये हैं मिष्ठान दिए और कहा कि हमारे आश्रम के फल हैं ऋषि श्रीग ने उनको अच्छा सही मानी। और पिता को सारा विवरण सुना दिया पिता देखने आए तो अप्सराओं के साथ राजा दशरथ और वशिष्ठ खड़े थे उन्होंने हेतु बताया दशरथ का पुत्र यज्ञ कराने योग्य सामान वाणी इन दिनों और दुनिया में कोई न थी । श्लोकों का पाठ करने वाले बहुत हैं।पर श्रीगजैसा कोई भी ऋषि नहीं है ऋषि श्रीग जी द्वारा जो यज्ञ हुआ उसमें चार राजकुमार राम ,लक्ष्मण ,भरत और शत्रुघ्न के रूप में ऐसे जजन्मेंने इतिहास को धन्य कर दिया ।
ब्रह्म तेज से अर्जित अपने ज्ञान से उन्होंने उनका यज्ञ करवाया यह इंद्रिय निग्रह के लिए आवश्यक थी साधना और इंद्री इंद्री निग्रह समाज के लिए सबसे बड़ी आवश्यक है ।ऋषि श्रीग ने पूरी शक्ति अपने पिता लोमस के मार्ग दर्शन में प्राप्त की थी।आज भी मखोड़ा के पास ऋषि श्रृंग का आश्रम विद्द्यमान हो असंख्य लोगो को पाथेय दे रहा है।