आखिर ब्राह्मण पर ही सवाल क्यों? किसका क्या बिगाड़ा????

 


ये सत्य है कि कुछ स्वार्थी और दरबारी ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ के लिए ब्राह्मणों के नाम को कलंकीत किया है । लेकिन उनकी गलती के लिए सम्पूर्ण ब्राह्मण समाज की नींदा करना सर्वथा अनुचित है । अच्छे और बुरे लोग किस समाज में नहीं थे ? हर बात के लिए ब्राह्मणों को दोष देना ठीक नहीं है । ब्राह्मणों में केवल दोष निकालना उचित नहीं होगा, उनके गुणों और उनके द्वारा किये गए अच्छे कार्यों को भी देखना होगा । जब-जब भी इस राष्ट्र पर संकट आया तो ब्राह्मणों ने आगे आकर समाज को रास्ता दिखाया । आवश्यकता पड़ने पर ये देश के लिए बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटे । ब्राह्मणों को दलितों के शत्रु के रूप में दिखाना इस देश को तोड़ने वाली शक्तियों का ही प्रपंच है । निःसंदेह अंबेडकर जी बहुत महान बने, लेकिन उन्हें महान बनाने में उनके ब्राह्मण गुरु अंबेडकर का भी योगदान कम नहीं था ।

स्वतंत्रता से पहले 800 सालों तक इस देश पर तथाकथित "समतावादी" विदेशियों का शासन रहा था । इस कालखंड में कितने दलितों को इन लोगों ने राजा, मंत्री, सुबेदार, मनसबदार आदि बनाया था ? इनके शासन में शूद्रों की दुर्दशा ही हुई थी । भारतीय कारीगरों और कामगारों के प्रति उनका बहुत ही सौतेला और अन्यायपूर्ण व्यवहार रहा था । वो भारतीयों की तरह सब के प्रति करूणा और दया के सिद्धांत पर नहीं चलते थे । ये कहना कि ब्राह्मणों ने अन्य जाति के लोगों को आगे बढ़ने नहीं दिया केवल एक बहाना मात्र है । मुट्ठी भर लोग अन्य लाखों करोड़ों की आबादी को कैसे आगे बढ़ने से रोक सकते थे ? कब तक वो उन्हें भ्रमित कर सकते थे ? ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ शूद्र जाति के लोगों ने भी ऊँचाई को प्राप्त किया था । जो आगे बढ़ने के लिए सतत प्रयत्न करेगा उसे कोई रोक नहीं सकता है चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत हों ।

ब्राह्मण "ब्रम्ह" अर्थात् "ईश्वर" के उपासक को कहा गया है । ब्राह्मण का जीवन त्याग और तपस्या का था । सांसारिक भोग-विलास के साधनों को त्याग कर सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना इतना आसान नहीं है । ब्राह्मणों ने समाज में सम्मान ऐसे ही नहीं पा लिया । ये सम्मान पाने के लिए उन्हें बहुत कुछ खोना भी पड़ा था । ब्राह्मणों का जीवन सादगी भरा होता था । प्रभु भक्ति, पुजा, ध्यान, अध्ययन, अध्यापन आदि करते हुए ही उनका जीवन व्यतीत होता था । उनकी जीविका का मुख्य साधन भिक्षा और दक्षिणा थी । राजाओं और धनीकों की तरह वो बड़े- बड़े महलों या भवनों में नहीं रहते थे, घोड़े और हाथियों पर भी नहीं चलते थे न ही कीमती वस्त्र और आभूषण ही धारण करते थे । दूसरों की तरह ब्राह्मण मांस और मदिरा का भी सेवन नहीं करते थे । ब्राह्मण अगर धन संग्रह करने वाले होते तो सुदामा को कभी श्रीकृष्ण के पास कुछ मांगने के लिए नहीं जाना पड़ता न ही द्रोण को अपने पुत्र के दुध के लिए द्रुपद के यहाँ अपमानित होना पड़ता।

इस राष्ट्र के निर्माण में सभी का योगदान है । ब्राह्मणों के योगदान को भी ये राष्ट्र और ये विश्व कभी भुला नहीं सकता है । ब्राह्मणों ने मानव मात्र के कल्याण की बात कही थी । आज जो इस देश में "वसुंधैव कुटुंबकम्", "सर्वे भवंतु सुखिनः", "असतो मा सद्गमय", "सत्यमेव जयते" और "मनुर्भव जनयः" जैसी बातें कही जाती हैं जो कि भारतीय दर्शन और संस्कृति की पहचान बन चुकी है, वो ब्राह्मण ऋषियों द्वारा ही कही गई थी । चाहे दर्शन शाश्त्र हो, विज्ञान हो, गणित हो, अर्थ शास्त्र हो या खगोल शास्त्र, हर क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है । आयुर्वेद और योग शास्त्र की खोज ब्राह्मणों ने ही की है । ये वेद, उपनिषद आदि ब्राह्मणों की ही कृति है । वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, भारद्वाज, अगस्त, कपिल, कणाद, पतंजलि और पाणिनि से लेकर चाणक्य और आर्यभट्ट जैसी महान विभूति ब्राह्मण ही थे । आधुनिक भारत को भी सर्वप्रथम स्वतंत्रता की राह बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे लोगों ने ही दिखाया था । ब्राह्मणों ने समाज को बहुत कुछ दिया था । उन्हें परजीवी कहना गलत होगा ।

अंत में कवि नरोत्तम ने ब्राह्मण को धन केवल भिक्षा.....?

कौटिल्य शास्त्री 

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