भगवान परशुराम के चरित्र को विकृत कर परोसा वामपंथियों ने.परशुराम और राम वस्तुत : एक ही.,,राजेंद्रवनाथ तिवारी

 

सामाजिक न्याय एवं समानता के संस्थापक भगवान परशुराम



भगवान परशुराम का वास्तविक नाम ‘राम’ ही था, किन्तु भगवान शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ अस्त्र ‘परशु’ को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशु वाले राम अर्थात् ‘परशुराम’ कहलाये। ये राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि मुनि के पुत्र थे। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण इनका एक नाम ‘जामदग्न्य’ भी था। ये भगवान शिव के परम भक्त थे। समस्त शस्त्रों एवं शास्त्रों के ज्ञाता भगवान श्रीहरि विष्णु के ‘आवेशावतार’ भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव सतयुग एवं त्रेता युगों के संधिकाल में 5142 वि.पू. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। 

अक्षय शक्ति वाले भगवान परशुराम के प्राकट्य के कारण वैशाख शुक्ल की यह विशिष्ट तिथि ‘अक्षय तृतीया’ के नाम से विभूषित हुई। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य आदि का कभी क्षय नहीं होता। सनातन धर्म में इस दिन व्रतोपवास करने एवं उत्सव मनाने की प्रथा है।


भगवान परशुराम भगवान श्रीविष्णु के पांचवें एवं सातवें अवतार यानी वामन एवं भगवान श्रीराम के मध्य क्रम में धरती पर अवतरित हुए। सीता-स्वयंवर प्रसंग में इनकी पावन छवि का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है  

 कटि मुनिबसन तून दुइ बांधें। धनु सर कर कुठारु कल कांधें॥’

सनातन मर्यादा के रक्षक भगवान परशुराम के महान पराक्रम से अधर्मी राजा थर-थर कांपते थे। भगवान शिव से इन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तन स्तोत्र एवं मंत्र कल्पतरु प्राप्त किया था। शस्त्र विद्या के महान ज्ञाता भगवान परशुराम ने भीष्म, द्रोण तथा कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार कैलास में प्रवेश करते समय श्रीगणेश जी द्वारा रोक लिये जाने पर भगवान परशुराम ने परशु का प्रहार किया, जिससे गणेशजी का दांत टूट गया था। तत्पश्चात् भगवान श्रीगणेश एकदंत कहलाये।

 शास्त्रोक्त है कि भगवान श्रीहरि विष्णु ने अहंकार में चूर अत्याचारी क्षत्रिय राजाओं के मानमर्दन के लिए भगवान परशुराम के रूप में अवतार लिया तथा धर्म से द्वेष करने वाले अन्यायियों का दमन कर जगत के रक्षार्थ भगवान परशुराम ने भगवान शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ अस्त्र ‘परशु’ धारण किया था।


अपने अवतार कार्यों को पूरा करने हेतु ऋषि दुर्वासा की भांति भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधी स्वभाव वाले थे। लेकिन एक बार पितरों की आकाशवाणी सुनने के बाद युद्ध करना छोड़ वे तपस्या करने चले गये। पुनः त्रेता युग में सीता-स्वयंवर के दौरान भगवान श्रीरामचन्द्र द्वारा भगवान शिव का धनुष तोड़ने पर अत्यंत क्रुद्ध होकर ये राजा जनक के राज-दरबार में पधारे। तब भगवान परशुराम ने भगवान श्रीराम की परीक्षा लेनी चाही। इन्होंने अपना धनुष भगवान श्रीरामचन्द्र को दिया। ज्योंहि श्रीराम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायी, परशुराम समझ गये कि श्रीरामचन्द्र भगवान विष्णु के अवतार हैं। तत्पश्चात उनकी वन्दना करके परशुराम पुनः तपस्या करने चले गये   l


एक बार जमदग्नि मुनि यज्ञ पर बैठे थे। उनके लिए पत्नी रेणुका नदी से जल लाने गयीं। नदी में अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा करते गंधर्व राजा चित्ररथ को देख वह मुग्ध हो गयीं। जब वह आश्रम लौटीं तो मुनि ने दिव्य ज्ञान से समस्त घटना का पता लगा लिया। उसके बाद क्रोधावेश में आकर उन्होंने अपने पुत्रों से पत्नी को दंडित करने के लिए कहा, किंतु परशुराम के अतिरिक्त कोई भी पुत्र तैयार नहीं हुआ। तत्पश्चात मुनि ने अन्य चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दे दिया। वहीं परशुराम ने पिता की आज्ञा मानी और पिता के कहने पर उन्होंने उनसे चार वरदान भी प्राप्त किये, यथा- माता पुनर्जीवित हों, मृत्यु की स्मृति न रहे, इनके चारों भाई चेतना-युक्त हो जायें और ये स्वयं परमायु हों।


भगवान परशुराम महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि मार्कंडेय सहित अष्टचिरंजीवियों में शामिल हैं- अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमानश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविनः॥ सप्तैतान्रूरय् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्रूरय्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित॥ अर्थात्रूरय् अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि इनका रोज सुबह जाप करना चाहिए। इनके जाप से भक्त को निरोगी शरीर और लंबी आयु मिलती है।


वर्तमान में असम की उत्तर-पूर्वी सीमा पर, जहां ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है, ‘परशुराम कुण्ड’ नामक तीर्थस्थान है, जो भगवान परशुराम के पराक्रम की याद दिलाता है। शास्त्रोक्त है कि वहीं पर तप करके भगवान परशुराम ने शिवजी से अमोघ परशु प्राप्त किया और अंत में इन्होंने वहीं पर उसे विसर्जित भी किया था। इस प्रकार सर्वशक्तिमान विश्वात्मा भगवान श्रीहरि ने भृगुवंश में अवतार ग्रहण करके पृथ्वी के भारभूत राजाओं को दंडित कर सत्य, दया एवं शांतियुक्त कल्याणमय धर्म 

की स्थापना की।

आज परशुराम के स्वरूप को इतिहासकार विशेषकर वाम पंथियों ने  विकृत कर,समाज को विखंडित व क्षत्रिय कुल द्रोही का कलंक संस्कार और संस्कृति को विकृत करने हेतु लगा दिया .

आज आवश्यकता है यह समझने और समझाने की की परशुराम और राम मूलत:राम ही थे,दोनो का मंतव्य एकही रहा.

रामो द्विनाभिषाशते.

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