प्राथमिक विद्यालयों को संख्या का बहाना बना,विलय की साजिश दुर्भाग्यपूर्ण,सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए.

 बस्ती 


शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्राथमिक विद्यालयों का विलय एक दमन करी नीति व नौकर शाही की कुनियोजित साजिश है.साधन हीन बच्चे ही उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा के आधार है,उनको सरकार संख्या का बहाना  बनाकर एक तरह से प्राइवेट सेक्टर को प्रकारांतर से प्रोत्साहित ही कर रही है ,जो सर्वथा निंदनीय कदम है.इस आशय का ज्ञापन आज प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष उदय शंकर शुक्ल के नेतृत्व में सहकारी बैंक के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ तिवारी को दिया गया.तिवारी ने सम्मानित शिक्षकों के प्रति शुभ कामना व्यक्त करते हुए  आने का आभार किया.इस अवसर पर श्री शुक्ल ने कहा, इसमें के नवनिहालों के भविष्य के साथ संवरने पर कुठाराघात किया जा रहा है साथসঠিকম वर्तमान एवं आने वाले शिक्षकशिक्षिकाओं के कोकिएकी है। का सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के नवनिहाले अगावक शिक्षक/ शिक्षिकाओं के प्रति विभाग/ शासन व सरकार द्वारा ऐसा निर्देश जारी किया जाना बहुत ही अनुचित है। विभाग व शासन द्वारा जारी इस निर्देश से ग्रामीण परिदिश में रहने वाले आम जन मानस व शिक्षक/ शिक्षिकाओं एवं बच्चों में रोष व्याप्त हो रहा है। वर्तमान परिविश में परिषदीय विद्यालयों का संचालन व पठन-पाठन बहुत ही प्रभावशाली रूप में चल रहा है परन्तु इस प्रकार के निर्देश से परिषदीय विद्यालयों का पठन-पाठन अत्यधिक प्रभावित होगा।


ऐसे में उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ द्वारा आपके माध्यम से विभाग/ शासन द्वारा उक्त जारी निर्देश को वापस लिए जाने हेतु गाननीय मुख्यमंत्री जी को संबोधित ज्ञापन प्रेषित किया जा रहा है। अतः आपसे विनम्रता पूर्वक अनुरोध है कि प्रदेश के नवनिहाल बच्चों के भविष्य के प्रति गहनता से विचार करते हुए, ग्रामीण परिवेश में रहने वाले अभिभावकों एवं उनके बच्चों तथा प्रदेश के शिक्षक / शिक्षिकाओं के प्रति उत्तम व्यवहार अपनाते हुए विभाग/ शासन व सरकार द्वारा परिषदीय विद्यालयों को पेरिंग कर विद्यालयों का मर्जर प्रक्रिया अपनाए जाने के कारण परिषदीय विद्यालयों को बन्द किए जाने के निर्देश को निरस्त करवाने की कृपा करें। 
ज्ञापन पर हस्ताक्षरकरण वालों में राघवेंद्र प्रताप सिंह मंत्री,अभय सिंह यादव कोषाध्यक्ष,राजकुमार सिंह जिला संयुक्त मंत्री,महेश कुमार वरिष्ठ उपाध्यक्ष,,शुभम शुक्ल आदि प्रमुख हैं.

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