भाजपा के भय से ऊबर नहीं पा रहीं मायावती?
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। कौटिल्य वार्ता
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया उत्तर प्रदेश की पूर्व मायावती लोकसभा चुनाव 2024 के पूर्व शायद भाजपा के नेतृत्व में चलने वाली केंद्र की सरकार और उसके ईडी, सीबीआई और आयकर के धौंस में आ गयी हैं। अनेकों बार गठबंधन से की राजनीति में चुनाव लड़ कर कामयाबी पाने वाली मायावती का यह कहना कि वह लोकसभा चुनाव 2024 अकेले दम पर लड़ेंगी। वह न तो एनडीए गठबंधन के साथ रहेंगी और न ही विपक्ष के घटक इंडिया के साथ लड़ेंगी।
यह सर्वविदित है कि बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश में सफलता का स्वाद तभी लगा जब तत्कालीन अध्यक्ष कांशीराम 1993 में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़े। 1992 में अयोध्या स्थित कथित मस्जिद के ध्वस्त होने और भाजपा की चार-चार राज्य सरकार बर्खास्त होने के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पराजय मिली थी। उसके बाद उसी सरकार में मायावती के साथ 1995 में गेस्टहाउस कांड हुआ तो वह सपा से अलग होकर भाजपा गठबंधन में शामिल होकर पहली बार मुख्यमंत्री बनी। चार बार के मुख्यमंत्रित्व काल मे तीन बार भाजपा के साथ रह कर मुख्यमंत्री बनीं।1996 में उत्तर प्रदेश में बसपा और कांग्रेस गठबंधन में विधानसभा लड़े।
उसमें कांग्रेस को 33 सीटें मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा समाजवादी पार्टी और रालोद गठबंधन के साथ मिल कर लड़ी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में खाता न खोल पाने वाली बसपा को 2019 में दस सीटों पर विजय मिली।राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि मायावती इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ती हैं तो उनके पुराने ट्रैक के अनुसार वह सबसे ज्यादा फायदे में रहेंगी। लेकिन ऐसे समय में जब भाजपा के विरुद्ध उपजे जनाक्रोश के अवसर पर मजबूत विपक्ष उसका उपयुक्त विकल्प बन कर उभरता दिखाई दे रहा हो तब मायावती का गठबंधन से इनकार का निर्णय राजनैतिक गलियारों में एक अबूझ पहेली बन कर तैर रहा है।