भारतीय राजनीती में अनेक विद्रूप बी बहुरूपिये पाये जाते है ये नकरात्मक चेहरेदेश की प्रगति में वैचारिक स्पीडब्रेकर का काम करते है उसमे केजरीवालों का नाम प्रमुख है. जबभी देश की पटरी सही होने को होती है ,तुरन्त स्पीड ब्रेकर खड़ा होजाता है ,कभी सिसिडिया,कभी केजरी वाल के रूप में.यह सब हिन्दू मतो के विभाजन व् मुस्लीम मतो पर डकैती ही उनका मुख्य धंधा होगया है. दल्ली की छाती पर कबतक मूग दलेगा केजरीवाल?
अभी भारतीय मुद्रा पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के चित्र छापने की जो मांग की है, वह असंवैधानिक, हास्यास्पद और बचकानी है। यदि मुद्राओं पर देवी-देवताओं के चित्र छापने से अर्थव्यवस्था में सुधार होता, तो विश्व में आर्थिक संकट, गरीबी, कुपोषण और भुखमरी जैसी समस्याएं ही नहीं होतीं। सभी 195 देशों के अपने-अपने आराध्य हैं और उनकी आस्थाएं हैं, लेकिन 100 से अधिक देश अविकसित और दरिद्र हैं। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां और सरकारें उनकी मदद करती रही हैं, लिहाजा उनके अस्तित्व बरकरार हैं। अमरीका दुनिया का सबसे ताकतवर और प्रथम आर्थिक संसाधनों वाला देश है। उसकी सर्वशक्तिमान मुद्रा-डॉलर पर देश के संस्थापक और पूर्व राष्ट्रपति आदि के चित्र छपे हैं। चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसकी मुद्रा पर देश के संस्थापक, प्रथम राष्ट्रपति रहे माओत्से तुंग का चित्र अंकित है।
जापान की मुद्रा-येन पर देश के संस्थापकों, महान विचारकों और वैज्ञानिकों के चित्र हैं। ब्रिटेन की मुद्रा-पाउंड पर महारानी विक्टोरिया द्वितीय का चित्र छपता था। अब उनके कालजेयी होने के बाद मौजूदा किंग चाल्र्स तृतीय का चित्र छपेगा। मुद्राओं के धार्मिकीकरण की सोच और प्रवृत्ति किसी भी बड़े देश का रिवाज़ नहीं है। सिर्फ 87 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और मात्र 1.7 फीसदी हिंदू आबादी वाले इंडोनेशिया को उदाहरण मानकर भारत अपनी मुद्रा का चेहरा तय नहीं कर सकता। यह केजरीवाल का मानसिक दिवालियापन है। इंडोनेशिया में कुछ धर्मों को आधिकारिक मान्यता प्राप्त है, लिहाजा वे अपनी मुद्रा पर गणेश, महादेव और बजरंगबली के चित्र भी छाप सकते हैं। भारत एक संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसके नीति-निर्माताओं ने एक ही धर्म विशेष के कैलेंडर तक को मान्यता नहीं दी। यदि माता वैष्णो देवी या स्वर्ण मंदिर अथवा किसी अन्य के संदर्भ में भारतीय नोट और सिक्के तैयार किए गए हैं, तो वे सिर्फ विशेष अवसर पर ही छापे गए थे। यह भारतीय मुद्रा की परंपरा नहीं है कि धर्म के आधार पर वह छापी जाए। यह साझा विशेषाधिकार भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक का है। संसद भी इसमें दखल नहीं दे सकती। गौरतलब है कि देश की आजादी के 22 साल बाद 1969 में नोटों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चेहरा छापा गया, क्योंकि वह उनका जन्म शताब्दी वर्ष था।
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