पंचायत चुनाव में टूट जायेगा भाजपा गठबंधन.
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भाजपा की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं, क्योंकि आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव और 2026 के पंचायत चुनाव में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का कुनबा बिखर चुका है। जनवरी-फरवरी में होने वाले त्रिस्तरीय चुनाव में एनडीए चार खण्ड-खंड हो जायेगा।अपना दल सोनेलाल पटेल घटक की अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने सबसे पहले यह ऐलान किया है कि वह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा गठबंधन से मिल कर चुनाव नहीं लड़ेंगी। उसके बाद सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश सरकार के पंचायतीराज व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा से बिना गठबंधन किये पंचायत चुनाव लड़ने की घोषणा कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार में मत्स्य विकास मंत्री निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय निषाद ने भी अकेले पंचायत चुनाव लड़ने की बात किये हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि चुनाव बाद जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख चुनाव में भले हम मिल कर लड़े लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पहले से गठबंधन करके नहीं लड़ेंगे।यूपी सरकार के एक और भागीदार राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष ने अपना पत्ता अभी नहीं खोला है।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने प्रयागराज में अकेले पंचायत चुनाव लड़ने का ऐलान किया। इसके बाद निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने भी पंचायत चुनाव अपने-अपने दम पर लड़ने की घोषणा की है। भाजपा गठबंधन के तीनों पार्टियों के अलग चुनाव लड़ने के बाद भाजपाई कुनबे को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। जानकारों के अनुसार ऐसे में नतीजे भाजपा के मनमुताबिक नहीं आयेगा। परिणामस्वरूप विधानसभा चुनाव में भाजपा को साथी दलों के सामने घुटने टेकने पड़ेंगे।
चूंकि भाजपा साथी दलों को कमजोर करने के लिए कुख्यात है इस लिये सभी दल आगे की योजना को लेकर अपनी रणनीति का खुलासा अभी नहीं कर रहे हैं। पिछले 2-3 सालों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की सियासत में काफी बदलाव देखने को मिला है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व और योगी आदित्यनाथ के संबंधों में पहले जैसे मिठास नहीं रह गया है। इसके अलावा बहुत सारे विधायक योगी आदित्यनाथ की सरकार के कामकाज से खुश नहीं है।लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों को यदि आधार बनायेंगे तो यह दावा सच साबित होगा कि नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की हिंदूवादी छवि का प्रभाव में जनता में कम हो गया है। लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में भाजपा के साथी छोटे दलों को भी संघर्ष करना पड़ा था। यही कारण है कि गठबंधन तो छोटे दल रहना चाहते हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर। गठबंधन के साथियों द्वारा भाजपा से अलग चुनाव लड़ने की आमतौर पर दो वजहें बताई जा रही हैं। पहली यह की सभी पार्टियां जमीनी स्तर पर मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाना चाहती हैं। पंचायत के जारिए कार्यकर्ताओं को चुनावी समर में उतारेंगी। इससे कार्यकर्ताओं की नाराजगी कम होगी और पार्टी को मजबूती मिलेगी। अगर गठबंधन में चुनाव लड़ेंगे तो बड़ा शेयर भाजपा को मिलेगा, जिससे कार्यकर्ता नाराज होकर पाला बदल लेंगे। दूसरी प्रमुख वजह है भाजपा पर दबाव डालना। ताकि अभी से भाजपा में दबाव में न आयें और विधानसभा चुनाव 2027 में ज्यादा सीट देने का दबाव बनाया जा सके।
पिछले पंचायत चुनाव में भाजपा और सपा से ज्यादा निर्दलियों ने बाजी मारी थी। इसलिए ज्यादातर दल अकेले चुनाव लड़ना चाहते हैं। इससे भाजपा को और ज्यादा नुकसान होगा, क्योंकि शहर के जिन क्षेत्रों में भाजपा मजबूत है उसी सीट पर सहयोगी दल भी चुनाव लड़ेगे तो मजबूरी में दलित-ओबीसी को नाम हमला करेंगे। सुभाषपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने कहा, पंचायत चुनाव की पूरी तैयारी है। पंचायत चुनाव अपने दम पर पूरी दमदारी से लड़ेंगे। सभी जिलों में सभी सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ेगी। तीन चरण का सर्वे हो गया है। 850 दावेदारों ने टिकट के लिए आवेदन भी किया है। जिला पंचायत सदस्य के प्रत्येक प्रत्याशी को उसके वार्ड में छह हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया है, दो हजार सदस्य बनाना अनिवार्य है।
पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद ने कहा, पंचायत चुनाव की तैयारी के लिए बैठक कर रहे हैं। सभी जगह हम चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे। यह चुनाव सिंबल का नहीं होता है। एक-एक सीट पर भाजपा के ही चार कार्यकर्ता चुनाव लड़ जाते हैं तो फिर किस बात का गठबंधन। सिंबल देना होता तो हम गठबंधन में चुनाव लड़ते। जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य के चुनाव बिना गठबंधन के लड़ेंगे।!
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भाजपा की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं, क्योंकि आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव और 2026 के पंचायत चुनाव में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का कुनबा बिखर चुका है। जनवरी-फरवरी में होने वाले त्रिस्तरीय चुनाव में एनडीए चार खण्ड-खंड हो जायेगा।अपना दल सोनेलाल पटेल घटक की अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने सबसे पहले यह ऐलान किया है कि वह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा गठबंधन से मिल कर चुनाव नहीं लड़ेंगी। उसके बाद सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश सरकार के पंचायतीराज व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा से बिना गठबंधन किये पंचायत चुनाव लड़ने की घोषणा कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार में मत्स्य विकास मंत्री निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय निषाद ने भी अकेले पंचायत चुनाव लड़ने की बात किये हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि चुनाव बाद जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख चुनाव में भले हम मिल कर लड़े लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पहले से गठबंधन करके नहीं लड़ेंगे।यूपी सरकार के एक और भागीदार राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष ने अपना पत्ता अभी नहीं खोला है।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने प्रयागराज में अकेले पंचायत चुनाव लड़ने का ऐलान किया। इसके बाद निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने भी पंचायत चुनाव अपने-अपने दम पर लड़ने की घोषणा की है। भाजपा गठबंधन के तीनों पार्टियों के अलग चुनाव लड़ने के बाद भाजपाई कुनबे को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। जानकारों के अनुसार ऐसे में नतीजे भाजपा के मनमुताबिक नहीं आयेगा। परिणामस्वरूप विधानसभा चुनाव में भाजपा को साथी दलों के सामने घुटने टेकने पड़ेंगे।
चूंकि भाजपा साथी दलों को कमजोर करने के लिए कुख्यात है इस लिये सभी दल आगे की योजना को लेकर अपनी रणनीति का खुलासा अभी नहीं कर रहे हैं। पिछले 2-3 सालों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की सियासत में काफी बदलाव देखने को मिला है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व और योगी आदित्यनाथ के संबंधों में पहले जैसे मिठास नहीं रह गया है। इसके अलावा बहुत सारे विधायक योगी आदित्यनाथ की सरकार के कामकाज से खुश नहीं है।लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों को यदि आधार बनायेंगे तो यह दावा सच साबित होगा कि नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की हिंदूवादी छवि का प्रभाव में जनता में कम हो गया है। लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में भाजपा के साथी छोटे दलों को भी संघर्ष करना पड़ा था। यही कारण है कि गठबंधन तो छोटे दल रहना चाहते हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर। गठबंधन के साथियों द्वारा भाजपा से अलग चुनाव लड़ने की आमतौर पर दो वजहें बताई जा रही हैं। पहली यह की सभी पार्टियां जमीनी स्तर पर मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाना चाहती हैं। पंचायत के जारिए कार्यकर्ताओं को चुनावी समर में उतारेंगी। इससे कार्यकर्ताओं की नाराजगी कम होगी और पार्टी को मजबूती मिलेगी। अगर गठबंधन में चुनाव लड़ेंगे तो बड़ा शेयर भाजपा को मिलेगा, जिससे कार्यकर्ता नाराज होकर पाला बदल लेंगे। दूसरी प्रमुख वजह है भाजपा पर दबाव डालना। ताकि अभी से भाजपा में दबाव में न आयें और विधानसभा चुनाव 2027 में ज्यादा सीट देने का दबाव बनाया जा सके।
पिछले पंचायत चुनाव में भाजपा और सपा से ज्यादा निर्दलियों ने बाजी मारी थी। इसलिए ज्यादातर दल अकेले चुनाव लड़ना चाहते हैं। इससे भाजपा को और ज्यादा नुकसान होगा, क्योंकि शहर के जिन क्षेत्रों में भाजपा मजबूत है उसी सीट पर सहयोगी दल भी चुनाव लड़ेगे तो मजबूरी में दलित-ओबीसी को नाम हमला करेंगे। सुभाषपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने कहा, पंचायत चुनाव की पूरी तैयारी है। पंचायत चुनाव अपने दम पर पूरी दमदारी से लड़ेंगे। सभी जिलों में सभी सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ेगी। तीन चरण का सर्वे हो गया है। 850 दावेदारों ने टिकट के लिए आवेदन भी किया है। जिला पंचायत सदस्य के प्रत्येक प्रत्याशी को उसके वार्ड में छह हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया है, दो हजार सदस्य बनाना अनिवार्य है।
पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद ने कहा, पंचायत चुनाव की तैयारी के लिए बैठक कर रहे हैं। सभी जगह हम चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे। यह चुनाव सिंबल का नहीं होता है। एक-एक सीट पर भाजपा के ही चार कार्यकर्ता चुनाव लड़ जाते हैं तो फिर किस बात का गठबंधन। सिंबल देना होता तो हम गठबंधन में चुनाव लड़ते। जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य के चुनाव बिना गठबंधन के लड़ेंगे।