मनोबल ऊंचा हो तो महाभारत जीत सकते है

 विश्व रंगमंच के सबसे महान निर्देशक "कृष्ण" और सबसे बड़े अभिनेता "अर्जुन"!


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कोई साधारण पर्व नहीं अपितु उनका जन्मदिन है, जिसकी कल्पना हर माँ अपने शिशु में पाँच हज़ार से अधिक वर्षों से करती आ रही है। भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र और वृषभ लग्न में मध्यरात्रि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।

    बाल सुलभ लीला रचाते कृष्ण, मित्रता निभाते कान्हा, माँ से उलाहना पूर्ण बात करते कन्हैया, राधा और गोपियों के किशना, राक्षसहंता योगीराज, आचार्य संदीपनी के शिष्य वासुदेव, नीति नियंता द्वारिकाधीश, कुशल प्रशासक देवकीनंदन, युद्ध कौशल दिखाते श्रीकृष्ण, धर्मक्षेत्र, युद्धक्षेत्र कुरुक्षेत्र में अर्जुन के अवसाद को दूर करते भगवान और युद्ध के मैदान से शत्रु को दूर ले जाने वाले रणछोड़ का जन्मोत्सव समूचे भारत को आह्लादित करता है।

     भगवान कृष्ण द्वारा प्रदत्त गीता ज्ञान संपूर्ण जगत की अमूल्य निधि है। उनका कोई कथन ऐसा नहीं, कोई कृत्य ऐसा नहीं, जिससे मानवता लाभान्वित न हो।

      मानव इतिहास की सबसे महान दार्शनिक वार्ता के रूप में वर्णित "श्रीमद्भगवद्गीता" शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, वैचारिक और सांस्कृतिक स्तर पर परिवर्तन लाती ही है। यह महाभारत के "भीष्म पर्व" का भाग है, उपनिषद है।

     गीता अंतिम बार लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व युद्धक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकादशी के दिन, रविवार को कही गई थी। यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी महाभारत काल में थी। गीता को अर्जुन के अलावा संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया। श्रीमद्भगवदगीता में श्रीकृष्ण ने 574, अर्जुन ने 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने 1श्लोक कहा है। वस्तुतः यह वैदिक ज्ञान की सर्वाधिक पूर्ण प्रस्तुति है। वैदिक ज्ञान शोध का विषय नहीं है।  

हमारा शोध कार्य अपूर्ण है। क्योंकि हम अपूर्ण इंद्रियों के द्वारा शोध करते हैं। वास्तविकता यह है कि अर्जुन भगवान कृष्ण का पार्षद होने के नाते समस्त अज्ञान से मुक्त था। परंतु युद्ध क्षेत्र में वह अज्ञानी बनकर भगवान कृष्ण से जीवन की समस्याओं के विषय में प्रश्न करता है। ताकि कृष्ण उसकी व्याख्या भावी पीढ़ियों के मनुष्यों के लाभ के लिए कर दें। वस्तुतः गीता धार्मिक ग्रंथ नहीं अपितु संपूर्ण जीवन दर्शन है।

     श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय दो के तीसरे श्लोक में युद्ध न करने पर भगवान अर्जुन को नपुंसक तक कह देते हैं। अर्थात डाँटते हैं। वहीं अट्ठारहवें अध्याय के तिरसठवें श्लोक में कहते हैं कि हे अर्जुन मैंने तुम्हें यह गुह्यतर ज्ञान बता दिया। इस पर पूरी तरह से मनन करो और तब जो चाहे सो करो। अर्थात् ज्ञान देने के उपरांत स्वविवेक से निर्णय लेने की पूरी छूट। कहीं भी कोई बाध्यता नहीं।

      स्वाबलंबन के इस सत्य को भगवान पहले अध्याय में भी कह सकते थे। परंतु इस प्रकार जो ज्ञान प्रकट हुआ वह अति सुंदर है। अर्जुन इस धरा के सबसे पहले और सबसे बड़े "अभिनेता" हैं और गीता विश्व के किसी भी साहित्य के सैकड़ों नोबेल पुरस्कारों से बड़ी तथा कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त,"न भूतो -न- भविष्यति।"

    लिंग, उम्र से परे हर व्यक्ति को इस महान ग्रंथ को पढ़ना चाहिए। कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान इस पवित्र ग्रंथ में न हो। वस्तुतः यह कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं, अपितु संपूर्ण जीवन दर्शन है। भगवान से अर्जुन की यह वार्ता लगभग पैंतालीस मिनट चली। कहते हैं कि बहती बयार के वेग से जिन-जिन के कानों में भगवान के कुछ शब्द पड़ गए, वे भी भवसागर से तर गए।

         सच्चाई यही है कि हम में से अधिकांश कब अपने अंदर के "दुर्योधन" को जीने लगते हैं, हमें आभास ही नहीं होता। महाभारत युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान ने देह त्याग दी। तब उनकी उम्र 125 साल 8 महीने और 7 दिन थी।

            केवल पाँच पांडवों के बलबूते विश्व की सबसे बड़ी सेना को पराजित कराने वाले भगवान की जन्म जयंती की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!

                      

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form